सारे देश की तरह गुजरात में भी अडवानीजी की गिरफ्तारी के बिरोध में प्रदर्शन हुए. गुजरात में सैकड़ों प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया. प्रभुदास माधवजी वैशनानी सहित 133 लोगों पर TADA की धारा लगाईं गई. जबकि यह धारा केवल आतंकवादियों के लिए थी . हालांकि कुछ समय बाद इस TADA को हटा दिया गया.
30 अक्टूबर 1990 का दिन था. प्रभुदास के बड़े भाई अम्रुतभाई उस दिन घर पर ही थे. प्रभुदास के परिवार में पत्नी और तीन छोटे-छोटे बच्चे थे जिनकी उम्र चार, छह और आठ साल थी. बीबीसी से बातचीत में अम्रुतभाई ने बताया, "मेरे दो भाई को वे (पुलिसवाले) लोग घर से उठा ले गए थे. अभी आज तक मुझे नहीं पता कि उन्हें क्यों उठा ले गए
उस वक्त हम क़ायदे क़ानून की बात जानते नहीं थे कि पुलिस के सामने क्या करना है. पुलिसवालों से लोग बहुत डरते थे. पुलिस ने बताया भी नहीं. बाद में पता चला कि उसे टाडा में गिरफ़्तार किया गया था."अम्रुतभाई के मुताबिक, घर में घुसकर उनके भाइयों को उठा ले जाने वालों में संजीव भट्ट भी थे. दूसरे भाई का नाम रमेश भाई है.
जबकि दूसरे भाई रमेशभाई को 15 - 20 दिनों में अस्पताल से "किडनी की रिकवरी" के बाद छुट्टी मिल गई. अम्रुतभाई के मुताबिक, उन्होंने भाई के पोस्टमार्टम के लिए एसडीएम को अर्ज़ी दी जिसमें उन्होंने लिखा कि "पुलिस की मार से" भाई की मौत हुई. वो कहते हैं, "एसडीएम ने हमें मंज़ूरी दी और उसे पुलिस डिपार्टमेंट को भेज दी.
पुलिस डिपार्टमेंट ने हमारी अर्ज़ी को एफ़आईआर में बदल दिया. साल 1990 में मामले की जांच सीआईडी ने शुरू कर दी गई. लेकिन चार्जशीट फ़ाइल करने के लिए तत्कालीन कांग्रेस की सरकार से सहमति नहीं मिलने के कारण मामला खिंचता चला गया. चार्जशीट फ़ाइल करने की सहमति 1995-95 में मिली .
जिसे अभियुक्त ने अदालत में चुनौती थी. हाईकोर्ट की आलोचना के बाद 2012 में चार्जशीट दायर हुई जबकि पूरी तरह सुनवाई 2015 में शुरू हुई." अम्रुतभाई बताते हैं कि बड़े भाई की मौत के बाद बाकी भाइयों ने प्रभुदास के परिवार की ज़िम्मेदारी उठाई. वो कहते हैं, "हमने उनकी ज़िम्मेदारी ली और आज तक निभा रहे हैं.
हमारे हिसाब से जो हो पाया हमने कर दिया. फ़ैमिली को देखने और देखभाल करने में बहुत दर्द हुआ. एक उनकी देखभाल करना, दूसरी कानूनी लड़ाई के लिए संघर्ष करना. हमें दोनों ओर से लड़ना पड़ा." रमेशभाई का जामनगर में बुकस्टोर का काम है.अदालत ने संजीव भट्ट सहित दो लोगों को उम्र कैद की सज़ा सुनाई है.
गौर तलब है कि संजीब भट्ट पहले से ही नौकरी से बर्खाश्त है और जेल में है. उन्हें साल 2011 में बिना इजाज़त नौकरी से ग़ैरहाज़िर रहने और सरकारी गाड़ी के कथित दुरुपयोग के मामले में नौकरी से सस्पेंड किया गया था, 2015 में नौकरी से बर्ख़ास्त कर दिया गया था. और सितंबर 2018 से एक कथित ड्रग प्लांटिंग मामले में जेल में हैं.
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