स्काटलैंड के एक गाँव में एक बच्चा अपनी दादी के साथ किचेन में बैठा था. अंगीठी पर एक केतली में पानी उबल रहा था. पानी उबलने पर ढक्कन हिलने लगा तो उसने ढक्कन के ऊपर एक कोयला रख दिया. कुछ देर शांत रहने के बाद ढक्कन फिर हिलने लगा. यह देखकर उस बच्चे के मन में बिचार आया कि - भाप में अवश्य ही कोई बड़ी ताकत है.
भाप में कैसी ताकत होती है उसे जान्ने के लिए वो अक्सर केतली में पानी उबालकर उसकी नली के सामने तरह तरह की चरखिया बनाकर, उनको घुमाने का प्रयास करने लगा. युवा होने पर अपना पूरा समय भाप की शक्ति के अध्ययन में लगाने लगा. वो अक्सर छोटे छोटे यंत्र बनाकर उनको केतली से निकलती भाप से चलाने का प्रयास करता रहता था.
वह स्वयं से कहता था – कि भाप बहुत शक्ति है, अगर हम इस शक्ति को काबू में करके इससे अपने काम करना सीख लें तो यह इंसान के बहुत काम आ सकती है. इससे हम भारी बजन उठा सकेंगे, चक्कियों को चला सकेंगे, नाव चला सकेंगे और बिना जानवर की गाड़ी भी चला सकेंगे, लेकिन भाप की शक्ति को वश में कैसे करें, यह सबसे बड़ा प्रश्न था.
वह बालक और कोई नहीं बल्कि भाप के इंजन का अविष्कारक, "जेम्स वाट" था. उनका जन्म 19 जनवरी 1736 में स्काटलैंड के ग्रिनाक नाम के कस्बे में हुआ था. जेम्स वाट के पिता जलपोतों की मरम्मत और भवन निर्माण का कार्य करते थे. उनकी वर्कशाप उसके प्रयोगों को आगे बढाने में बहुत ही सहायक साबित हुई.
जेम्स वाट का बनाया भाप का इंजन बहुत कामयाब रहा. इंजन के महत्त्व को पहेचानने के बाद "उक्त भाप इंजन" की मांग चारों और से आना शुरू हो गयी. आटा मिलों, कागज़ मिलों, लोहे की मिलों, रुई की मिलों, नहरों, जल संस्थानों आदि की और से जेम्स वाट के भाप इंजन का इस्तेमाल किया जाने लगा.
आज भले ही "स्टीम इंजन" का स्थान विजली की मोटरों और डीजल इंजनो ने ले लिया है, लेकिन जेम्स वाट के अविष्कृत भाप के इंजनो ने लगभग 200 साल तक दुनिया को शक्ति दी है. शक्ति को नापने की इकाई का नाम "वाट" जेम्स वाट को ही समर्पित है. आज उस महान अविष्कारक "जेम्स वाट" के जन्मदिवस पर हम उनको हम सादर प्रणाम करते है
No comments:
Post a Comment