इन पुरुष्कारों की हकीकत यह है कि - विकसित देशों के पैसे से चलने वाली विदेशी संस्थाए भारत या अन्य विकासशील देशो के विकास में बाधा डालने वाले हर व्यक्ति और हर NGO को पैसा देने या पुरस्कार देने को तो तुरंत तैयार हो जाते हैं लेकिन अगर कोई संस्था समस्या का हल करने की कोशिश करेगी, तो ऐसे लोगों को कभी मदद नहीं देते हैं.
कैलाश सत्यार्थी ने वाराणसी के पास 'भदोई" में कालीन की फैक्ट्रियों में काम करने वाले बच्चो के लिए आवाज उठाकर प्रशिद्धि पाई थी. कालीन उद्योग में गरीब मुस्लिम परिवार के बच्चे ही ज्याद काम करते थे. बच्चों को मुक्त कराने के नाम पर उन्होंने फैक्ट्रियों को बंद करवाया लेकिन उन बच्चो का क्या हुआ कभी उन्होंने जान्ने की कोशिश भी नहीं की.
ऐसे ही उन्होंने एक बार उन्होंने अपने वालेंटियर के साथ "गोंडा" में एक सर्कस पर हमला कर उसे बंद करवाया और बच्चों को मुक्त कराने का दावा किया. इनसे पूँछिये कि - सर्कस का कलाकार बन्ने की ट्रेनिंग क्या 18 साल की उम्र के बाद दी जा सकती है. सर्कस में काम करने वालो की ट्रेनिंग तो बचपन में ही शुरू करनी पड़ती है.
अभी कल को कोई तथाकथित समाजसेवी खडा हो जाए कि - फिल्मो में भी बच्चों से काम कराना बाल मजदूरी है तो क्या 18 साल के युवा से 4 साल के बच्चे का रोल करायेगे ? बाल मजदूर बाली फैक्ट्री के मालिक को तो तंग किया जाएगा लेकिन किसी अनाथालय या बच्चो की स्किल डेवलपमेंट के लिए कोई मदद नही दी जायेगी.
क्या कैलाश सत्यार्थी ने उन फैक्ट्रियों और सर्कस के मालिकों को तंग करने के अलावा कभी ऐसा काम किया है जिससे गरीब बच्चों और उनके माँ -बाप को दो वक्त का खाना मिल सके. भदोई की कालीन फैक्ट्रियां बंद हो जाने के बाद उनमें काम करने वाले जिन बच्चों का काम छिन गया था, उनके लिए सत्यार्थी या उनके NGO ने क्या किया ?
विकसित देशों ने ऐसे पुरस्कारों के नाम पर केवल विकाशशील देशों के विकास में बाधा डालने का ही काम किया है, कभी उनकी सार्थक मदद नही की है. सत्यार्थी जैसे जाने कितने ही समाजसेवी, समाजसेवा के नाम पर विकास में बाधा डालते हुए विदेशों से पैसा और पुरस्कार पा रहे हैं जबकि वास्तव में काम करने वालों को कोई मदद नहीं मिलती.
अभी आप किसी फैक्ट्री के पल्यूशन के खिलाफ उसको बंद कराने के लिए आवाज उठाइये आपको पैसा और अवार्ड मिलने शुरू हो जायेंगे लेकिन पल्युसन कंट्रोल इक्विपमेंट बनाने वाले को किसी तरह की मदद नहीं की जाती है. डैम का बिरोध करने वालों पर पैसे की बरसात हो आयेगी लेकिन डैम के लिए तकनीक मांगोगे तो नहीं मिलेगी.
पंजाब में भी पल्यूशन को लेकर फैक्ट्रियों के खिलाफ आवाज उठाने वाले "संत सींचेवाल" को तो बहुत सम्मान और इनाम दिए गए हैं , लेकिन उद्ध्योगों का पल्यूशन वास्तव में ख़तम करने की तकनीक डेवलप करने वाले हमारे जैसे लोगों को आजतक किसी भी संस्था ने कभी किसी भी तरह की कोई मदद नहीं की है.
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