Wednesday, 7 September 2022

हम गौ-रक्षा के मुद्दे पर, अभी नार्थ ईस्ट और गोवा में मुखर क्यों नहीं है

जब हम कोई परीक्षा देते हैं तो, प्रश्नपत्र में जो प्रश्न हमें आसान लगते हैं, हम पहले उनको हल करते हैं. उसके बाद उन प्रश्नों को हल करते हैं जिनका उत्तर थोड़ा बहुत आता है, सबसे आखिर में उन प्रश्नों पर जाते हैं जो हमें मुश्किल लगते हैं. हम कभी सरल प्रश्न को इसलिए नहीं छोड़ते हैं कि- जब कठिन प्रश्न हल नहीं हो रहे तो सरल प्रश्न भी क्यों करें.

इस उदाहरण से उन लोगों को जबाब मिल गया होगा जो, गौहत्या पर रोक की बात करने पर बोलते हैं कि- पहले गोवा, नार्थईस्ट, आदि में बंद कराओ. गौ-भक्षक जिन राज्यों का नाम लेकर ताना मारते हैं, उन राज्यों का सांस्कृतिक तानावाना बहुत बिगड़ा हुआ है, विदेशी राज और मिशनरियों के प्रभाव में बहां के हिन्दू भी अपने संस्कार भूल चुके हैं.

आजादी से पहले से यहाँ मिशनरियों ने अपना प्रभाव बना लिया था, आजादी के बाद भी सेकुलर सरकारों ने वहां हिंदुत्व को उभरने नहीं दिया. लोगों का ब्रेनवाश किया गया और हिन्दू संस्कार भुला दिए गए. 90 के दशक में संघ ने इसाई मिशनरियों की तर्ज पर यहाँ काम करना प्रारम्भ किया, तब लोगों में फिर से हिंदुत्व की तरफ झुकाव पैदा हुआ.

आरएसएस के द्वारा किये गए संघर्ष और सेवा के बाद वहां के लोगों में थोड़ी जागरूकता आई है.अब पहली बार वहां के कुछ राज्यों में बीजेपी की सरकार बनी है. हम अभी एक दम से उनके ऊपर अपनी सोंच नहीं थोप सकते. इसके लिए हमें पहले वहां के हिन्दुओं को जागरूक और संस्कारी बनाना होगा, तब ही हम अपनी नीति लागू कर पायेंगे.

लेकिन उत्तर, पश्चिन, मध्य, मध्यपूर्व, दक्षिण पश्चिम, आदि के जिन राज्यों में हम आज प्रभावशाली भूमिका में हैं, हमें वहां अपनी नीति लागू करनी होगी और इसको सफल साबित कर हम नार्थ ईष्ट, केरल और गोवा जैसे राज्यों के लोगों को दिखाएँगे. जिससे वहां के हिन्दू भी अपने संस्कार और प्राचीन जीवन शैली को समझ कर उस पर गर्व कर सकें.

जिन राज्यों में हम बस अभी थोड़ा बहुत प्रासंगिक हुए हैं वहां किसी विवादास्पद मुद्दे में पड़ने के बजाये, उन लोगों की तात्कालिक आवश्यकताओं को पूरा कर उनके बीच अपना प्रभाव बढाना होगा. इसके अलावा वहां पर अपनी राजनैतिक शक्ति बढानी होगी. बिना राजनैतिक शक्ति के आप अपनी कोई नीति लागू नहीं कर सकते.

बदलाब करने के लिए पहले हमें वहां खुद को शक्तिशाली बनाना होगा. कमजोर के अच्छे बिचार भी कोई मायने नहीं रखते. हम इतने समय से हार कर, वहां क्या अपने अच्छे बिचारों को लागू कर पाए ? जिन राज्यों में हिन्दू काफी हद तक जागरूक हो चुके हैं. अभी हमें पहले वहां पर अपने धर्म और संस्कार के लिए संघर्ष करना चाहिए.


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