Friday, 27 May 2022

क्या मुस्लिम लीग की स्थापना आरएसएस ने करबाई थी ?

अगर फेसबुक नहीं आई होती तो शायद हमें कभी पता ही नहीं चल पाता कि - मुसलमानो को भारत के इतिहास के बारे में कितना झूठ सिखाया जाता है. केवल अनपढ़ ही नहीं बल्कि अच्छे खासे पढ़े लिखे मुसलमान भी ऐसी झूठी बातें करते हैं. मैं लगभग रोज ही किसी ने किसी बुद्धिजीवी मुस्लिम के द्वारा उठाये गए झूठे मुद्दे का स्पस्टीकरण देता रहता हूँ.

कभी कोई झूठ बोलता है कि - इण्डिया गेट पर स्वाधीनता संग्राम सेनानियों के नाम लिखे हुए हैं जिनमे अधिकांश मुस्लिम है, कभी कोई "नजीर मालिक" जैसा पढ़ा लिखा मुस्लमान झूठ लिखता है कि - PAC ने गाजियाबाद के हाशिमपुरा गाँव को घेर कर गोली चलाई थी, कभी कोई बोलता है कि अटल बिहारी बाजपेई की मुखबिरी से भगत सिंह को फांसी हुई. आज तो एक फेसबुकिया बुद्धिजीवी बोले कि - मुस्लिम लीग की स्थापना लन्दन से जिन्ना को बुलाकर आरएसएस ने करबाई थी.
उन का कहना है कि - आरएसएस वालों ने लन्दन से जिन्ना को बुलबाया और मुस्लिम लीग पार्टी की स्थापना कराई जिससे भारत में धार्मिक ध्रुवीकरण कराया जा सके और उसके बाद आरएसएस ने मुस्लिम लीग के साथ मिलकर चुनाव लड़ा. ऐसी झूठी बातें भी ये लोग इतने कांफीडेंस से कहते है कि - जिसे सच पता न हो, वो इसे ही सच मान लेता है.
यह झूठ बोलने वाले को उनकी पोस्ट पर जबाब दिया जा चूका है, लेकिन अन्य लोगों को बताने के लिए यह पोस्ट लिख रहा हूँ. ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की स्थापना 30 दिसंबर 1906 को ढाका में हुई थी लेकिन इसकी भूमिका कई माह पहले से बनने लगी थी. युगांतर, अनुशीलन समिति, अभिनव भारत और स्वतंत्र रूप से क्रान्ति करने वाले क्रांतिकारियों ने अंग्रेजो की नाक में दम कर रखा था.
ऐसे में प्रभावशाली और धनवान मुसलमानो को लगा कि - अगर अंग्रेज चले गए तो भारत की सत्ता हिन्दुओं के हाथ में आ जायेगी. ऐसे में नवाब मोहसिन-उल-मुल्क ने 4000 मुसलमानों के हस्ताक्षर करवाकर एक प्राथना-पत्र तैयार किया और विभिन्न क्षेत्रों के 35 प्रमुख मुसलमानों का एक प्रतिनिधिमंडल बनाया. सर आगा खां ने मुस्लिम प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया.
1 अक्टूबर, 1906 ई. को मुस्लिम प्रतिनिधिमंडल ने वायसराय "लॉर्ड मिन्टो" से शिमला में भेंट की. शिष्टमंडल ने साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व की माँग पेश की. प्रार्थना-पत्र में निम्नलिखित माँगे थीं –
1. मुसलमानों को सरकारी सेवाओं में उचित अनुपात में स्थान मिले.
2 . नौकरियों में प्रतियोगी तत्व की समाप्ति हो.
3. प्रत्येक उच्च न्यायालय और मुख्य न्यालय में मुसलमानों को भी न्यायाधीश का पद मिले.
4. नगरपालिकाओं में दोनों समुदायों को प्रतिनिधि भेजने की अलग से सुविधा दी जाए.
5. विधान परिषद् के लिए मुस्लिम जमींदारों, वकीलों, व्यापारियों, जिला-परिषदों और नगरपालिकाओं के मुस्लिम सदस्य और पाँच वर्षों का अनुभव वाले मुस्लिम स्नातकों का एक अलग निर्वाचक मंडल बनाया जाए.
6. वायसराय की काउन्सिल में भार
तीयों की नियुक्ति करने के समय मुसलमानों के हितों का ध्यान रखा जाए.
7. मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना की जाए.
वायसराय लॉर्ड मिन्टो ने प्रतिनिधिमंडल से मिलकर प्रसन्नता व्यक्त की. उसने अपनी पत्नी मेरी मिंटो को एक पत्र लिखा था कि - आज एक बहुत बड़ी बात हुई. आज एक ऐसा कार्य हुआ है, जिसका प्रभाव भारत और उसकी राजनीति ऊपर चिरकाल तक रहेगा. 6 करोड़ 20 लाख लोगों को हमने विद्रोही पक्ष में सम्मिलित होने से रोक लिया है.” मेरी मिन्टो ने इसे युगांतकारी घटना की संज्ञा दी.
वायसराय लॉर्ड मिन्टो के निमंत्रण पर भारत के अभिजात मुसलमानों को राजनीति में प्रवेश करने का अवसर मिला और वे पूरी तरह राजनीतिज्ञ बनकर शिमला से लौटे. अलीगढ़ की राजनीति सारे देश पर छा गई. अंग्रेज़ों का सहयोग और संरक्षण का आश्वासन पाकर ढाका में मुसलमानों का एक सम्मेलन 30 दिसम्बर, 1906 ई. को बुलाया गया.
अखिल भारतीय स्तर पर एक मुस्लिम संगठन की नीव इसी सभा में डाली गई. संगठन का नाम “ऑल इंडिया मुस्लिम लीग” रखा गया. नवाब सलीमुल्ला, नवाब मोहसिन आलमल, मोलाना महमूद अली जौहर, मौलाना जफर अली खान, सर सैय्यद, हकीम अजमल खां और नवाब सलीम अल्लाह खान, आदि जैसे कई महत्त्वपूर्ण मुस्लिम व्यक्ति इस संस्था की पहली बैठक में मौजूद थे.
मुस्लिम लीग का पहला अध्यक्ष सर आग़ा खान को चुना गया, इसका केंद्रीय कार्यालय अलीगढ़ में स्थापित हुआ. सभी राज्यों में शाखाएं बनाई गईं. ब्रिटेन में लंदन शाखा का अध्यक्ष सैयद अमीर अली को बनाया गया. इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य था- 'भारतीय मुस्लिमों में ब्रिटिश सरकार के प्रति भक्ति उत्पत्र करना व भारतीय मुस्लिमों के राजनीतिक व अन्य अधिकारो की रक्षा करना
नवाब वकार-उल-मुल्क ने अलीगढ़ के विद्यार्थियों की सभा में यह कहा था कि “अच्छा यही होगा कि मुसलमान अपने-आपको अंग्रेजों की ऐसी फ़ौज समझें जो ब्रिटिश राज्य के लिए अपना खून बहाने और बलिदान करने के लिए तैयार हों.” नवाब वकार-उल-मुल्क ने कांग्रेस के आन्दोलन में मुसलमानों को भाग नहीं लेने की सलाह दी थी. ब्रिटिश शासन के प्रति निष्ठा रखना मुसलमानों का राष्ट्रीय कर्तव्य है.
मुस्लिम लीग मुसलमानों की प्रतिनिधि संस्था माने जाने लगी. कुछ मुसलमानों ने इसकी आलोचना भी की परन्तु उनकी आवाज़ दबा दी गयी. वीर सावरकर के ग्रन्थ 1857 : प्रथम स्वातंत्र्य समर के कारण प्रारम्भ हुए द्वितीय स्वाधीनता संग्राम (1907 से 1915) से मुसलमानो ने दूरी बना कर रखी. इसके बाद अंग्रेजों ने पुलिस, CID, जेल कर्मचारी, आदि की भर्ती में मुसलमानो को प्राथमिकता देना शुरू कर दिया.
जबकि आरएसएस की स्थापना डा. हेडगेवार ने नागपुर में विजय दशवी वाले दिन 1925 में की थी और इसकी गतिबिधियाँ अपनी स्थापना से लेकर अगले 5 साल तक नागपुर के एक पार्क में बच्चों के खेलकूद तक ही सीमित थी. और फेसबुकिया मुसलिम बुद्धिमानो का कहना है कि - आरएसएस वालों ने जिन्ना को लन्दन से बुलाकर मुस्लिम लीग की स्थापना कराई थी, जिससे ध्रुवीकरण किया जा सके.





No comments:

Post a Comment