उडुपी दक्षिण भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है. यहाँ भगवान् श्रीकृष्ण को समर्पित कई भव्य मंदिर है. जिनमे "अनंतेश्वर मंदिर" सबसे प्राचीन एवं प्रशिद्ध है. यहां पर भगवान की आकर्षक मूर्ति को रत्नों और स्वर्ण रथ से सजाया गया है. सारा उडुपी नगर इस मंदिर के चारो और बसा हुआ है. इस नगर को दक्षिणी भारत का मथुरा कहा जाता है.
"अनंतेश्वर मंदिर" को जो चीज खास बनाती है, वह है इस मंदिर की पूजा पद्धति. यहां पूरी पूजा की प्रार्थना और प्रक्रिया एक चांदी की परत वाली खिड़की से होती है जिसमें नौ छेद होते हैं जिन्हें “नवग्रह किटिकी” कहा जाता है. उडुपी अनंतेश्वर मंदिर के नाम से जाने जाने वाले कई मंदिर श्रीकृष्ण मठ के चारों ओर हैं. मंदिर में एक आश्रम भी है,
उडुपी मठ में जन्माष्टमी, राम नवमी, नरसिंह जयंती, वसंतोत्सव, अनंत चतुर्दशी और मेघ संक्रांति के त्योहार को भव्य रूप से मनाया जाता है. उडुपी को बेहतरीन खाना बनाने वाले रसोइयों के लिए भी जाना जाता है. उडुपी का जिक्र महाभारत में भी होता है. कहा जाता है कि - महाभारत के युद्ध के समय दोनों ही सेनाओ के लिए भोजन उडुपी वालों ने ही बनाया था.
कहा जाता है कि - उडुपी के राजा महान कृष्ण भक्त थे. उनके पांडवो और कौरवों दोनों से ही बहुत अच्छे समबन्ध थे. जब पांडवो और कौरवों का युद्ध तय हो गया तो दोनों ने ही उडुपी के राजा से सहातया मांगी और दोनों से मित्रता होने के कारण, वे किसी को भी इंकार नहीं कर सके. लेकिन अपने बचन को कैसे निभाए इसको लेकर धर्म संकट में फंस गए.
वे अपनी दुविधा को लेकर श्रीकृष्ण के पास पहुंचे और कहा जिस तरह आपके कौरवो और पांडवों से समबन्ध है वैसे ही मेरे भी दोनों से मित्रवत सम्बन्ध है. आपने तो एक को अपनी सेना और दूसरे को खुद को सौंप दिया है, मुझे भी कोई ऐसा मार्ग दिखाइये कि- मैं धर्मसंकट से निकल सकूँ. तब श्रीकृष्ण ने ऐसा उपाए बताया कि - कई समस्याओं का समाधान हो गया.
दोनों सेनाओ के लिए बहुत सारे भोजन की आवश्यकता होगी और आप उडुपी के लोग अपनी पाक कला के लिए बहुत प्रशिद्ध हैं. आप दोनों सेनाओं के लिए भोजन की व्यवस्था सम्हालिए. इस तरह आपका दोनों की सहायता करने का बचन भी पूरा हो जाएगा और किसी की हत्या करने का पाप भी नहीं लगेगा. उडुपी राजा ने पूँछा- मुझे कैसे पता चलेगा कि कितना भोजन बनाना है ?
तब श्रीकृष्ण ने एक मूंगफली खाते हुए मुस्कराकर कहा - इसका संकेत मैं तुम्हे दूँगा. उसके बाद उडुपी राजा श्रीकृष्ण को प्रणाम कर, कौरवों और पांडवो से मिले. कौरव और पांडव भी इस प्रस्ताव से बहुत प्रसन्न हुए क्योंकि अपनी विशाल सेनाओं को भोजन कराने की समस्या से वे लोग भी चिंतित थे. इस प्रकार श्रीकृष्ण ने सभी की समस्या का समाधान कर दिया।
महाभारत युद्ध 18 दिन तक चला और हर दिन हजारों लाखों योद्धा, सैनिक मारे जाते थे. इस हिसाब से जैसे-जैसे सैनिक घटते जा रहे थे, महाराज उडुपी भी उनके लिए कम भोजन बनाते थे, ताकि भोजन का नुकसान न हो. आश्चर्यजनक बात थी कि हर दिन, सभी सैनिकों के लिए भोजन बिल्कुल पर्याप्त होता था. न कभी कम पड़ता था और न ही कभी फेंकना पड़ता था.
युद्ध की समाप्ति के बाद उडुपी राजा के सहायक ने उडुपी राजा से कहा- आप जितना भोजन बनाने को कहते थे हम उतना ही भोजन बनाते थे लेकिन आपको यह कैसे पता चल जाता था कि - आज शाम को इतने हजार कम सैनिक भोजन करेंगे अर्थात आज इतने सैनिको और योद्धा मारे जाएंगे उसकी इतनी सटीक संख्या का पता आपको कैसे चल जाता था.
तब उडुपी राजा ने कहा - 'हर रात के भोजन के उपरांत सोने से पहले श्रीकृष्ण के पांडाल में जाता था और एक प्याले में उबले हुए मूंगफली के दाने गिनकर रख देता था. सुबह को जब वह प्याला उठाकर लाता था तो दानो को फिर गिनता था. जितने दाने कम मिलते थे, मैं उतने हजार लोगों का खाना उस दिन कम बनबाता था. अर्थात उतने हजार लोग उस दिन मारे जाते थे.
युद्ध की समाप्ति के बाद जब उडुपी राजा वापस जाने लगे तो श्रीकृष्ण ने उनको वरदान दिया कि- उडुपी के लोग जन्मजात पाक कला में निपुण होंगे. उनकी पाक कला विश्व में विख्यात होगी. उडुपी वालों के भोजन से कभी कोई असंतुष्ट नहीं होगा. वे किसी कार्यक्रम में भोजन बनायेंगे तो न वह कभी कम पड़ेगा और न ही कभी बेकार जाएगा.
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