Wednesday, 10 June 2020

भारतीय इतिहास के पुनर्लेखन की आवश्यकता

अंग्रेजों ने 1857 के क्रांतिकारियों को गद्दार , गदरी , राजद्रोही प्रचारित किया था, अपने अंग्रेज मालिकों को खुश करने के लिए, चापलूस रायबहादुर और खान बहादुर भी यही प्रचारित करते रहे. उसके अलावा 1885 में अंग्रेजों द्वारा बनाया गया, काले अंग्रेजों का कलब "कांग्रेस" भी अंग्रेजों के इसी इतिहास को आम जनता को बताती थी.
अंग्रेजो और काले अंग्रेजों के साहित्य में 1857 के स्वाधीना संग्राम को राजद्रोह या ग़दर बताया जाता था. जिसमे बहादुर शाह जफ़र को निकम्मा शायर, झांसी की रानी को राज सत्ता की लालची, बेगम हजरत महल को तवायफ, वाजिद अली शाह को विलासी नबाब, तात्या टोपे को लुटेरा, मंगल पांडे को राजद्रोही, आदि बताया जाता था.
लेकिन प्रथम स्वाधीना संग्राम के लगभग 50 साल बाद वीर सावरकर के ग्रन्थ "1857- प्रथम स्वातंत्र्य समर" ने अंग्रेजो और उनके चापलूसों की बाजी को पलट कर रख दिया. सारा देश अंग्रेजों के इतिहास को फेंककर सावरकर का इतिहास पढ़कर स्वाधीनता सेनानियों का सम्मान करने लगा था. इसी कारण सावरकर को कालापानी की सजा दी गई.
जो काम 1857 के सेनानियों के साथ अंग्रेजों ने किया था, वही काम आजादी के बाद दुसरे / तीसरे स्वाधीनता संग्राम के सेनानियों के साथ कांग्रेस ने भी किया. ठाकुर रोशन सिंह को डकैत, चन्द्र शेखर आजाद को लुटेरा, भगत सिंह को आतंकी, सावरकर को माफी मांगने वाला, उधम सिंह को पागल, बोस को विश्वयुद्ध अपराधी बताया.
लेकिन जिस तरह स्वातंत्र्य वीर सावरकर ने 50 साल बाद "1857- प्रथम स्वातंत्र्य समर" नामक ग्रन्थ लिखकर, अंग्रेजों की सारी चालबाजी को पलटकर रख दिया था. उसी तरह गैर कांग्रेसी साहित्यकारों और फिल्मकारों ने अपने निजी प्रयासों से देशभक्तों की कहानी जन जन तक पहुंचाया. उनके प्रयासों ने देशभक्तों की कहानी को ज़िंदा रखा.
सोशल मीडिया आने के बाद तो कांग्रेस की सारी बे-ईमानी देश के सामने बेनकाब हो चुकी है. आज लोग पिछली घटनाओं की चर्चा करते हैं और उनसे सम्बंधित सवालों के जबाब जान्ने के प्रयास करते है, तो उनको धीरे धीरे सब समझ आ जाता है. आज देश की लगभग एक तिहाई से ज्यादा जनता सच को जान चुकी है, शेष भी जल्द जान जायेगी.
जब स्वातंत्र्यवीर वीर सावरकर ने प्रथम स्वाधीनता संग्राम के क्रांतिकारियों को सम्मान देने वाला ग्रन्थ "1857- प्रथम स्वातंत्र्य समर" लिखा तो उनके ग्रन्थ पर प्रतिबन्ध लगाकर उनको कालापानी की सजा दे दी थी. तब लाला हरदयाल, मैडम कामा, करतार सिंह साराभा, सुखदेव, भगत सिंह. आदि ने इसे चोरी से छपवाया और वितरित किया था.
सरकार स्कूलों के पाठ्यक्रम में कब परिवर्तन करेगी यह तो सरकार जाने. लेकिन मैंने यह संकल्प ले रखा है कि - मैं भारत के इतिहास के गुमनाम महापुरुषों की गाथाओं को ढूंढ ढूंढ कर, सोशल मीडिया के माध्यम से जन जन तक पहुंचाता रहूँगा. आप से भी अपेक्षा करता हूँ कि उन गाथाओं को शेयर कर अपने अन्य मित्रों तक पहुंचाएंगे.

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