Sunday, 26 March 2023

चिपको आंदोलन

भारत में जब भी पर्यावरण संरक्षण की बात होती है तो 'चिपको आंदोलन' का नाम सबसे ऊपर लिखा नज़र आता है. यह मात्र एक आंदोलन नहीं था बल्कि प्रकृति को बचाने के लिए शुरू की गई क्रान्ति थी. इसकी शुरुआत उत्तराखंड के चमोली जिले के रैणी गांव में गौरा देवी के नेतृत्व में 27 महिलाओं द्वारा की गई थी. ये महिलाये पेड़ों को बचाने के लिए उनसे चिपक कर खड़ी हो गई थी.

दरअसल, 1973 की बात है जब इंदिरा गांधी की सरकार थी तब उत्तराखंड के चमोली में पेड़ों की नीलामी की गई और उनको काटने का ठेका दे दिया गया. गढ़वाल के पर्यावरण प्रेमी कार्यकर्ताओं ने उसका विरोध किया और यह काम रुक गया. सरकार उनको मानाने की कोशिश करती रही लेकिन पर्यावरण प्रेमी कार्यकर्ताओं ने उनकी बात मानने से मना कर दिया.
काफी समय तक यह मामला लटका रहने के बाद सरकार ने एक चाल चली. सरकार ने पर्यावरण कार्यकर्ताओं को वार्ता के बहाने गोपेश्वर में बुलाया. सरकार की चाल से अनजान गाँव के ज्यादातर पुरुष कार्यकर्ता, चण्डी प्रसाद भट्ट के नेतृत्व में सरकार से वार्ता करने गोपेश्वर चले गए. दूसरी तरफ सरकार ने पेड़ काटने वालों क बड़ा दल रैणी गाँव में भेज दिया.
सरकार की मनसा थी कि वहां पुरुष होंगे नहीं तो पेड़ काटने वालों का बड़ा दल एक ही दिन में ज्यादातर पेड़ों को काट देगा, उसके बाद जब कार्यकर्ता वहां पहुंचेंगे तो किसी भी तरह से उनको भी बहला लिया जाएगा. जैसे ही मजदूरों ने पेड़ काटने शुरू किये एक लड़की ने देख लिया और उसने भागकर गाँव में बताया कि बहुत सारे मजदूर पेड़ काटने आ गए हैं
तब गाँव की एक महिला गौरादेवी ने अपने गाँव की महिलाओं को इकठ्ठा किया और कटाई स्थल पर पहुँच गई और उन्होंने अधिकारियों और ठेकेदारों से कहा कि गाँव में पुरुष नहीं है और वो सरकार से बातचीत करने शहर गए हुए है जब वो आ जाए तो कल अपना काम करना. लेकिन वो तो इसी बहाने से पुरुषों को हटाकर पेड़ काटने वहां आये थे.
जब वो अधिकारी और ठेकेदार नहीं माने तो गौरा देवी और उनके साथ आई 27 महिलायें पेड़ों से चिपक गई और बोलीं कि पेड़ों को काटने से पहले तुम्हे हमको काटना होगा. इस पर ठेकेदार ने उनको बंदूकों से डराना चाहा लेकिन वे महिलायें नही मानी. उनके ऐसे प्रयासों को देखकर मजदूरों ने भी पेड़ काटने से मना कर दिया और ठेकेदार को वापस जाना पड़ा
शाम को पुरुष भी वापस आ गए और फिर अगले दिन चण्डी प्रसाद भट्ट ने गौरा देवी के प्रयास को बहुत बड़ा आंदोलन बना दिया. इस आंदोलन की शुरुआत चंडी प्रसाद भट्ट और गौरा देवी की ओर से की गई थी. इसके बाद प्रसिद्ध पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा ने आगे इसका नेतृत्व किया. इसके बाद तो दुनियाभर के बहुत से प्रभावशाली लोग इस आंदोलन से जुड़ गए.
इस आंदोलन का नतीजा यह रहा है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा हिमालयी वनों में पेड़ों की कटाई पर 15 साल के लिए रोक लगा दी. आज चिपको आंदोलन की बर्षगांठ है. सारी दुनिया के पर्यावरण प्रेमी चिपको आंदोलन के लिए गौरा देवी और उनकी साथी महिलाओं को आज याद करते हैं. इसके अलावा चंडी प्रसाद भट्ट और सुंदरलाल बहुगुणा को भी याद किया जाता है

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