Wednesday, 2 November 2022

तक्षशिला विश्वविद्यालय

गान्धार राज्य की चर्चा ऋग्वेद में मिलती है. प्राचीन ग्रंथों के अनुसार यहाँ गन्दर्भों का राज था. तक्षशिला की जानकारी सर्वप्रथम वाल्मीकि रामायण से होती है. अयोध्या के राजा दशरथ की एक पत्नी कैकेई, गांधार क्षेत्र में स्थित कैकेय राज की राजकुमारी थी.

गन्दर्भों से युद्ध के समय कैकेई ने दशरथ की मदद की थी. श्रीराम के छोटे भाई और दशरथ - कैकेई के पुत्र "भरत" ने अपने नाना केकयराज अश्वपति के आमन्त्रण पर गन्धर्वो के देश (गान्धार) को जीता और अपने दो पुत्रों को वहाँ का शासक नियुक्त किया था.
सिंधु नदी गन्धर्व देश (गांधार राज्य) के बीच से बहती थी. भरत के दो पुत्र थे तक्ष और पुष्कल. दोनों ने सिंधु के एक एक ओर तक्षशिला और पुष्करावती नामक अपनी-अपनी राजधानियाँ बसाई. तक्षशिला सिन्धु के पूर्वी तट पर थी और पुष्करावती पश्चिमी किनारे पर.
राजा तक्ष ने वहां आवासीय गुरुकुल की स्थापना की, जहाँ समस्त आर्यावर्त से लोग शिक्षा के लिए आते थे. रामायण काल से लेकर महाभारत काल तक यह ज्ञान विज्ञान का केंद्र बना रहा. यहाँ वेद, आयुर्वेद, राजनीति के साथ शस्त्र विद्या भी सिखाई जाती थी.
महाभारत युद्ध के बाद परीक्षित के वंशजों ने वहाँ अधिकार बनाए रखा. जनमेजय ने अपना नागयज्ञ वहीं किया था. काफी समय तक यहाँ आर्यों का ही अधिपत्य रहा. यह हमेशा शिक्षा का बड़ा केंद्र बना रहा. ऐसा माना जाता है कि यहीं पर आयुर्वेद का विकास हुआ.
गौतम बुद्ध के समय यहाँ गान्धार के राजा पुक्कुसाति का अधिपत्य था. लगभग 600 ईसा पूर्व फारस के शासक कुरुष ने सिन्धु प्रदेशों पर आक्रमण किया था. उसके बाद तक्षशिला पर लगभग 200 वर्षों तक फारस का शासन रहा.
मकदूनिया के आक्रमणकारी विजेता सिकंदर के समय की तक्षशिला की चर्चा करते हुए स्ट्रैबो ने लिखा है कि वह एक बड़ा नगर था, अच्छी विधियों से शासित था. वहाँ के शासक बैसिलियस (अथवा टैक्सिलिज) सिकन्दर से मित्रता कर ली थी,
उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र आंभी भी सिकन्दर का मित्र बना रहा. किंतु थोड़े ही दिनों पश्चात् चाणक्य के मार्गदर्शन में चंद्रगुप्त मौर्य ने उत्तरी पश्चिमी सीमाक्षेत्रों से सिकंदर के सिपहसालारों को मार भगाया और तक्षशिला पर अधिकार कर लिया.
उसके बाद तक्षशिला मौर्य साम्राज्य के उत्तरापथ प्रान्त की राजधानी हो गई और मौर्य राजकुमार मन्त्रियों की सहायता से वहाँ शासन करने लगे. उसका पुत्र बिंदुसार, पौत्र सुसीम और प्रपौत्र कुणाल वहाँ बारी-बारी से प्रान्तीय शासक नियुक्त किए गये.
मत्रियों के अत्याचार के कारण कभी कभी विद्रोह भी होते रहे. बिन्दुसार ने सुसीम के प्रशासकत्व के समय में अशोक को और अशोक के मगध सम्राट बन जाने के बाद कुणाल को उन विद्रोहों को दबाने के लिये भेजा गया था.
सम्राट अशोक के बौद्ध मत स्वीकारने के बाद तक्षशिला विश्वविद्यालय बौद्ध धर्म का केंन्द्र बनने लगा था और यहाँ शस्त्र शिक्षा को पूरी तरह से बंद कर दिया गया. इसका लाभ उठाकर यहाँ यूनानियों ने अधिकार कर लिया और दिमित्र (डेमेट्रियस) और यूक्रेटाइंड्स ने वहाँ शासन किया.
यूनानियों के शासन में भी यहाँ चिकित्सा शिक्षा पर काफी काम हुआ लेकिन यूनानियों ने आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति को यूनानी चिकित्सा पद्धति और आयुर्वेदिक नुस्खों को को ही थोड़ा बहुत फेर बदल कर यूनानी दवाइयों का नाम दे दिया.
पहली शताब्दी ईसवी में शकों ने आक्रमण किया और अधिकार कर लिया. कुछ समय बाद उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने शकों को खदेड़कर ईरान तक अधिकार कर लिया. राजा विक्रमादित्य के नाम पर तक्षशिला के इस विश्व विद्यालय को विक्रमशिला भी कहा जाने लगा.
उस समय के कुछ कवियों और लेखकों ने अपने साहित्य में तक्षशिला को विक्रमशिला भी लिखा. लेकिन जब विक्रमादित्य के बड़े भाई सन्यासी भर्तहरि ने उनको यह बताया कि- तक्षशिला का नाम राजा राम के भाई भरत के पुत्र तक्ष के नाम पर है तो उन्होंने खुद ही अपना नाम वापस ले लिया.
पाँचवीं शताब्दी में हूणों ने भारत पर भयानक आक्रमण किये. इन आक्रमणों में तक्षशिला नगर भी ध्वस्त हो गया. हूणों ने तक्षशिला के विद्याकेंद्र विक्रमशिला विश्व विद्यालय को पूरी तरह से नष्ट कर दिया और वहां शिक्षकों और शिक्षार्थियों को मार भगाया.
गुप्त काल में जब चीनी यात्री "फाह्यान" वहाँ गया तो उसे वहाँ विद्या के प्रचार का कोई विशेष चिह्न नहीं प्राप्त हो सका था. हूणों के आक्रमण के पश्चात् भारत आने वाले दूसरे चीनी यात्री ह्वेनचांग ने भी लिखा था कि असभ्य हूणों ने भारतीय संस्कृति और विद्या के एक प्रमुख केन्द्र को ढाह दिया था.
उसके बाद भरतपुत्र "तक्ष" द्वारा स्थापित शिक्षा का वह केंद्र नष्ट हो गया. कुछ शतब्दियों बाद यहाँ इस्लामी राजाओं का अधिपत्य हो गया और अब यहाँ शिक्षा का कोई काम नहीं रह गया. ब्रिटिश शासन काल में प्राचीन साहित्य और खंडहरों के आधार पर वहां खोज प्रारम्भ हुई
प्राचीन तक्षशिला के खण्डहरों को खोज निकालने का प्रयास सबसे पहले जनरल कनिंघम ने शुरू किया था, किन्तु ठोस काम 1912 ई0 के बाद सर जॉन मार्शल के नेतृत्व में शुरू हुआ, उन्होंने कई स्थानों पर छितरे हुए अवशेष खोद निकाले गए हैं.
यहाँ पर अलग अलग युगों की कई बस्तियों के अवशेष मिले हैं. पहली बस्ती वर्तमान पाकिस्तान के रावलपिंडी जिले में भीर के टीलों से, दूसरी बस्ती रावलपिंडी से 22 मील उत्तर सिरकप के खण्डहरों से और तीसरी बस्ती उससे भी उत्तर सिरसुख से मिली है.
पहली बस्ती पाँचवी शती ईसवी पूर्व और दूसरी शती ईसवी पूर्व के बीच की मानी जाती हैं. दूसरी बस्ती यूनीनी बाख्त्री युग की तथा तीसरी बस्ती शक-कुषण युग की मानी जाती हैं. खुदाइयों में वहाँ स्तूपों और विहारों (विशेषत: कुणाल विहार) के चिह्न मिले हैं.
तक्षशिला राजनीति और शस्त्रविद्या की शिक्षा का अन्यतम केन्द्र थी. आयुर्वेद और विधिशास्त्र के लिए वहाँ विशेष विद्यालय थे. तक्षशिला के स्नातकों में भारतीय इतिहास के कुछ अत्यन्त प्रसिद्ध पुरुषों के नाम मिलते हैं. संस्कृत साहित्य के सर्वश्रेष्ठ वैयाकरण पाणिनि ने तक्षशिला में ही शिक्षा पाई थी,
गौतम बुद्ध के समकालीन कोसलराज प्रसेनजित्, मल्ल सरदार बन्धुल एवं लुटेरा अंगुलिमाल, आदि वहाँ से शिक्षित थे. चाणक्य वहीं के स्नातक और अध्यापक थे. उनके प्रिय शिष्य चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरु के साथ मिलकर मौर्य साम्राज्य की स्थापना की.
तक्षशिला में प्राय- उच्चस्तरीय विद्याएँ ही पढ़ाई जाती थीं. वहाँ के पाठयक्रम में आयुर्वेद, धनुर्वेद, हस्तिविद्या, त्रयी, व्याकरण, दर्शनशास्त्र, गणित, ज्योतिष, गणना, संख्यानक, वाणिज्य, सर्पविद्या, तन्त्रशास्त्र, संगीत, नृत्य और चित्रकला आदि का मुख्य स्थान था.
लेकिन कुछ विद्वानों का मत है कि- तक्षशिला में कोई विश्वविद्यालय जैसी एक संगठित संस्था नहीं थी लेकिन यह विद्या का ऐसा केन्द्र था जहाँ अलग-अलग छोटे-छोटे गुरुकुल होते थे और व्यक्तिगत रूप से विभिन्न विषयों के आचार्य आगंतुक विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान करते थे.

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