Friday, 4 November 2022

सनातन संस्कृति प्रतीक "तिलक"

सनातन संस्कृति में प्राचीन काल से ही मस्तक पर तिलक लगाने की परंपरा चली आ रही है. किसी भी धार्मिक कार्य को करने से पहले माथे पर तिलक अवश्य लगाया जाता है. बिना तिलक लगाए न तो पूजा की अनुमति होती है और न ही पूजा संपन्न मानी जाती है. यह मंगल और शुभता का प्रतीक है. इसके अलावा यह आपको आकर्षक भी बनाता है.

जैसा कि - आप सभी को पता ही है कि सनातन धर्म में कोई भी परम्परा अकारण नहीं है. माथे पर तिलक लगाना केवल अपने आपको अलग अथवा आकर्षक दिखाना ही नहीं बल्कि इसके पीछे वैज्ञानिक कारण है. ऋषि मुनियों द्वारा खोजे गए प्राचीन शरीर विज्ञानं के अनुसार, मानव शरीर में सात सूक्ष्म ऊर्जा केंद्र होते हैं, जिन्हें चक्र कहते हैं.
मस्तिष्क के बीच में जिस स्थान पर तिलक लगाया जाता है वहां आज्ञाचक्र स्थापित होता है. आज्ञाचक्र के एक ओर दाईं ओर अजिमा नाड़ी होती है तथा दूसरी ओर वर्णा नाड़ी है. साधना और एकाग्रता के लिए इस चक्र का बहुत महत्त्व है. ज्योतिष में आज्ञाचक्र बृहस्पति का केन्द्र है. बृहस्पति देवताओं के गुरु है. इसलिए इसे गुरु चक्र भी कहते है,
इस स्थान पर प्रतिदिन तिलक लगाने से यह चक्र जाग्रत होता है और व्यक्ति को ज्ञान, समय से परे देखने की शक्ति, आकर्षण प्रभाव और उर्जा प्रदान करता है. इस स्थान पर अलग-अलग पदार्थों के तिलक लगाने का अलग-अलग महत्व है. अलग कामना की सिद्धि के लिए केसर, चन्दन, हल्दी, कुमकुम, भस्म, काजल, आदि का तिलक लगाया जाता है.
जो व्यक्ति जीवन में सफलता, आकर्षक व्यक्तित्व, सौंदर्य, धन, संपदा, आयु, आरोग्य प्राप्त करना चाहता है उसे प्रतिदिन अपने मस्तक पर केसर का तिलक करना चाहिए. शुद्ध केसर बहुत महंगा होता है और अक्सर शुद्ध केसर मिलता भी नहीं है इसलिए चन्दन, हल्दी या रोली का तिलक ही लगाना चाहिए. भस्म और काजल का तिलक तंत्र सिद्धि के लिए उचित है.
प्रत्येक उंगली से तिलक लगाने का अपना-अपना महत्व है. मोक्ष की इच्छा रखने वाले को अंगूठे से, शत्रु नाश करने की कामना करने वाले को तर्जनी से, धनवान बनने की इच्छा है तो मध्यमा से और सुख-शान्ति चाहते हैं तो अनामिका से तिलक लगा जाना चाहिए. देवताओं की मूर्ति अथवा चित्र को तिलक सदैव मध्यमा उंगली से ही लगाना चाहिए.

मस्तक पर तिलक लगाने को शुभ और सात्विकता का प्रतीक माना जाता है. यदि आपके घर / समुदाय / संस्था में कोई भी मंगल कार्य हो रहा तो उसमे सम्मिलत होने के लिए, आने वाले हर अतिथि का स्वागत तिलक लगाकर करना चाहिए, इसी प्रकार जब कोई सम्मानित अतिथि आपके घर से वापस जा रहा हो तो उसे तिलक लगाकर विदा करना चाहिए.
तिलक लगाने के नियम
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बिना स्नान किए तिलक ना लगाएं.
पहले तिलक अपने इष्ट या भगवान को लगाएं.
फिर स्वयं को तिलक लगाएं.
सामान्यतः स्वयं को अनामिका उंगली से, तथा दूसरे को अंगूठे से तिलक लगाएं.
सोने से पहले मुंह को धो लें. तिलक लगाकर कभी न सोएं.
तिलक को लगाकर मांस मदिरा का सेवन न करें.
किस तरह के तिलक से किस तरह का लाभ होता है ?
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केसर के तिलक से यश बढ़ता है, कार्य पूरे होते हैं.
चन्दन के तिलक से एकाग्रता बढती है.
रोली और कुमकुम के तिलक से आकर्षण बढ़ता है, आलस्य दूर होता है.
गोरोचन के तिलक से विजय की प्राप्ति होती है.
अष्टगंध के तिलक से विद्या बुद्धि की प्राप्ति होती...
भस्म या राख के तिलक से दुर्घटनाओं और मुकदमेबाज़ी से रक्षा होती है.
काजल का तिलक विशेष तांत्रिक सिद्धि के लिए लगाया जाता
किस ग्रह को मजबूत करने के लिए कौन सा तिलक लगाएं ?
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सूर्य :- लाल चन्दन का तिलक अनामिका उंगली से लगाएं.
चन्द्रमा :- सफ़ेद चन्दन का तिलक कनिष्ठा उंगली से लगाएं.
मंगल :- नारंगी सिन्दूर का तिलक अनामिका से लगाएं.
बुध :- अष्टगंध का तिलक कनिष्ठा उंगली से लगाएं.
बृहस्पति :- केसर का तिलक तर्जनी से लगाएं.
शुक्र :- रोली और अक्षत अनामिका उंगली से लगाएं.
शनि / राहु / केतु :- कंडे या धूप बत्ती की राख तीन उंगलियों से लगाएं.
तिलक कैसे बनाएं ?
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ताम्बे के पात्र में थोड़ी सी केसर / हल्दी / रोली रोली ले लें.
इसमें थोड़ा सा गंगा जल / गुलाब जल / साफ़ पानी मिलाएं.
इसका पेस्ट बनाकर पहले श्रीकृष्ण को तिलक लगाएं.
फिर स्वयं को तिलक करें.
विजय और शक्ति के लिए कैसे बनायें तिलक?
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लाल चन्दन घिस लें.
इसको चांदी के या शीशे के पात्र में रख लें.
इसको देवी के सामने रखकर "ॐ दुं दुर्गाय नमः" 27 बार जाप करें.
अब इस चन्दन को देवी के चरणों में लगाएं.
इसके बाद चन्दन को माथे और बाहों पर लगाएं.

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