Tuesday, 27 September 2022

आखिर एंट्रेंस एग्जाम से किसी को परेशानी क्या है ?

कई सारे इंटर कॉलेज वाले इस बात से नाराज है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी अपने कॉलेजेज में एडमिशन के लिए CUET एग्जाम क्यों ले रही है. इसमें नाराजगी की क्या बात है ? हर कालेज / संस्थान / यूनिवर्सिटी को अधिकार है कि वह अपने स्टैण्डर्ड के अनुसार योग्य बच्चों का चयन करे और इसकी परीक्षा वह खुद ले. इसमे किसी को नाराज नहीं होना चाहिए।
बहुत सारे इंटर कालेज अपने यहाँ नक़ल करवाकर भी बच्चों को ज्यादा नंबर दिलबा देते हैं, अगर केवल 12 की पर्सेंटेज के हिसाब से ही एडमिशन दे दिया जाता है तो कई बार ऐसे कालेज के बच्चे अच्छी पर्सेंटेज होने के कारण नकलची बच्चे का चयन हो जाता है और सख्त एग्जाम से पास होने वाले अधिक योग्य बच्चों का एडमिशन होने से रह जाता है.
जबकि प्रवेश परीक्षा से पास होकर जो बच्चे एडमिशन लेते हैं वे उस संस्थान के मानकों के अनुसार योग्य होते है, CUET एग्जाम परेशानी क्या है ? जो बच्चा इंटर में 99% अंक ला सकता है वह CUET एग्जाम भी पास कर सकता है. इंजीनियरिंग, मेडिकल, कानून और मैनेजमेंट की पढ़ाई के लिए भी तमाम संस्थान अपने खुद के एंट्रेंस एग्जाम लेते हैं.
इंटर में पढ़ने वाले सभी होशियार बच्चे अपने बिषय के अनुसार कई सारे एग्जाम देते हैं, जिन एग्जाम को क्वालीफाई कर लेते है उनमे से सबसे बेहतर में एडमिशन ले लेते हैं. अभी हाल ही में मैं IIM में सलेक्ट हुए कुछ बच्चों से मिला, उनमे से सभी बच्चों के अंक इंटर में भी 95% से अधिक अंक है, उन बच्चों ने कई कई संस्थानो के इंट्रेंस एग्जाम क्लियर किये है.
उनमें से उत्तर भारत में रहने वाले लगभग हर बच्चे ने CUET का एग्जाम भी दिया था और उनमे से लगभग हर बच्चे के 700 से ज्यादा (800 में से) अंक हैं. मैं 780 अंक वाले कोभी जानता हूँ जो DU नार्थ कैम्पस के योग्य होने के बाबजूद वहां नहीं जाएंगे. उसका लाभ कम अंक पाने वाले बच्चों को भी मिलेगा जो फिलहाल अभी वोटिंग लिस्ट में हैं.
हर अच्छा इंजीनियरिंग कालेज JEE के माध्यम से, हर अच्छा मेडकल कालेज NEET के माध्यम से, हर अच्छा LAW कालेज CLAT के माध्यम से, हर अच्छा मैनेजमेंट कॉलेज अपने अपने IIM के लिए एग्जाम लेकर छात्र छात्राओं का चयन करता ह, वरना घर से बुलाकर इंजीनियरिंग, मेडिकल, BBA, BCA, LLB, आदि कराने वाले कॉलेजों की भी कमी नहीं है
अगर JEE, CLAT, NEET, IIM, CUET, आदि एग्जाम ख़त्म करके केवल 12वीं की पर्सेंटेज के आधार पर ही एम्स, IIT, IIM, आदि में एडमिशन देना शुरू कर दिया जाए तो क्या आपको लगता है कि वास्तव में योग्य छात्र / छात्राये ही इनमे जा सकेंगे ?
कुंवर पवनीश तोमर व्याघ्र, Manoj Giri and 2 others
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संघ परिवार में नेतृत्व परिवर्तन

सन 2000 की बात है. कई वैश्विक संस्थाए आरएसएस को दुनिया का सबसे बड़ा स्वंयसेवी संगठन स्वीकार कर चुकी थीं. केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली NDA की सरकार थी जिसके बारे में कहा जाता था कि- वह आरएसएस के निर्देश पर काम करती है.

उस समय विश्व के, उस सबसे बड़े संगठन (आरएसएस) के सर संघ चाल्रक थे प्रो. राजेन्द्र सिंह उर्फ़ रज्जू भैया, उन दिनों रज्जू भैया कुछ अस्वस्थ चल रहे थे और रज्जू भैया ने दायित्वमुक्त होने के संकेत दिए. वैश्विक मीडिया की निगाह भी उन पर लग गई.
मीडिया को जिज्ञासा थी कि - संघ में क्या होगा ? कौन नया सर संघ चालक कौन बनेगा और यह अब कैसे बनेगा ? लेकिन कहीं से भी कोई ऐसी खबर नहीं मिल पा रही थी कि- संघ में नए प्रमुख (सर संघचालक) बनने को लेकर क्या चल रहा है.
10 मार्च 2000 से नागपुर में अखिल भारतीय प्रतिनधि सभा का कार्यक्रम प्रारम्भ होना था. मीडिया भी वहां कोई मसालेदार खबर की तलाश में पहुँच गया था. मीडिया को लग रहा था कि- हर छोटे बड़े संगठन की तरह यहाँ भी पद के लिए कुछ हंगामा तो जरुर होगा.
कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में तत्कालीन सरसंघचालक रज्जू भैया बौद्धिक दे रहे थे और स्वयंसेवक खामोशी से सुन रहे थे. बौद्धिक के अंत में उन्होंने कहा कि- मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है और मैं अपने दायित्वों को निभा पाने में खुद को असमर्थ महसूस कर रहा हूँ.
मुझे लगता है कि -सुदर्शन जी (के. एस. सुदर्शन ) इस कार्य को ज्यादा अच्छी तरह से कर सकते हैं. उनकी इस बात पर मीडिया की नजरे सामने बैठे स्वयंसेवको पर चली गई. वे उनकी कोई ऐसी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा कर रहे थे, जिसको ब्रेकिंग न्यूज बनाया जा सके.
लेकिन वहां न तो इस बात पर ताली बजीं और न ही किसी ने अस्वीकृति जताई. सुदर्शन जी अपने स्थान पर खड़े हुए. उनके खड़े होते ही एक जय घोष लगा "भारत माता की जय". उसके बाद रज्जू भैया ने हाथ पकड़कर सुदर्शन जी को अपनी कुर्सी पर बिठाया.
सुदर्शन जी के कुर्सी पर बैठते ही रज्जू भैया, मंच के सामने स्वंयसेवकों के साथ दरी पर बैठ गए. यह देखकर सारा विश्व मीडिया आश्चर्यचकित रह गया. इतना बड़ा संगठन और इतनी सहजता से नेतृत्व परिवर्तन ? उनको तो विशवास ही नहीं हो पा रहां था.
आज जब एक बहुत पुरानी पार्टी में नेत्रत्व परिवर्तन के नाम पर होने वाली नौटंकी को देखते हैं तो संघ और उसके अन्य अनुशान्गिक संगठनो में समय समय पर होने वाले दायित्व परिवर्तन और नेतृत्व परिवर्तन की सहजता को याद करके गर्व महसूस होता है.
अभी कांग्रेस अध्यक्ष के पद और राजस्थान मुख्यमंत्री पद को लेकर विवाद आप देख ही रहे है, जबकि अभी कल (26/09/22) ही भारतीय जनता पार्टी का भी अध्यक्ष का चुनाव हुआ और किसी को पता तक नहीं चला, जे. पी. नड्डा जी सर्वसम्मति से दुबारा अध्यक्ष चुन लिए गए

Monday, 19 September 2022

कैलाश सत्यार्थी एवं उनके जैसे तथाकथित समाजसेवी

कैलाश सत्यार्थी को नाबेल पुरस्कार मिलने पर गर्व भले की कर लीजिये कि एक भारतीय को नोबल प्राइज मिला है लेकिन उनकी ज्यादातर बातें भारत जैसे देश के लिए किसी भी प्रकार से लाभदायक नही है. विकासशील देशों का विकास रोकने के लिए उनके जैसे लोगों को ऐसे पुरस्कार देना विकसित देशों की रणनीति का एक हिस्सा है.

इन पुरुष्कारों की हकीकत यह है कि - विकसित देशों के पैसे से चलने वाली विदेशी संस्थाए भारत या अन्य विकासशील देशो के विकास में बाधा डालने वाले हर व्यक्ति और हर NGO को पैसा देने या पुरस्कार देने को तो तुरंत तैयार हो जाते हैं लेकिन अगर कोई संस्था समस्या का हल करने की कोशिश करेगी, तो ऐसे लोगों को कभी मदद नहीं देते हैं.
कैलाश सत्यार्थी ने वाराणसी के पास 'भदोई" में कालीन की फैक्ट्रियों में काम करने वाले बच्चो के लिए आवाज उठाकर प्रशिद्धि पाई थी. कालीन उद्योग में गरीब मुस्लिम परिवार के बच्चे ही ज्याद काम करते थे. बच्चों को मुक्त कराने के नाम पर उन्होंने फैक्ट्रियों को बंद करवाया लेकिन उन बच्चो का क्या हुआ कभी उन्होंने जान्ने की कोशिश भी नहीं की.
ऐसे ही उन्होंने एक बार उन्होंने अपने वालेंटियर के साथ "गोंडा" में एक सर्कस पर हमला कर उसे बंद करवाया और बच्चों को मुक्त कराने का दावा किया. इनसे पूँछिये कि - सर्कस का कलाकार बन्ने की ट्रेनिंग क्या 18 साल की उम्र के बाद दी जा सकती है. सर्कस में काम करने वालो की ट्रेनिंग तो बचपन में ही शुरू करनी पड़ती है.
अभी कल को कोई तथाकथित समाजसेवी खडा हो जाए कि - फिल्मो में भी बच्चों से काम कराना बाल मजदूरी है तो क्या 18 साल के युवा से 4 साल के बच्चे का रोल करायेगे ? बाल मजदूर बाली फैक्ट्री के मालिक को तो तंग किया जाएगा लेकिन किसी अनाथालय या बच्चो की स्किल डेवलपमेंट के लिए कोई मदद नही दी जायेगी.
क्या कैलाश सत्यार्थी ने उन फैक्ट्रियों और सर्कस के मालिकों को तंग करने के अलावा कभी ऐसा काम किया है जिससे गरीब बच्चों और उनके माँ -बाप को दो वक्त का खाना मिल सके. भदोई की कालीन फैक्ट्रियां बंद हो जाने के बाद उनमें काम करने वाले जिन बच्चों का काम छिन गया था, उनके लिए सत्यार्थी या उनके NGO ने क्या किया ?
विकसित देशों ने ऐसे पुरस्कारों के नाम पर केवल विकाशशील देशों के विकास में बाधा डालने का ही काम किया है, कभी उनकी सार्थक मदद नही की है. सत्यार्थी जैसे जाने कितने ही समाजसेवी, समाजसेवा के नाम पर विकास में बाधा डालते हुए विदेशों से पैसा और पुरस्कार पा रहे हैं जबकि वास्तव में काम करने वालों को कोई मदद नहीं मिलती.
अभी आप किसी फैक्ट्री के पल्यूशन के खिलाफ उसको बंद कराने के लिए आवाज उठाइये आपको पैसा और अवार्ड मिलने शुरू हो जायेंगे लेकिन पल्युसन कंट्रोल इक्विपमेंट बनाने वाले को किसी तरह की मदद नहीं की जाती है. डैम का बिरोध करने वालों पर पैसे की बरसात हो आयेगी लेकिन डैम के लिए तकनीक मांगोगे तो नहीं मिलेगी.
पंजाब में भी पल्यूशन को लेकर फैक्ट्रियों के खिलाफ आवाज उठाने वाले "संत सींचेवाल" को तो बहुत सम्मान और इनाम दिए गए हैं , लेकिन उद्ध्योगों का पल्यूशन वास्तव में ख़तम करने की तकनीक डेवलप करने वाले हमारे जैसे लोगों को आजतक किसी भी संस्था ने कभी किसी भी तरह की कोई मदद नहीं की है.

Wednesday, 7 September 2022

हम गौ-रक्षा के मुद्दे पर, अभी नार्थ ईस्ट और गोवा में मुखर क्यों नहीं है

जब हम कोई परीक्षा देते हैं तो, प्रश्नपत्र में जो प्रश्न हमें आसान लगते हैं, हम पहले उनको हल करते हैं. उसके बाद उन प्रश्नों को हल करते हैं जिनका उत्तर थोड़ा बहुत आता है, सबसे आखिर में उन प्रश्नों पर जाते हैं जो हमें मुश्किल लगते हैं. हम कभी सरल प्रश्न को इसलिए नहीं छोड़ते हैं कि- जब कठिन प्रश्न हल नहीं हो रहे तो सरल प्रश्न भी क्यों करें.

इस उदाहरण से उन लोगों को जबाब मिल गया होगा जो, गौहत्या पर रोक की बात करने पर बोलते हैं कि- पहले गोवा, नार्थईस्ट, आदि में बंद कराओ. गौ-भक्षक जिन राज्यों का नाम लेकर ताना मारते हैं, उन राज्यों का सांस्कृतिक तानावाना बहुत बिगड़ा हुआ है, विदेशी राज और मिशनरियों के प्रभाव में बहां के हिन्दू भी अपने संस्कार भूल चुके हैं.

आजादी से पहले से यहाँ मिशनरियों ने अपना प्रभाव बना लिया था, आजादी के बाद भी सेकुलर सरकारों ने वहां हिंदुत्व को उभरने नहीं दिया. लोगों का ब्रेनवाश किया गया और हिन्दू संस्कार भुला दिए गए. 90 के दशक में संघ ने इसाई मिशनरियों की तर्ज पर यहाँ काम करना प्रारम्भ किया, तब लोगों में फिर से हिंदुत्व की तरफ झुकाव पैदा हुआ.

आरएसएस के द्वारा किये गए संघर्ष और सेवा के बाद वहां के लोगों में थोड़ी जागरूकता आई है.अब पहली बार वहां के कुछ राज्यों में बीजेपी की सरकार बनी है. हम अभी एक दम से उनके ऊपर अपनी सोंच नहीं थोप सकते. इसके लिए हमें पहले वहां के हिन्दुओं को जागरूक और संस्कारी बनाना होगा, तब ही हम अपनी नीति लागू कर पायेंगे.

लेकिन उत्तर, पश्चिन, मध्य, मध्यपूर्व, दक्षिण पश्चिम, आदि के जिन राज्यों में हम आज प्रभावशाली भूमिका में हैं, हमें वहां अपनी नीति लागू करनी होगी और इसको सफल साबित कर हम नार्थ ईष्ट, केरल और गोवा जैसे राज्यों के लोगों को दिखाएँगे. जिससे वहां के हिन्दू भी अपने संस्कार और प्राचीन जीवन शैली को समझ कर उस पर गर्व कर सकें.

जिन राज्यों में हम बस अभी थोड़ा बहुत प्रासंगिक हुए हैं वहां किसी विवादास्पद मुद्दे में पड़ने के बजाये, उन लोगों की तात्कालिक आवश्यकताओं को पूरा कर उनके बीच अपना प्रभाव बढाना होगा. इसके अलावा वहां पर अपनी राजनैतिक शक्ति बढानी होगी. बिना राजनैतिक शक्ति के आप अपनी कोई नीति लागू नहीं कर सकते.

बदलाब करने के लिए पहले हमें वहां खुद को शक्तिशाली बनाना होगा. कमजोर के अच्छे बिचार भी कोई मायने नहीं रखते. हम इतने समय से हार कर, वहां क्या अपने अच्छे बिचारों को लागू कर पाए ? जिन राज्यों में हिन्दू काफी हद तक जागरूक हो चुके हैं. अभी हमें पहले वहां पर अपने धर्म और संस्कार के लिए संघर्ष करना चाहिए.


Thursday, 1 September 2022

बर्खाश्त IPS अधिकारी संजीव भट्ट को हिरासत में मौत के मामले में उम्रकैद की सजा

नौकरी से बर्ख़ास्त एवं पहले से एक अन्य मामले में जेल में बंद, पूर्व आईपीएस अफ़सर संजीव भट्ट को करीब 30 साल पुराने पुलिस हिरासत में मौत के एक मामले में गुजरात के जामनगर की एक अदालत ने उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई है. अपने 400 से ज़्यादा पन्ने के फ़ैसले में अदालत ने सभी सातों अभियुक्तों को दोषी करार दिया.

संजीव भट्ट को जिस मामले में उम्र कैद की सज़ा हुई है वह 1990 का मामला है. उस वक्त संजीव भट्ट जामनगर में एएसपी यानी असिस्टेंट सुप्रिटेंडेंट ऑफ़ पुलिस के पद पर थे.1990 में बिहार में भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की अयोध्या रथयात्रा को रोका गया था. अडवानी जी की गिरफ़्तारी के बाद भारत बंद की कॉल दी गई थी.
सारे देश की तरह गुजरात में भी अडवानीजी की गिरफ्तारी के बिरोध में प्रदर्शन हुए. गुजरात में सैकड़ों प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया. प्रभुदास माधवजी वैशनानी सहित 133 लोगों पर TADA की धारा लगाईं गई. जबकि यह धारा केवल आतंकवादियों के लिए थी . हालांकि कुछ समय बाद इस TADA को हटा दिया गया.
30 अक्टूबर 1990 का दिन था. प्रभुदास के बड़े भाई अम्रुतभाई उस दिन घर पर ही थे. प्रभुदास के परिवार में पत्नी और तीन छोटे-छोटे बच्चे थे जिनकी उम्र चार, छह और आठ साल थी. बीबीसी से बातचीत में अम्रुतभाई ने बताया, "मेरे दो भाई को वे (पुलिसवाले) लोग घर से उठा ले गए थे. अभी आज तक मुझे नहीं पता कि उन्हें क्यों उठा ले गए
उस वक्त हम क़ायदे क़ानून की बात जानते नहीं थे कि पुलिस के सामने क्या करना है. पुलिसवालों से लोग बहुत डरते थे. पुलिस ने बताया भी नहीं. बाद में पता चला कि उसे टाडा में गिरफ़्तार किया गया था."अम्रुतभाई के मुताबिक, घर में घुसकर उनके भाइयों को उठा ले जाने वालों में संजीव भट्ट भी थे. दूसरे भाई का नाम रमेश भाई है.
अम्रुतभाई बताते हैं कि- गिरफ़्तारी के बाद पुलिस ने उन लोगों को डंडों से बहुत मारा और उनसे उठक-बैठक करवाई. वो कहते हैं. डंडे की मार और उस घायल हालत में उठक बैठक कराने से उसकी किडनी पर असर आ गया. दोनो भाई को किडनी की समस्या हो गई." गुर्दे में चोट के कारण प्रभुदास की 18 नवंबर को म्रत्यु हो गई.

जबकि दूसरे भाई रमेशभाई को 15 - 20 दिनों में अस्पताल से "किडनी की रिकवरी" के बाद छुट्टी मिल गई. अम्रुतभाई के मुताबिक, उन्होंने भाई के पोस्टमार्टम के लिए एसडीएम को अर्ज़ी दी जिसमें उन्होंने लिखा कि "पुलिस की मार से" भाई की मौत हुई. वो कहते हैं, "एसडीएम ने हमें मंज़ूरी दी और उसे पुलिस डिपार्टमेंट को भेज दी.
पुलिस डिपार्टमेंट ने हमारी अर्ज़ी को एफ़आईआर में बदल दिया. साल 1990 में मामले की जांच सीआईडी ने शुरू कर दी गई. लेकिन चार्जशीट फ़ाइल करने के लिए तत्कालीन कांग्रेस की सरकार से सहमति नहीं मिलने के कारण मामला खिंचता चला गया. चार्जशीट फ़ाइल करने की सहमति 1995-95 में मिली .
जिसे अभियुक्त ने अदालत में चुनौती थी. हाईकोर्ट की आलोचना के बाद 2012 में चार्जशीट दायर हुई जबकि पूरी तरह सुनवाई 2015 में शुरू हुई." अम्रुतभाई बताते हैं कि बड़े भाई की मौत के बाद बाकी भाइयों ने प्रभुदास के परिवार की ज़िम्मेदारी उठाई. वो कहते हैं, "हमने उनकी ज़िम्मेदारी ली और आज तक निभा रहे हैं.
हमारे हिसाब से जो हो पाया हमने कर दिया. फ़ैमिली को देखने और देखभाल करने में बहुत दर्द हुआ. एक उनकी देखभाल करना, दूसरी कानूनी लड़ाई के लिए संघर्ष करना. हमें दोनों ओर से लड़ना पड़ा." रमेशभाई का जामनगर में बुकस्टोर का काम है.अदालत ने संजीव भट्ट सहित दो लोगों को उम्र कैद की सज़ा सुनाई है.

गौर तलब है कि संजीब भट्ट पहले से ही नौकरी से बर्खाश्त है और जेल में है. उन्हें साल 2011 में बिना इजाज़त नौकरी से ग़ैरहाज़िर रहने और सरकारी गाड़ी के कथित दुरुपयोग के मामले में नौकरी से सस्पेंड किया गया था, 2015 में नौकरी से बर्ख़ास्त कर दिया गया था. और सितंबर 2018 से एक कथित ड्रग प्लांटिंग मामले में जेल में हैं.