Tuesday, 9 August 2022

राम मंदिर निर्माण के महानायक के.के. नायर

डीएम के.के. नायर का जन्म 11 सितंबर 1907 केरल के अलेप्पी में हुआ था. उनका पूरा नाम कंडांगलथिल करुणाकरण नायर था. उनकी शिक्षा मद्रास यूनिवर्सिटी से हुई थी. वे तमिल, मलयाली, हिन्दी, उर्दू, अंगरेजी सहित फ्रेंच, जर्मन, रसियन, स्पेनिस आदि भाषाओं के जानकर थे. अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद इंग्लैंड चले गए और केवल 21 वर्ष की आयु में ही उन्होंने भारतीय सिविल सेवा (ICS) की परीक्षा क्लीयर कर ली.

इसके बाद 1 जून सन् 1949 में उन्हें अयोध्या (फैजाबाद) के उपायुक्त सह जिला मजिस्ट्रेट के रूप में नियुक्त किया गया था. अयोध्या में नियुक्ति के तुरंत बाद के के नायर को यूपी सरकार की तरफ से एक पत्र मिला था. जिसमें उन्हें राम जन्मभूमि मुद्दे पर एक रिपोर्ट करने के लिए कहा गया था. उन्होंने इस रिपोर्ट के प्रस्तुत करने के लिए अपने सहायक को भेजा, जिनका नाम गुरु दत्त सिंह था.
गुरु दत्त सिंह ने लिखा, "हिंदू समुदाय ने इस आवेदन में एक छोटे के बजाय एक विशाल मंदिर के निर्माण का सपना देखा है. इसमें किसी तरह की परेशानी नहीं है. उन्हें अनुमति दी जा सकती है. हिंदू समुदाय उस स्थान पर एक अच्छा मंदिर बनाने के लिए उत्सुक है. जहां भगवान रामचंद्र जी का जन्म हुआ था. जिस भूमि पर मंदिर बनाया जाना है, वह सरकारी भूमि है.
गुरु दत्त सिंह ने 10 अक्टूबर 1949 को सौंपी अपनी रिपोर्ट के जरिए राम मंदिर निर्माण की सिफारिश कर दी. कांग्रेस सरकार ने इस रिपोर्ट को मानने से इंकार कर दिया. 23 दिसंबर 1949 की रात को अचानक 50 लोगों का एक समूह रात में रामजन्म भूमि परिसर में घुस गया. भीड़ ने गर्भगृह रामलला की मूर्ती की पुनर्स्थापना कर दी. डीएम साहब ने अपनी जिम्मेवारी स्वीकार कर ली.
लेकिन न उन्होंने पुलिस को बल प्रयोग की अनुमति दी और न ही वहां सेभगवान राम की मूर्ति नहीं हटाई. प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सियासी फेरबदल को देखते हुए उत्तर प्रदेश के तत्कालीन CM गोविंद वल्लभ पंत को निर्देश दिया और फिर सीएम पंत ने हिंदुओं को राम मंदिर से बेदखल करने की कोशिश की लेकिन के. के. नायर अड़े रहे और सीएम के फैसले को स्वीकार करने से साफ इनकार कर दिया.
उन्होंने इस मूर्तियों को वहां से हटाने से ये कहकर मना कर दिया कि हिंदू उस स्थल पर पूजा कर रहे हैं. नायर के इस रवैये को देखते हुए सीएम गोविंद वल्लभ पंत ने जिला मजिस्ट्रेट के पद से निलंबित कर दिया. निलंबन के खिलाफ वे अदालत चले गए. कोर्ट ने नायर के पक्ष में फैसला सुनाया. नायर को उनका पद वापस मिला, लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया.
उन्होने कहा केस मैंने केवल इसलिये लड़ा था जिससे कि अपने आपको निर्दोष साबित कर सकू लेकिन मैं ऐसी सरकार के साथ काम नहीं कर सकता. स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद वे कानून के डिग्री धारी होने के कारण इलाहाबाद हाइकोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे. इसके साथ ही उन्होंने इसी समय बनी नई राजनैतिक पार्टी "भारतीय जनसंघ" को ज्वाइन कर लिया.
हिन्दुओं की आस्था का सम्मान करने वाले के के नायर ने मंदिर निर्माण का संकल्प लिया और वो देखते ही देखते वो लाखों लोगों के प्रिय हो गए. उनके व्यवहार के चलते लोग उन्हें "नायर साहब" भी पुकारते थे. वर्ष 1952 में उनकी पत्नी शकुंतला नायर उत्तर प्रदेश विधान सभा की सदस्य के तौर पर चुनाव में विजय हासिल किया.
इसके बाद वर्ष 1962 में के के नायर बहराईच सीट से जनसंघ टिकट पर सांसद चुने गये. उनकी पत्नी ने भी लोकसभा का चुनाव जीता. सबसे खास बात तो ये है कि उनके ड्राइवर को भी उत्तर प्रदेश से विधान सभा का सदस्य चुना गया था. लेकिन आपातकाल के काले दिनों में इंदिरा गांधी ने आपातकाल में नायर साहब और उनकी पत्नी शकुंतला नायर को गिरफ्तार कर हर तरह से प्रताड़ित किया.
70 बर्षीय नायर साहब पर रेल की पटरी की फिस प्लॉटों को खोलने का झूठा आरोप लगाया गया था. इंदिरा सरकार की प्रताड़ना से वे काफी कमजोर हो गए थे. 7 सितंबर 1977 को के. के. नायर का स्वर्गवास हो गया. नायर साहब ने अपना पूरा जीवन राम मंदिर के लिए समर्पित कर दिया. नायर साहब ने जो कुछ भी किया उसके चलते ही आज ये राम मंदिर का सपना साकार हो रहा है.

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