Friday, 27 May 2022

क्या मुस्लिम लीग की स्थापना आरएसएस ने करबाई थी ?

अगर फेसबुक नहीं आई होती तो शायद हमें कभी पता ही नहीं चल पाता कि - मुसलमानो को भारत के इतिहास के बारे में कितना झूठ सिखाया जाता है. केवल अनपढ़ ही नहीं बल्कि अच्छे खासे पढ़े लिखे मुसलमान भी ऐसी झूठी बातें करते हैं. मैं लगभग रोज ही किसी ने किसी बुद्धिजीवी मुस्लिम के द्वारा उठाये गए झूठे मुद्दे का स्पस्टीकरण देता रहता हूँ.

कभी कोई झूठ बोलता है कि - इण्डिया गेट पर स्वाधीनता संग्राम सेनानियों के नाम लिखे हुए हैं जिनमे अधिकांश मुस्लिम है, कभी कोई "नजीर मालिक" जैसा पढ़ा लिखा मुस्लमान झूठ लिखता है कि - PAC ने गाजियाबाद के हाशिमपुरा गाँव को घेर कर गोली चलाई थी, कभी कोई बोलता है कि अटल बिहारी बाजपेई की मुखबिरी से भगत सिंह को फांसी हुई. आज तो एक फेसबुकिया बुद्धिजीवी बोले कि - मुस्लिम लीग की स्थापना लन्दन से जिन्ना को बुलाकर आरएसएस ने करबाई थी.
उन का कहना है कि - आरएसएस वालों ने लन्दन से जिन्ना को बुलबाया और मुस्लिम लीग पार्टी की स्थापना कराई जिससे भारत में धार्मिक ध्रुवीकरण कराया जा सके और उसके बाद आरएसएस ने मुस्लिम लीग के साथ मिलकर चुनाव लड़ा. ऐसी झूठी बातें भी ये लोग इतने कांफीडेंस से कहते है कि - जिसे सच पता न हो, वो इसे ही सच मान लेता है.
यह झूठ बोलने वाले को उनकी पोस्ट पर जबाब दिया जा चूका है, लेकिन अन्य लोगों को बताने के लिए यह पोस्ट लिख रहा हूँ. ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की स्थापना 30 दिसंबर 1906 को ढाका में हुई थी लेकिन इसकी भूमिका कई माह पहले से बनने लगी थी. युगांतर, अनुशीलन समिति, अभिनव भारत और स्वतंत्र रूप से क्रान्ति करने वाले क्रांतिकारियों ने अंग्रेजो की नाक में दम कर रखा था.
ऐसे में प्रभावशाली और धनवान मुसलमानो को लगा कि - अगर अंग्रेज चले गए तो भारत की सत्ता हिन्दुओं के हाथ में आ जायेगी. ऐसे में नवाब मोहसिन-उल-मुल्क ने 4000 मुसलमानों के हस्ताक्षर करवाकर एक प्राथना-पत्र तैयार किया और विभिन्न क्षेत्रों के 35 प्रमुख मुसलमानों का एक प्रतिनिधिमंडल बनाया. सर आगा खां ने मुस्लिम प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया.
1 अक्टूबर, 1906 ई. को मुस्लिम प्रतिनिधिमंडल ने वायसराय "लॉर्ड मिन्टो" से शिमला में भेंट की. शिष्टमंडल ने साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व की माँग पेश की. प्रार्थना-पत्र में निम्नलिखित माँगे थीं –
1. मुसलमानों को सरकारी सेवाओं में उचित अनुपात में स्थान मिले.
2 . नौकरियों में प्रतियोगी तत्व की समाप्ति हो.
3. प्रत्येक उच्च न्यायालय और मुख्य न्यालय में मुसलमानों को भी न्यायाधीश का पद मिले.
4. नगरपालिकाओं में दोनों समुदायों को प्रतिनिधि भेजने की अलग से सुविधा दी जाए.
5. विधान परिषद् के लिए मुस्लिम जमींदारों, वकीलों, व्यापारियों, जिला-परिषदों और नगरपालिकाओं के मुस्लिम सदस्य और पाँच वर्षों का अनुभव वाले मुस्लिम स्नातकों का एक अलग निर्वाचक मंडल बनाया जाए.
6. वायसराय की काउन्सिल में भार
तीयों की नियुक्ति करने के समय मुसलमानों के हितों का ध्यान रखा जाए.
7. मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना की जाए.
वायसराय लॉर्ड मिन्टो ने प्रतिनिधिमंडल से मिलकर प्रसन्नता व्यक्त की. उसने अपनी पत्नी मेरी मिंटो को एक पत्र लिखा था कि - आज एक बहुत बड़ी बात हुई. आज एक ऐसा कार्य हुआ है, जिसका प्रभाव भारत और उसकी राजनीति ऊपर चिरकाल तक रहेगा. 6 करोड़ 20 लाख लोगों को हमने विद्रोही पक्ष में सम्मिलित होने से रोक लिया है.” मेरी मिन्टो ने इसे युगांतकारी घटना की संज्ञा दी.
वायसराय लॉर्ड मिन्टो के निमंत्रण पर भारत के अभिजात मुसलमानों को राजनीति में प्रवेश करने का अवसर मिला और वे पूरी तरह राजनीतिज्ञ बनकर शिमला से लौटे. अलीगढ़ की राजनीति सारे देश पर छा गई. अंग्रेज़ों का सहयोग और संरक्षण का आश्वासन पाकर ढाका में मुसलमानों का एक सम्मेलन 30 दिसम्बर, 1906 ई. को बुलाया गया.
अखिल भारतीय स्तर पर एक मुस्लिम संगठन की नीव इसी सभा में डाली गई. संगठन का नाम “ऑल इंडिया मुस्लिम लीग” रखा गया. नवाब सलीमुल्ला, नवाब मोहसिन आलमल, मोलाना महमूद अली जौहर, मौलाना जफर अली खान, सर सैय्यद, हकीम अजमल खां और नवाब सलीम अल्लाह खान, आदि जैसे कई महत्त्वपूर्ण मुस्लिम व्यक्ति इस संस्था की पहली बैठक में मौजूद थे.
मुस्लिम लीग का पहला अध्यक्ष सर आग़ा खान को चुना गया, इसका केंद्रीय कार्यालय अलीगढ़ में स्थापित हुआ. सभी राज्यों में शाखाएं बनाई गईं. ब्रिटेन में लंदन शाखा का अध्यक्ष सैयद अमीर अली को बनाया गया. इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य था- 'भारतीय मुस्लिमों में ब्रिटिश सरकार के प्रति भक्ति उत्पत्र करना व भारतीय मुस्लिमों के राजनीतिक व अन्य अधिकारो की रक्षा करना
नवाब वकार-उल-मुल्क ने अलीगढ़ के विद्यार्थियों की सभा में यह कहा था कि “अच्छा यही होगा कि मुसलमान अपने-आपको अंग्रेजों की ऐसी फ़ौज समझें जो ब्रिटिश राज्य के लिए अपना खून बहाने और बलिदान करने के लिए तैयार हों.” नवाब वकार-उल-मुल्क ने कांग्रेस के आन्दोलन में मुसलमानों को भाग नहीं लेने की सलाह दी थी. ब्रिटिश शासन के प्रति निष्ठा रखना मुसलमानों का राष्ट्रीय कर्तव्य है.
मुस्लिम लीग मुसलमानों की प्रतिनिधि संस्था माने जाने लगी. कुछ मुसलमानों ने इसकी आलोचना भी की परन्तु उनकी आवाज़ दबा दी गयी. वीर सावरकर के ग्रन्थ 1857 : प्रथम स्वातंत्र्य समर के कारण प्रारम्भ हुए द्वितीय स्वाधीनता संग्राम (1907 से 1915) से मुसलमानो ने दूरी बना कर रखी. इसके बाद अंग्रेजों ने पुलिस, CID, जेल कर्मचारी, आदि की भर्ती में मुसलमानो को प्राथमिकता देना शुरू कर दिया.
जबकि आरएसएस की स्थापना डा. हेडगेवार ने नागपुर में विजय दशवी वाले दिन 1925 में की थी और इसकी गतिबिधियाँ अपनी स्थापना से लेकर अगले 5 साल तक नागपुर के एक पार्क में बच्चों के खेलकूद तक ही सीमित थी. और फेसबुकिया मुसलिम बुद्धिमानो का कहना है कि - आरएसएस वालों ने जिन्ना को लन्दन से बुलाकर मुस्लिम लीग की स्थापना कराई थी, जिससे ध्रुवीकरण किया जा सके.





Tuesday, 24 May 2022

साइमन कमीशन

 भारत की जनता आजादी की लड़ाई लड़ रही थी. जगह जगह अंग्रेजों पर हमले हो रहे थे. सरकारी खजाने को लूटा जा रहा था. भारत में अंग्रेजों के खिलाफ माहौल बना हुआ था. ऐसे में अंग्रेजों को लगा कि - अगर अपनी नीति में थोड़ा बहुत बदलाब नहीं किया तो भारत में क्रान्ति की आग बहुत बढ़ जायेगी और तब सम्हालना बहुत मुश्किल हो जाएगा.

तब ब्रिटिश सरकार ने 8 नवम्बर 1927 को सात ब्रिटिश सांसदों के एक आयोग (समूह) का गठन किया. इस आयोग (कमीशन) का नाम इसके अध्यक्ष सर जॉन साइमन के नाम पर "साइमन कमीशन" रखा गया था. इस आयोग को इसलिए भारत भेजा गया कि - ब्रिटिश सांसद भारत जाकर वहां के अपने अपने समुदाय प्रभावशाली लोगों से मिले. 

भारत में लोगों से मिलकर उनकी मांग को समझें और उसके अनुसार भारत के लिए ब्रिटिश संविधान में थोड़ा बहुत बदलाब किया जाए और भारत में चल रही बगावत को दबाया जा सके. साइमन कमीशन में एक भी भारतीय नहीं था, सारे के सारे अंग्रेज ही थे. लेकिन इसके बाबजूद कुछ भारतीय नेताओं ने बिना जाने समझे उनको समर्थनन दे दिया.


परन्तु हिन्दू महासभा के नेता लाला लाजपत राय ने इसका विरोध करने का ऐलान कर दिया. उन्होंने कहा - हमें ब्रिटिश शासन के अधीन कोई छूट नहीं, बल्कि ब्रिटिश शासन से पूर्ण आजादी चाहिए. पंजाब में इस साइमन कमीशन का विरोध करने का नेतृत्व लाला लाजपत राय ने किया और महाराष्ट्र में इसकी जिम्मेदारी स्वतंत्र्य वीर सावरकर को दी गई. 

बंगाल की अनुशीलन समिति ने भी साइमन कमीशन का विरोध करने का ऐलान कर दिया. देश की अधिकांश जनता साइमन कमीशन के विरोध में आ गई.  कांग्रेस पार्टी जो उस समय तक खुद भी पूर्ण आजादी के बजाय डोमिनियन स्टेटस की मांग करती थी, देश में साइमन कमीशन के खिलाफ माहौल देखकर साइमन कमीशन का विरोध करने लगी. 

3 फरवरी 1928 में साइमन कमीशन भारत आया. आजादी की मांग करने वाले लोग इसके विरोध में सड़कों पर उतर आये और अंग्रेजों की चापलूसी करके सर, राय बहादुर, खान बहादुर, नबाब साहब, आदि जैसी उपाधिया लेने वाले और अंग्रेजों से आर्थिक लाभ लेने वाले बहुत सारे लोग भी "साइमन कमीशन" के समर्थन में खुलकर आ गए. 

साइमन आयोग ने कुछ सुझाव दिए थे जैसे - वायसराय और प्रांतीय गवर्नर को विशेष शक्तियाँ दी जानी चाहिये और ब्रिटिश संविधान में भारत के लिए थोड़ा लचीला रुख होना चाहिए. छोटे मोटे फैसले बिना ब्रिटश संसद की मर्जी के भी लिए जा सकें. इसके अलावा भारत में एक ऐसी यूनियन की स्थापना की जाए जिसमें ब्रिटिश भारतीय प्रांत और देशी रियासत शामिल भी हों. 


अंग्रेज चाहते थे कि साइमन कमीशन को सिफारिशें बनाने और लागू करने में जो समय लगेगा उससे क्रान्ति की ज्वाला शांत हो जायेगी. भारतीय लोगों को ऊँची नौकरी देने से और उनको थोड़ा अधिकार देने से, वे लोग आजादी की लड़ाई से पीछे हट जाएंगे और उनको आगे लम्बे समय तक भारत में राज करने का रास्ता साफ़ हो जाएगा.     

अंग्रेजों के भारतीय मूल के अधिकारी तथा अंग्रेजों के चापलूस देशी राजा और नबाब भी इस बात से बहुत खुश हो गए और साइमन कमीशन का समर्थन करने लगे. उनको लगने लगा कि जब भारत को इस प्रकार की छूट मिलेंगी, तो उनको फायदा होगा और उनकी शक्तियां बढ़ जाएंगी.  लेकिन हिन्दू महासभा ने उनके मनसूबों पर पानी फेर दिया था.

जगह जगह "साइमन कमीशन" के विरोध में प्रदर्शन होने लगे. अंग्रेजों और उनके चापलूस भारतीयों को समझ आ गया कि लाला लाजपत राय के रहते "साइमन कमीशन" का कुछ नहीं हो पायेगा, इसलिए एक प्रदर्शन के दौरान लाला जी को लाठियों से पीटा गया. अंग्रेज पुलिस द्वारा की गई निर्मम पिटाई से लाला जी का स्वर्गवास हो गया. 

अंग्रेजों और उनके चमचों का यह सोंचना कि- लाला जी के मारे जाने के बाद विरोध ख़त्म हो जायेगा, गलत साबित हुआ. लाला जी के बलिदान के बाद क्रान्ति की ज्वाला और भड़क उठी और अनेकों युवा क्रान्तिकारी अंग्रेजों से लाला जी के बलिदान का बदला लेने की कोशिश में लग गए, जिसमे सफलता मिली चंद्र शेखर आजाद के समूह को. 


चंद्र शेखर आजाद और उनके साथी सुखदेब, भगत सिंह, राजगुरु, आदि ने अंग्रेज पुलिस अधिकारी स्कॉट को मारने की योजना बनाई लेकिन उस दिन स्कॉट के बजाय उनका सामना कनिष्ठ पुलिस अधिकारी सांडर्स से हुआ और उन क्रांतिवीरों ने सांडर्स को मौत के घाट उतार दिया. और इसके साथ ही साइमन कमीशन भी फ्लॉप हो गया.

Tuesday, 10 May 2022

यौन अपराध रोकने के लिए वैश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता मिलनी चाहिए ?

हो सकता है नैतिकता की दुहाई देने वालों को पहली नजर में मेरी यह बात भले ही गलत लगे, लेकिन गंभीरता से बिचार करने पर इसमे आपको समाज की भलाई ही नजर आयेगी. इसलिए मेरा आपसे निवेदन है कि- विवादास्पद बिषय पर पोस्ट होने के बाबजूद, इस मुद्दे को बिना चर्चा के एकदम से खारिज नहीं किया जाना चाहिए

आजतक दुनिया के किसी भी देश में, किसी भी काल में, किसी भी कठोर से कठोर कानून से वैश्यावृत्ति नहीं रुक सकी है. कठोर कानून से वेश्याओं और उनके ग्राहकों का शोषण ही होता है. इसे अगर कानूनी मान्यता देदी जाए तो वेश्याओं का शोषण तथा सामान्य महिलाओं और बच्चियों का बलात्कार, दोनों रुक सकते है.
मुझे लगता है कि - यदि हवसवाली मानशिकता के लोगों को कुछ पैसे खर्च कर, अपनी हवस को पूरा करने का साधन मिल जाए, तो सामान्य महिलाओं के प्रति होने वाले बलात्कार जैसे अपराधों में भारी कंमी आ सकती है. निर्भया केस वाले अपराधियों ने भी स्वीकारा था कि- वे लोग सड़क पर पहले कालगर्ल को ही ढूंढ रहे थे.
इस बिषय पर समाज और सरकार को गंभीरता से बिचार करना चाहिए. भले ही बहुत सारे लोग इस पोस्ट को देखकर नाक-भौं सिकोड़ें. लेकिन यहाँ पंजाब में, मैं ऐसे अनेकों तथाकथित शरीफ (?) लोगों को जानता हूँ जो इस काम के लिए हजारों / लाखो रूपए खर्च करके, मौज मस्ती करने बैंकाक जाते है.
ऐसा नहीं कि- आज की तारीख में, देश में वैश्यावृत्ति नहीं हो रही है. शायद ही कोई ऐसा शहर या क़स्बा होगा जहाँ चोरी छुपे यह धंधा न चल रहा हो. चोरी छुपे होता है तो अपराधी माफिया नियंत्रित करता है और पुलिस कमीशन लेती है.और वैश्याए तथा ग्राहक दोनों ही माफियाओं और पुलिस के द्वारा शोषण के शिकार होते हैं.
इसके लिए वेश्याओं को बाकायदा लाइसेंस दिया जाए और प्रत्येक जिले में एक क्षेत्र निर्धारित किया जाए कि - इस क्षेत्र में वैश्यावृत्ति की जा सकती है और क्षेत्र के बाहर धंधा करने पर सजा मिलेगी. इससे हवसी लोगों को पैसे खर्च करके हवस मिटाने का साधन मिल जाएगा और सभ्य समाज इन हवसियों से बचा रहेगा.
वेश्याओं का निश्चित समय पर मेडिकल हो, निर्धारित एरिया में इस सबकी छुट हो. लेकिन अगर कोई व्यक्ति निर्धारित एरिये से बाहर सभ्य समाज के बीच किसी लड़की / महिला से गलत हरकत करे या कोई महिला यह धंधा करे तो उनको बिना लम्बी कार्यवाही के जल्दी से जल्दी सजा सुनाकर फांसी पर लटका दिया जाए.

Sunday, 8 May 2022

मुस्लिम्स और सेकुलर्स द्वारा ताजमहल, क़ुतुब मीनार, लालकिला, आदि को तोड़ने की बात करना

एक बार एक राजा के पास दो महिलायें झगडती हुई आईं. वे दोनों महिलायें एक बच्चे को लेकर आईं थी और दोनों ही अपने आपको उस बच्चे की असली माँ बता रहीं थी. तब राजा ने कहा तुम लोग झगड़ा मत करो, मैं इस बच्चे को तलबार से काटकर दो टुकड़े कर देता हूँ. तुम दोनों एक एक टुकड़े को अपने साथ ले जाना.

इस बात को सुनकर एक महिला ने कहा महाराज अमर रहे, आपने बहुत अच्छा न्याय किया है. लेकिन दूसरी महिला बोली - नहीं महाराज ऐसा मत कीजिए. मैं झूठ बोल रही थी, यह मेरा बच्चा नहीं है, इस बच्चे को इस महिला को दे दीजिये. बच्चे पर झूठा दावा करने के अपराध की आप मुझे जो चाहे सजा दे दीजिये, मुझे मंजूर है.
तब राजा ने कहा. जो महिला बच्चे से दावा वापस ले रही है यह बच्चा उसको दे दो और दुसरी महिला को कारागार में डाल दो. जो महिला बच्चे की माँ नहीं थी उसको बच्चे की ह्त्या की बात से कोई तकलीफ नहीं हुई जबकि जो महिला बच्चे की असली माँ थी, उसे बच्चे को दूसरे को सौंपना मंजूर हो गया लेकिन बच्चे की ह्त्या नहीं.
कुछ यही हाल भारत में इस्लामी आक्रमणकारियों द्वारा कर्थित तौर से बनाई गई इमारतों का है. ध्रुब स्तम्भ (क़ुतुब मीनार), आग्रेश्वर नागनाथेश्वर मंदिर ( ताजमहल), लाल कोट (लाल किला), अढाई दिन का झोपड़ा, आदि सबकुछ भारतीय राजाओं द्वारा बनबाई गई इमारते हैं, जिनको आक्रमणकारी लुटेरों ने अपना नाम दे दिया है.

आज भी जब भारतीय लोग उन इमारतों को उनकी वास्तविक पहेचान दिलाने की बात करते हैं तो मुस्लिम्स और सेकुलर्स कभी भी इन इमारतों की वैज्ञानिक तरीके से पूरात्विक जांच की बात नहीं करते हैं बल्कि इनको बम से तोड़कर नष्ट कर देने की बात करते हैं. यह ठीक बैसा ही है जैसे कहानी में झूठी महिला करना चाहती थी.
इन इमारतों को लेकर ओवेसी, नशीरूद्दीन शाह, आजम, पूनावाला, आदि से लेकर किसी फेसबुकिया मुस्लिम का भी बयान देख लो, आजतक किसी ने यह नहीं बोला है कि इन इमारतों की वैज्ञानिक जांच हो या इनके तहखाने खुल्बाकर उनमे रखे सामान की जांच की जाए. ये लोग केवल यही बोलते हैं कि इन इमारतों को तोड़ दो या बम से उड़ा दो.
इन लोगों के बयान से ही साफ़ पता चलता है कि - विदेशी आक्रमणकारियों के वंशजों को सच का खुद पता है. यह केवल इतना चाहते हैं कि या तो इनकी जो झूठी कहानिया चली आ रही हैं वही चलती रहें और अगर झूठ को छुपा पाना अब संभव नहीं हो पा रहा है तो इनको नष्ट कर दिया जाए. इसी अब ये लोग इनको तोड़ने की बात करते है.
जब इस्लामी हमलावरों ने भारत पर हमला किया और इमारतों मंदिरों का विध्वंस किया तब भारतीय लोगो ने बच्चे की वास्तविक माँ की तरह यह सोंच लिया कि - भले ही इनको इन विनाशकों / विध्वंशकों द्वारा बनबाया हुआ ही क्यों न घोषित कर दिया जाए लेकिन इनको टूटने से बचा लिया जाए. अब तो बस कहानी वाले राजा की तरह न्याय करना है.
बैसे भी सबको पता है जो लोग इन भव्य इमारतों को बनाने का दावा करते आये हैं वो अपने मूल देशों में तो रहने लायक घर भी नहीं बना पाए थे.

Wednesday, 4 May 2022

हिन्दू साम्राज्य दिवस ( ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी )

परमपूज्य भगवाध्वज, आदरणीय अधिकारीगण एवं स्वयंसेवक बंधुओं को मेरा सादर अभिनंदन एवं आप सबको "हिन्दू साम्राज्य दिवस" की हार्दिक शुभकामनाएं.

आप सभी को पता हैं कि - आज हम यहाँ "हिन्दू साम्राज्य दिवस" मना रहे है. मैं आपको एक छोटी सी बात बताना चाहता हूँ. कल मैंने फेसबुक पर "हिन्दू साम्राज्य दिवस" पर एक लेख लिखा था . उसे देखकर कुछ मित्रों ने प्रश्न किया कि – रोज डे, चाकलेट डे, वैलेंटाइन डे, के बारे में तो सुना है, लेकिन यह "हिन्दू साम्राज्य दिवस" कब से शुरू हो गया ?
इस प्रश्न को देखकर अत्यंत दुःख हुआ कि - हमारी युवा पीढ़ी किस और जा रही है? निरर्थक विदेशी दिवस तो याद हैं लेकिन जिन दिवस पर हमें अपने देश और धर्म पर गर्व करना चाहिये, वो हमको पता तक नहीं हैं. आप सभी को पता ही है कि - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वारा 6 त्यौहार राष्ट्रीय स्तर पर मनाये जाते है.
हमारे यह 6 त्यौहार है : वर्ष प्रतिपदा, हिन्दू साम्राज्य दिवस, गुरु पूर्णिमा, रक्षा बंधन, विजय दशमी और मकर संक्राति. इन सभी त्योहारों को चुनने के पीछे भी अलग अलग कारण है. लेकिनं आज हम उन पर कोई चर्चा नहीं करेंगे बल्कि अपना सारा ध्यान केवल "हिन्दू साम्राज्य दिवस" पर ही देना चाहते हैं.
आज भारतीय कैलेण्डर के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ला की त्रियोदशी है. सन 1674 में आज के दिन ही छत्रपति शिवाजी महाराज का राजतिलक हुआ था. एक प्रश्न यह भी उठता है कि - भारत में अनेकों महान राजा हुए हैं तब "हिन्दू साम्राज्य दिवस" मनाने के लिए केवल शिवाजी के राजतिलक का दिन ही क्यों चुना गया ? इसका भी एक विशेष कारण है :
उस समय दिल्ली पर मुघलों का राज था. जिन छोटी रियासतों में हिन्दू राजा थे, वो भी दिल्ली की मुग़ल सल्तनत के अधीन ही थे. ऐसे समय में एक साधारण बालक ने असाधारण क्षमता दिखाते हुए. एक स्वतंत्र हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की. शिवाजी का जीवन प्रेरणा देता है कि - जो देश के लिए कुछ करना चाहता है उसका रास्ता कोई नहीं रोक सकता.
जिस तरह हम प्रतिदिन शाखा लगाते हैं, शिवाजी महाराज ने उसी तरह से अपने साथियों को इकठ्ठा करना प्रारम्भ किया था. वहां पर वे खेलकूद करते और देश की स्थिति पर बिचार करते थे. उनकी माता जीजाबाई उनको रामायण, महाभारत, विक्रमादित्य, प्रताप "महान", आदि की कहानिया सुनाती थी, जिनको शिवाजी अपने साथियों को जाकर सुनाते थे.
वे महाराणा प्रताप "महान" के जीवन से बहुत प्रभावित थे, लेकिन उन्होंने उनके जीवन से यह सबक भी सीखा कि - केवल महान योद्धा होना और बहादुरी से लड़ते हुए मरना ही काफी नहीं है बल्कि युद्ध में जीतना सबसे ज्यादा जरुरी है. इसके लिए उन्होंने गुरिल्ला युद्ध की तकनीक विकसित की. जिस गुरिल्ला युद्ध को लोग माओ की तकनीक बताते है वो उनकी तकनीक थी.
उन्होंने युद्ध की ऐसी प्रणाली बनाई कि - शत्रु पर हमला करो, उसको अधिक से अधिक नुकशान पहुँचाओ और फिर शीघ्रता से बहा से हट जाओ. इस तकनीक के सहारे उन्होंने सैकड़ों लड़ाईया जीती. अपने साथियों के साथ उन्होंने 1655 में बीजापुर की कमज़ोर सीमा चौकियों पर कब्ज़ा करना शुरू किया.
जब उनको छोटी-छोटी विजय मिलना प्रारम्भ हुई, तो उनका भी आत्मविश्वास बढ़ने लगा तथा अन्य लोग भी उनके साथ आने लगे. शिवाजी को सबक सिखाने के लिए बीजापुर के सुलतान ने कई बार कोशिश की, परन्तु शिवाजी हर वार विजयी रहे. अफजल खान का बध करने के बाद तो पूरे देश में उनके नाम का डंका बजने लगा था.
धीरे-धीरे बहुत बड़ा क्षेत्र शिवाजी महाराज के अधिकार क्षेत्र में आ गया. उनकी माता जीजाबाई और समर्थ गुरु रामदास चाहते थे कि - शिवाजी का राजतिलक इतना भव्य होना चाहिए कि - मुग़लो की आँखे चकाचौंध हो जाएँ, साथ ही अन्य छोटे हिन्दू राजाओं में भी स्वाभिमान की भावना जाग्रत हो. इसलिए उनके राजतिलक का भव्य आयोजन किया गया.
उनके राजतिलक को शिवाजी का राजतिलक नहीं कहा गया, बल्कि एक हिन्दू राजा का राजतिलक कहा गया. उन दिनों रियासतों में जितने भी हिन्दू राजाओं के राजतिलक होते थे, वो भी मुग़ल राजाओं की अनुमति से होते थे, यह पहला राजतिलक था जो मुगलिया सल्तनत को चुनौती देते हुए हो हुआ था. इसके बाद अनेकों छोटे राजा, शिवाजी के साथ आ गए थे.
शिवाजी महाराज का राज, पुरी तरह से हिन्दू जीवन शैली पर आधारित था, जिसमे समस्त प्रजा को एक परिवार और राजा को परिवार का मुखिया माना जाता था. शिवाजी के राजतिलक के बाद, देश के अनेको हिस्सों में मुगलों के खिलाफ आजादी की लडाइयां प्रारम्भ हो गई. पंजाब, राजस्थान, बुंदेलखंड, मालवा, गुजरात की अनेकों हिन्दू रियासतों ने खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया.
इसीलिए संघ ने अपना त्यौहार "हिन्दू साम्राज्य दिवस" मनाने के लिए छत्रपति शिवाजी महाराज के राजतिलक का दिन चुना. यहाँ शाखा में प्रतिदिन उनकी ही तरह खेलकूद के साथ साथ राष्ट्रवाद सिखाया जाता है, देश के प्रति समर्पण सिखाया जाता है और देश के लिए लड़ने योग्य बनना सिखाया जाता है.
आज का दिन हिदुओं के लिए बहुत ही गौरवशाली दिन है. अब मैं और ज्यादा समय न लेते हुए अपनी बात समाप्त करता हूँ. आपसे यही निवेदन है कि भारतीय संस्क्रती से जुड़े हुए त्योहारों को गर्व से मनाएं. इन त्योहारों को मनाने से हमें राष्ट्र के लिए कुछ कर गुजरने की प्रेरणा मिलती है.
आखिर में आप सब मेरे साथ उद्घोष करेंगे
जय शिवा सरदार की, जय राणा प्रताप की, वन्दे मातरम, भारत माता की जय ...
(एक क्रायक्रम में मेरे दिए गए बौद्धिक के अंश)