भारत की जनता आजादी की लड़ाई लड़ रही थी. जगह जगह अंग्रेजों पर हमले हो रहे थे. सरकारी खजाने को लूटा जा रहा था. भारत में अंग्रेजों के खिलाफ माहौल बना हुआ था. ऐसे में अंग्रेजों को लगा कि - अगर अपनी नीति में थोड़ा बहुत बदलाब नहीं किया तो भारत में क्रान्ति की आग बहुत बढ़ जायेगी और तब सम्हालना बहुत मुश्किल हो जाएगा.
तब ब्रिटिश सरकार ने 8 नवम्बर 1927 को सात ब्रिटिश सांसदों के एक आयोग (समूह) का गठन किया. इस आयोग (कमीशन) का नाम इसके अध्यक्ष सर जॉन साइमन के नाम पर "साइमन कमीशन" रखा गया था. इस आयोग को इसलिए भारत भेजा गया कि - ब्रिटिश सांसद भारत जाकर वहां के अपने अपने समुदाय प्रभावशाली लोगों से मिले.
भारत में लोगों से मिलकर उनकी मांग को समझें और उसके अनुसार भारत के लिए ब्रिटिश संविधान में थोड़ा बहुत बदलाब किया जाए और भारत में चल रही बगावत को दबाया जा सके. साइमन कमीशन में एक भी भारतीय नहीं था, सारे के सारे अंग्रेज ही थे. लेकिन इसके बाबजूद कुछ भारतीय नेताओं ने बिना जाने समझे उनको समर्थनन दे दिया.
परन्तु हिन्दू महासभा के नेता लाला लाजपत राय ने इसका विरोध करने का ऐलान कर दिया. उन्होंने कहा - हमें ब्रिटिश शासन के अधीन कोई छूट नहीं, बल्कि ब्रिटिश शासन से पूर्ण आजादी चाहिए. पंजाब में इस साइमन कमीशन का विरोध करने का नेतृत्व लाला लाजपत राय ने किया और महाराष्ट्र में इसकी जिम्मेदारी स्वतंत्र्य वीर सावरकर को दी गई.
बंगाल की अनुशीलन समिति ने भी साइमन कमीशन का विरोध करने का ऐलान कर दिया. देश की अधिकांश जनता साइमन कमीशन के विरोध में आ गई. कांग्रेस पार्टी जो उस समय तक खुद भी पूर्ण आजादी के बजाय डोमिनियन स्टेटस की मांग करती थी, देश में साइमन कमीशन के खिलाफ माहौल देखकर साइमन कमीशन का विरोध करने लगी.
3 फरवरी 1928 में साइमन कमीशन भारत आया. आजादी की मांग करने वाले लोग इसके विरोध में सड़कों पर उतर आये और अंग्रेजों की चापलूसी करके सर, राय बहादुर, खान बहादुर, नबाब साहब, आदि जैसी उपाधिया लेने वाले और अंग्रेजों से आर्थिक लाभ लेने वाले बहुत सारे लोग भी "साइमन कमीशन" के समर्थन में खुलकर आ गए.
साइमन आयोग ने कुछ सुझाव दिए थे जैसे - वायसराय और प्रांतीय गवर्नर को विशेष शक्तियाँ दी जानी चाहिये और ब्रिटिश संविधान में भारत के लिए थोड़ा लचीला रुख होना चाहिए. छोटे मोटे फैसले बिना ब्रिटश संसद की मर्जी के भी लिए जा सकें. इसके अलावा भारत में एक ऐसी यूनियन की स्थापना की जाए जिसमें ब्रिटिश भारतीय प्रांत और देशी रियासत शामिल भी हों.
अंग्रेज चाहते थे कि साइमन कमीशन को सिफारिशें बनाने और लागू करने में जो समय लगेगा उससे क्रान्ति की ज्वाला शांत हो जायेगी. भारतीय लोगों को ऊँची नौकरी देने से और उनको थोड़ा अधिकार देने से, वे लोग आजादी की लड़ाई से पीछे हट जाएंगे और उनको आगे लम्बे समय तक भारत में राज करने का रास्ता साफ़ हो जाएगा.
अंग्रेजों के भारतीय मूल के अधिकारी तथा अंग्रेजों के चापलूस देशी राजा और नबाब भी इस बात से बहुत खुश हो गए और साइमन कमीशन का समर्थन करने लगे. उनको लगने लगा कि जब भारत को इस प्रकार की छूट मिलेंगी, तो उनको फायदा होगा और उनकी शक्तियां बढ़ जाएंगी. लेकिन हिन्दू महासभा ने उनके मनसूबों पर पानी फेर दिया था.
जगह जगह "साइमन कमीशन" के विरोध में प्रदर्शन होने लगे. अंग्रेजों और उनके चापलूस भारतीयों को समझ आ गया कि लाला लाजपत राय के रहते "साइमन कमीशन" का कुछ नहीं हो पायेगा, इसलिए एक प्रदर्शन के दौरान लाला जी को लाठियों से पीटा गया. अंग्रेज पुलिस द्वारा की गई निर्मम पिटाई से लाला जी का स्वर्गवास हो गया.
अंग्रेजों और उनके चमचों का यह सोंचना कि- लाला जी के मारे जाने के बाद विरोध ख़त्म हो जायेगा, गलत साबित हुआ. लाला जी के बलिदान के बाद क्रान्ति की ज्वाला और भड़क उठी और अनेकों युवा क्रान्तिकारी अंग्रेजों से लाला जी के बलिदान का बदला लेने की कोशिश में लग गए, जिसमे सफलता मिली चंद्र शेखर आजाद के समूह को.
चंद्र शेखर आजाद और उनके साथी सुखदेब, भगत सिंह, राजगुरु, आदि ने अंग्रेज पुलिस अधिकारी स्कॉट को मारने की योजना बनाई लेकिन उस दिन स्कॉट के बजाय उनका सामना कनिष्ठ पुलिस अधिकारी सांडर्स से हुआ और उन क्रांतिवीरों ने सांडर्स को मौत के घाट उतार दिया. और इसके साथ ही साइमन कमीशन भी फ्लॉप हो गया.