Saturday, 12 February 2022

गुरमीत राम रहीम : क्या है वह मामला, जिसमे वो जेल गया है ?

सेकुलर बाबा "गुरमीत राम रहीम" का एपिसोड समाप्त हो गया है और पूरा पश्चिमोत्तर भारत राहत की सांस ले रहा है. पंजाब, हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश में विभिन्न गुरुओं के डेरों का जो जाल बिछा हुआ है उनकी ताकत के बारे में स्थानीय लोग अच्छे से जानते हैं. इनके पास धन, जन और राजनैतिक हर तरह की ताकत है.

अभी कुछ लोग जैसे रामपाल, आशाराम, गुरमीत राम रहीम, राम ब्रक्ष यादव , आदि जैसों के नाम ही सामने आये हैं. ऐसे न जाने कितने डेरे और दरगाहें हैं जहाँ अनेकों गैरकानूनी काम होते हैं. जिन का मामला खुला है उनको देखकर शायद भोली भाली जनता को अक्ल आये और वो डेरों और दरगाहों द्वारा छले जाने से बच जाए.
यह डेरे वाले बहुत चालाक होते हैं और थोक वोट दिलाने का लालच देकर नेताओं को अपने पीछे लगाए रखते हैं. अगर केवल "डेरा सच्चा सौदा" की बात करें तो यह मौका देखकर समय समय कभी कांग्रेस, कभी भाजपा, कभी अकाली और कभी इनलो का समर्थन करता रहा है और लाभ उठाता रहा है.
जिस मामले में सेकुलर बाबा "गुरमीत राम रहीम" को सजा हुई है यह मामला बहुत पुराना है. जिन लड़कियों के साथ 2001 में डेरे में बलात्कार हुआ था उनकी स्थानीय पुलिस ने शिकायत तक दर्ज नहीं की थी, शिकायत की बात खुद पुलिस द्वारा डेरे तक पहुंचा दी गई थी और डेरे वालों ने पीड़िताओं को धमकाया था.
उस समय हरियाणा में "ओम प्रकाश चौटाला" की सरकार थी. लेकिन उन बहादुर लड़कियों ने हार नहीं मानी और केंद्र सरकार के पास गुमनाम चिट्ठी भेजकर डेरे की पोल खोली. उस समय केंद्र में अटल बिहारी बाजपेई की सरकार थी. 13 मई 2002 को यह चिट्ठी प्रधान मंत्री कार्यालय को मिली थी.
अटल सरकार ने इस चिट्ठी को संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिए लेकिन कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई. इसी बीच 10 जुलाई 2002 को डेरा सच्चा सौदा की प्रबंधन समिति के सदस्य रहे रणजीत सिंह की हत्या हो गई. इन लड़कियों ने रणजीत सिंह की बहन की तरफ से भी प्रधान मंत्री को चिट्ठी लिखबाई.
तब केंद्र की अटल सरकार ने पूरे मामले की सत्यता जांचने का जिम्मा 24 सितंबर 2002 को सीबीआई को सौंप दिया. सीबीआई ने बहुत तेजी से जांच शुरू की और ऐसा लगने लगा कि - डेरे का खेल अब एक दो साल से ज्यादा नहीं चल पाएगा. लेकिन इसी बीच 2004 में केंद्र और हरियाणा दोनों जगह कांग्रेस सरकार आ गई.
उसके बाद यह मामला अधर में लटक गया. इस बीच उन लड़कियों पर हर तरह से दबाब डाला गया कि - वे मामला वापस ले लें. लेकिन वे बहादुर लडकियां अपनी पैरवी करती रहीं. दस साल बाद केंद्र में फिर सत्ता परिवर्तन हुआ. इन लड़कियों ने फिर से मोदी सरकार को चिट्ठियां लिखी और कार्यवाही को तेज करने की मांग की.
इसी बीच हरियाणा में भी सत्ता परिवर्तन हो गया. अब डेरे पर सीबीआई का शिकंजा कसना शुरू हो गया. इस केस में सीबीआई ने जितना काम पहले 12 साल में किया था उससे ज्यादा पिछले 3 साल में किया. सीबीआई की मेहनत का नतीजा है कि - आज बलात्कारी बाबा जेल पहुंचा और उन पीडिताओ को न्याय मिल सका. —

डेरा सच्चा सौदा : धार्मिक स्थल नहीं बल्कि सेकुलरों और नाश्तिकों का डेरा है

 जब से "डेरा सच्चा सौदा" का प्रमुख "गुरमीत राम रहीम" जब बलात्कार, हिंसा और बेनामी सम्पत्ति, आदि के मामलों में फंसा है तब से सेकुलर लोग उसको हिन्दू साबित करने पर तुले हैं, जिससे उसके नाम पर हिन्दुओं को बदनाम किया जा सके. जबकि हकीकत यह है कि- डेरा सच्चा सौदा के अनुयायी अपने आपको हिन्दू नहीं बल्कि इन्सां कहा करते हैं.

यह डेरा किसी हिन्दू ने नहीं बल्कि एक मुसलमान ने ही शुरू किया था. इसके प्रमुख ने अपना नाम भी "गुरमीत राम रहीम" रखा हुआ था. इसके भक्त अपने घर में सनातन देवी देवताओं की पूजा नहीं करते हैं. इस डेरे की स्थापना भी किसी हिन्दू या सिक्ख ने नहीं बल्कि एक मुसलमान ने की थी, जिसका उद्देश गरीब हिन्दुओ को धर्म से भटकाना था.

एक बलूची मुसलमान "अमकुरेजुद्दीन खान" उर्फ़ "शाह मस्ताना" ने सन 1948 में "डेरा सच्चा सौदा" की स्थापना की थी. इस संस्थान का मुख्य उद्देश्य पंजाब के दलितों और गरीबो को अपने मूल धर्म (हिन्दू / सिक्ख ) से भटकाना था. इसके लोगो में "हिन्दू, मुस्लिम और सिख" तीनो धर्म के प्रतीक दिखाए गए है, ये अपने आपको "इन्सां" कहते हैं.
यह संभवता आज तक का सबसे सेकुलर डेरा है. लेकिन रेप केस मे फँसने और कई अन्य नए मामले सामने आ जाने के बाद, सेकुलर लोग इन लोगों को हिन्दू साबित करने पर तुले हैं जिससे कि- इसके नाम के सहारे हिन्दुओं को बदनाम किया जा सके. यह डेरा अपने स्थापना काल से लेकर आजतक कांग्रेस का समर्थक रहा है.
कांग्रेस हमेशा अपने आपको सेकुलर कहती आई है और कोई भी अपने आपको सेकुलर कहता है वह उसको बहुत प्रिय होता है. अपने आपको सेकुलर साबित करके ही इस डेरे ने, धर्म बिरोधी सेकुलरों को अपना अनुयाई बनाया. 2017 में पंजाब के विधानसभा चुनाव में भी डेरे ने कांग्रेस को अपना समर्थन दिया था.
डेरा सच्चा सौदा के भक्त सनातन देवी देवताओं को बुरा भला बोलते थे और "गुरमीत राम रहीम" को पिताजी बोलते थे. वे लोग अपने घर में देवी देवताओं के चित्र और मूर्ति भी नहीं रखते थे. लेकिन मीडिया का दोगलापन देखिये कि- जब कहीं कोई ढोंगी बाबा किसी गलत काम में पकड़ा जाता है तो मीडिया वाले उसको लेकर हिन्दू धर्म पर प्रहार करने लगते हैं.
जबकि इसके उलट जब कोई आतंकी जो खुद अपने आपको सच्चा मुसलमान बताते हुए, निर्दोष लोगों की ह्त्या करता है, तो यही मीडिया उसको मुसलमान कहने से डरती है और उसके मुसलमान न कहकर भटका हुआ इंसान बताता है. तब अपनी बात को और बजनदार बनाने के लिए साथ में यह भी जोड़ देते हैं कि- आतंकी का कोई धर्म नहीं होता.

Thursday, 10 February 2022

उडुपी वाले : जिन्होंने महाभारत के युद्ध के समय दोनों सेनाओ को भोजन कराया था

उडुपी दक्षिण भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है. यहाँ भगवान् श्रीकृष्ण को समर्पित कई भव्य मंदिर है. जिनमे "अनंतेश्वर मंदिर" सबसे प्राचीन एवं प्रशिद्ध है. यहां पर भगवान की आकर्षक मूर्ति को रत्नों और स्वर्ण रथ से सजाया गया है. सारा उडुपी नगर इस मंदिर के चारो और बसा हुआ है. इस नगर को दक्षिणी भारत का मथुरा कहा जाता है.


"अनंतेश्वर मंदिर" को जो चीज खास बनाती है, वह है इस मंदिर की पूजा पद्धति. यहां पूरी पूजा की प्रार्थना और प्रक्रिया एक चांदी की परत वाली खिड़की से होती है जिसमें नौ छेद होते हैं जिन्हें “नवग्रह किटिकी” कहा जाता है. उडुपी अनंतेश्वर मंदिर के नाम से जाने जाने वाले कई मंदिर श्रीकृष्ण मठ के चारों ओर हैं. मंदिर में एक आश्रम भी है,
उडुपी मठ में जन्माष्टमी, राम नवमी, नरसिंह जयंती, वसंतोत्सव, अनंत चतुर्दशी और मेघ संक्रांति के त्योहार को भव्य रूप से मनाया जाता है. उडुपी को बेहतरीन खाना बनाने वाले रसोइयों के लिए भी जाना जाता है. उडुपी का जिक्र महाभारत में भी होता है. कहा जाता है कि - महाभारत के युद्ध के समय दोनों ही सेनाओ के लिए भोजन उडुपी वालों ने ही बनाया था.
कहा जाता है कि - उडुपी के राजा महान कृष्ण भक्त थे. उनके पांडवो और कौरवों दोनों से ही बहुत अच्छे समबन्ध थे. जब पांडवो और कौरवों का युद्ध तय हो गया तो दोनों ने ही उडुपी के राजा से सहातया मांगी और दोनों से मित्रता होने के कारण, वे किसी को भी इंकार नहीं कर सके. लेकिन अपने बचन को कैसे निभाए इसको लेकर धर्म संकट में फंस गए.
वे अपनी दुविधा को लेकर श्रीकृष्ण के पास पहुंचे और कहा जिस तरह आपके कौरवो और पांडवों से समबन्ध है वैसे ही मेरे भी दोनों से मित्रवत सम्बन्ध है. आपने तो एक को अपनी सेना और दूसरे को खुद को सौंप दिया है, मुझे भी कोई ऐसा मार्ग दिखाइये कि- मैं धर्मसंकट से निकल सकूँ. तब श्रीकृष्ण ने ऐसा उपाए बताया कि - कई समस्याओं का समाधान हो गया.
दोनों सेनाओ के लिए बहुत सारे भोजन की आवश्यकता होगी और आप उडुपी के लोग अपनी पाक कला के लिए बहुत प्रशिद्ध हैं. आप दोनों सेनाओं के लिए भोजन की व्यवस्था सम्हालिए. इस तरह आपका दोनों की सहायता करने का बचन भी पूरा हो जाएगा और किसी की हत्या करने का पाप भी नहीं लगेगा. उडुपी राजा ने पूँछा- मुझे कैसे पता चलेगा कि कितना भोजन बनाना है ?
तब श्रीकृष्ण ने एक मूंगफली खाते हुए मुस्कराकर कहा - इसका संकेत मैं तुम्हे दूँगा. उसके बाद उडुपी राजा श्रीकृष्ण को प्रणाम कर, कौरवों और पांडवो से मिले. कौरव और पांडव भी इस प्रस्ताव से बहुत प्रसन्न हुए क्योंकि अपनी विशाल सेनाओं को भोजन कराने की समस्या से वे लोग भी चिंतित थे. इस प्रकार श्रीकृष्ण ने सभी की समस्या का समाधान कर दिया।
महाभारत युद्ध 18 दिन तक चला और हर दिन हजारों लाखों योद्धा, सैनिक मारे जाते थे. इस हिसाब से जैसे-जैसे सैनिक घटते जा रहे थे, महाराज उडुपी भी उनके लिए कम भोजन बनाते थे, ताकि भोजन का नुकसान न हो. आश्चर्यजनक बात थी कि हर दिन, सभी सैनिकों के लिए भोजन बिल्कुल पर्याप्त होता था. न कभी कम पड़ता था और न ही कभी फेंकना पड़ता था.
युद्ध की समाप्ति के बाद उडुपी राजा के सहायक ने उडुपी राजा से कहा- आप जितना भोजन बनाने को कहते थे हम उतना ही भोजन बनाते थे लेकिन आपको यह कैसे पता चल जाता था कि - आज शाम को इतने हजार कम सैनिक भोजन करेंगे अर्थात आज इतने सैनिको और योद्धा मारे जाएंगे उसकी इतनी सटीक संख्या का पता आपको कैसे चल जाता था.
तब उडुपी राजा ने कहा - 'हर रात के भोजन के उपरांत सोने से पहले श्रीकृष्ण के पांडाल में जाता था और एक प्याले में उबले हुए मूंगफली के दाने गिनकर रख देता था. सुबह को जब वह प्याला उठाकर लाता था तो दानो को फिर गिनता था. जितने दाने कम मिलते थे, मैं उतने हजार लोगों का खाना उस दिन कम बनबाता था. अर्थात उतने हजार लोग उस दिन मारे जाते थे.
युद्ध की समाप्ति के बाद जब उडुपी राजा वापस जाने लगे तो श्रीकृष्ण ने उनको वरदान दिया कि- उडुपी के लोग जन्मजात पाक कला में निपुण होंगे. उनकी पाक कला विश्व में विख्यात होगी. उडुपी वालों के भोजन से कभी कोई असंतुष्ट नहीं होगा. वे किसी कार्यक्रम में भोजन बनायेंगे तो न वह कभी कम पड़ेगा और न ही कभी बेकार जाएगा.