Saturday, 10 July 2021

गांधी जी को ट्रेन से उतारने और भारत में अंग्रेजों से बदला लेने का सच

कांग्रेसी अक्सर बोलते हैं कि किसी अंग्रेज ने नस्लभेद के कारण गांधीजी ट्रेन से उतार दिया था. इस घटना के कारण गांधीजी अंग्रेजों के खिलाफ हो गए और उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन चलाया.

यह कहानी भी कांग्रेसियों की अन्य कहानियों जैसी ही है. अगर यह घटना सच भी है तो यह 1893 की है जब गांधी जी 24 साल के थे और गांधीजी भारत में वापस 1915 में आए थे जब वो 46 साल के थे
गांधीजी के पिता करमचंद गांधी ब्रिटिश शासन के समय पोरबन्दर रियासत में प्रधानमंत्री थे, इसके अलावा वे राजस्थानिक कोर्ट के सभासद, राजकोट में दीवान और कुछ समय तक बीकानेर के दीवान के उच्च पद पर प्रतिष्ठित रहे थे.
ये सभी वे रियाशतें थीं जो ब्रिटिश शासन की बफादार थी. गांधीजी के पिता राजशाही और अंग्रेज अधिकारियों में समन्वय स्थापित करने का काम करते थे. वे काफी धनवान थे और उन्होंने अपने बेटे को वकालत पढ़ने इंग्लैण्ड भेजा.
अंग्रेजी राज में पिता ने खूब धन कमाया और उनके साथ कोई भेदभाव नहीं हुआ. गांधीजी ने अंग्रेजों के साथ रहकर पढ़ाई की और वकालत की प्रैक्टिस की लेकिन उनके साथ कोई भेदभाव नहीं हुआ. इस प्रकार बहुत साल गुजर गए.
गांधीजी का बहुत सारा जीवन इंग्लैण्ड और दक्षिण अफ्रीका में गुजर गया मगर उसके साथ कोई भेदभाव नहीं हुआ. वे अंग्रेजों के साथ ही रहते रहे, पढ़ते रहे और काम भी करते रहे. किसी भी अंग्रेज ने उनको कभी परेशान नहीं किया.
इसी बीच भारत में अभिनव भारत, युगांतर, अनुशीलन समिति ने भारत में अंग्रेजो के खिलाफ स्वाधीनता संग्राम छेड़ दिया. 1907 में वीर सावरकर के ग्रन्थ "1857 - प्रथम स्वातंत्र्य समर" ने क्रान्ति की ज्वाला को और ज्यादा भड़का दिया.
क्रांतिकारियों ने अंग्रेज अधिकारियों की हत्या करना शुरू कर दिया. अनेकों अंग्रेज अधिकारी मारे गए. इस अपराध में अनेकों क्रांतिकारियों को फांसी हुई और अनेकों क्रांतिकारियों को रंगून और कालापानी की जेलों में भेज दिया गया.
इसी बीच अचानक गांधी जी को याद आया कि 21 साल पहले किसी अंग्रेज ने उनको ट्रेन से उतारा था, बस गांधी जी अपनी विदेशी जायदात को बेचकर 1915 में भारत आ गए. यहाँ उनके आते ही दुसरा स्वाधीनता संग्राम समाप्त हो गया.
एक महत्वपूर्ण बताना तो भूल ही गया. गांधीजी को साउथ अफ्रका की ट्रेन से 7 जून, 1893 को उतारा गया था. उनको इस बात पर तब गुस्सा नहीं आया था. उनको 22 साल बाद गुस्सा आया और अंग्रेजों से बदला लेने के लिए वे 9 जनवरी 1915 में भारत आये.

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