Wednesday, 6 January 2021

कोस मीनार

अक्सर कहा जाता है कि - पुराने जमाने में फलां राजा ने फलां सड़क या फलां हाइवे बनाया था. यह बात पूरी तरह से गलत है कि - प्राचीन काल में किसी भी राजा ने कोई पक्की सड़क अथवा कोई हाईवे बनाया था या मार्ग में आने वाली किसी नदी / नाले पर कोई पुल बनबाया था. 

लोगों के चलने से जो रास्ते बन जाते थे वही मिट्टी के रास्ते हुआ करते थे. अपने अपने राज्य में से गुजरने वाले इन कच्चे रास्तों पर स्थानीय राजा, जागीरदार, सेठ, आदि उन रास्तों की साफ़ सफाई करा दिया करते थे और कुएं, बाउली, सुरक्षा चौकी, सराय, आदि बनबा दिया करते थे. 

प्राचीन काल से ही ऐसे कार्यों को करना बहुत ही धार्मिक कार्य माना जाता रहा है. आप अशोक, विक्रमादित्य, हर्षबर्धन, आदि के बारे में पढ़ते समय अक्सर लिखा देखते होंगे कि - उन्होंने रास्तो छायादार / फलदार बृक्ष लगबाए और कुएं - तालाब खुदबाये, आग का इंतजाम किया,... 

रास्तों के किनारे मंदिर और सराय भी बनाई जाती थी, जहाँ गुजरने वाले यात्री पड़ाव डालते थे और विश्राम करते थे. ऐसे ही रास्तों के किनारे पहचान के लिए ऊँची सी मीनार बना दी जाती थी, उसके आसपास भी कुंआ और आग की व्यवस्था राजाओं और दानियों द्वारा की जाती थी. इन मीनार को कोस मीनार कहा जाता था. 

यूँ तो इस तरह की चीजे हजारों साल से बनाई जाती रही है लेकिन शेरशाह सूरी ने अपने शासन काल में इन्हे काफी बड़ी संख्या में बनबाया था. शेरशाह सूरी ने जिस मार्ग पर ये कोस मीनार बनबाये थे, उस मार्ग को शेरशाह सूरी मार्ग कहा जाता है. अगर आप दिल्ली से जलंधर जाएँ तो आपको ऐसे अनेको कोस मीनार दिखाई दे जाएंगे. 

ये कोस मीनार ज्यादातर वर्तमान हाइवे के किनारे बने गाँवों की पतली सड़क के किनारे बने हुए है क्योंकि प्राचीन रास्ते वही पुराने है. वर्तमान वाली सीधी और चौड़ी सड़के तो बहुत बाद में बनी है. शेरशाह सूरी के बाद रास्तों को सुविधाजनक बनाने का सबसे ज्यादा काम मालवा (इंदौर) की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने किया था. 

उन्होंने सड़को के किनारे कोस मीनार बनाने से ज्यादा  मंदिर, धर्मशाला, कुएं, तालाब, फलदार पेड़, आदि बनाने / लगाने पर ज्यादा ध्यान दिया था पहले ये रास्ते सीधे नहीं थे बल्कि गाँवों में घूमते हुए जाते थे. इसलिए आपको ज्यादातर कोस मीनार नेशनल हाईवे के किनारे नहीं बल्कि हाईवे के किनारे बसे हुए पुराने गाँवों की पुरानी सड़कों के किनारे बने हुए दिखेंगे. 

इन रास्तो को सीधा करने का काम रेल लाइन पड़ने के बाद हुआ. अंग्रेजों द्वारा भारत में रेल लाइन बिछाने के बाद, उसके समांतर में सड़को का विकास शुरू हुआ. पुराने शेरशाह सूरी मार्ग को सीधा करने के लिए कुछ पुराना रास्ता इस्तेमाल किया गया तथा कुछ नया रास्ता बनाया गया. इसको अंग्रेजों ने ग्रांड ट्रक रोड (GT road ) नाम दिया. 

अंग्रेजों ने रास्तो को पक्का करने और रास्ते में आने वाले नदी / नालों पर पुल बनाने का काम भी किया था. अंग्रेजों द्वारा GT Road पर पत्थर (गिट्टी) डालकर उन्हें कठोर बनाया गया था. अंग्रेजो ने नाम दिया था GT Road लेकिन ग्रामीण भारतीय उसे गिट्टी रोड कहा करते थे. 

वर्तमान हाई-वे और स्पीड-वे उन्ही रास्तों का विकसित रूप है. आज रास्ते बहुत चौड़े और सीधे हो चुके है. रास्तों पर बेहतरीन पुल और सुरंगे बन चुकी है. लेकिन उन परिस्तिथयों में कोस मीनार का कितना महत्त्व रहा होगा , हम इसे आज भी आसानी से समझ सकते हैं

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