इंदिरा गांधी ने पापिस्तान के नहीं बल्कि कांग्रेस के दो टुकड़े किये थे. लाल बहादुर शास्त्री जी की हत्या के बाद कांग्रेस के नेता मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे लेकिन नेहरु के बफादारों ने इंदिरा गांधी को आगे कर दिया. उसके बाद इंदिरा गांधी ने 1969 में कांग्रेस के सीनियर नेताओं को खुड्डे लाइन लगाकर कांग्रेस को दो फाड़ कर दिया था.
इंदिरा गाँधी गुट ने कांग्रेस (आर) बनाया था और कांग्रेस के सीनियर नेता मोरारजी देसाई और कामराज आदि ने कांग्रेस (ओ). पहले कांग्रेस का चुनाव चिन्ह था "बैलों की जोड़ी". कांग्रेस को तोड़ने के बाद इंदिरा ने कांग्रेस (आर) के लिए "गाय और बछड़ा" चुनाव चिन्ह लिया और कामराज गुट को चुनाव चिन्ह मिला था "चरखा"
इलेक्शन सिम्बल के तौर पर मिला और 1977 के चुनावों में जब इंदिरा की बुरी तरह से हार हुई थी, तो एक बार फिर इंदिरा गांधी ने कांग्रेस को दोफाड़ किया और प्रभावशाली नेताओं को दरकिनार कर एक नई पार्टी बनाई थी जिसको नाम दिया था कांग्रेस (आई). अर्थात कांग्रेस (इंदिरा). और पार्टी का नया चुनाव चिन्ह बनाया था, "हाथ का पंजा"
अब बात करते हैं पापिस्तान के दो टुकड़े करने की. तो भारत पापिस्तान का युद्ध हुआ था 4 दिसंबर 1971 से 16 दिसंबर 1971 तक. और बंगलादेश पापिस्तान से अलग हुआ था 26 मार्च 1971 को. इसके अलाबा भरत - पापिस्तान के उस युद्ध को भी सेना ने बहुत ही सीमित संशाधनो के साथ लड़ा था और अपनी बहादुरी के दम पर जीता था.
3 दिसम्बर को पापिस्तान द्वारा भारत पर किये गए हवाई हमले (आपरेशन चंगेज खान) के बाद भी इंदिरा गांधी युद्ध का निर्णय नहीं ले पा रही थी. तब जनरल मानेकशा ने कहा था कि- आप घोषणा करती हैं या फिर मैं खुद युद्ध की घोषणा करू ? उस युद्ध की घोषणा के बाद युद्ध की सारी कमान जनरल मानेकशा के हाथ में थी.
जनरल मानेकशा ने तो नेताओं के द्वारा, युद्ध को लेकर कोई बयान तक देने पर रोक लगा दी थी. उस 14 दिन के भीषण युद्ध में भारतीय सेना ने बहुत सीमित संसाधनों के साथ पापिस्तान को शिकस्त दी थी. इंदिरा गांधी या उनकी सरकार का काम था सेना को अधिक से अधिक आधुनिक हथियार उपलब्ध कराना जिसमे वह नाकाम रही थी.
भारतीय सेना ने अपनी बहादुरी और कुर्बानियों के द्वारा पापिस्तान पर जो जीत हाशिल की थी, इंदिरा गांधी ने तो उस जीत को ही "शिमला समझौते" के द्वारा हार में बदल दिया था. युद्ध के बाद जब सेना बैरकों में वापस लौट गई तब कांग्रेसियों ने इंदिरा का ऐसे गुणगान शुरू कर दिया जैसे युध्ह इंदिरा गांधी ने खुद लड़ा हो.
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