ब्रह्मचर्य आश्रम में व्यक्ति ब्रह्मचारी जीवन बिताते हुए - ज्ञान, विद्या, कला, युद्ध, व्यापार, खेती, दस्तकारी, आदि सीखता था, ग्रहस्त आश्रम में आते ही उसका विवाह कर दिया जाता था. जिसके साथ उसका विवाह हो जाता था उसको वो अपना जीवन साथी मान लेता था और उसके साथ जीवन व्यतीत करते हुए अपने वंश को बढाता था.
वानप्रस्थ आश्रम में वो अपनी जिम्मेदारियां अपने उत्तराधिकारियों पर डालकर उनका मार्गदर्शन करता था.
जब उसके उत्तराधिकारी जिम्मेदारियां सम्हाल लेते थे तो वो सामान्य जीवन से संन्यास लेकर, ईश्वर की पूजापाठ, तपस्या आदि में लग जाता था. महिलाओं का जीवन भी आश्रम पद्धति से जुड़ा था, कुछ कामो में भिन्नता अवश्य थी.
पुरुषों को शिक्षा दी जाती थी कि - अपनी पत्नी के अतिरिक्त प्रत्येक स्त्री को आयु के अनुसार माँ - बहन - पुत्री के रूप में देखे और स्त्री को भी सिखाया जाता था कि - पति के अतिरिक्त प्रत्येक पुरुष को आयु के अनुसार पिता - भाई - पुत्र के रूप में देखें.
इसीलिए उस काल में दुष्ट से दुष्ट व्यक्ति भी किसी स्त्री के साथ कोई दुव्यवहार नहीं करता था.
प्राचीन काल में महिलाओं से दुर्व्यवहार के केवल दो उदाहरण मिलते हैं. एक में रावण ने सीता का अपहरण किया और दुसरे में दुर्योधन ने द्रौपदी के चीरहरण का प्रयास किया. उनके इस कार्य को उनके साथियों ने तक अच्छा नहीं माना और आखिर में उनका सर्वनाश हो गया और हजारों साल से आजतक, उनको बुरा व्यक्ति मानकर नफरत की जाती है.
इन दो के अलावा कोई और उदाहरण नहीं है जिसमे शत्रुओं ने, एक दुसरे की स्त्रियों को बे-इज्ज़त करने का प्रयास किया हो. युद्ध होने पर राजाओं की सेना युद्ध लडती थी. जिस राजा की सेना जीत जाती थी उस राज्य की प्रजा जीते हुए राजा को अपना राजा मानकर उसे राजस्व और सम्मान देने लगती थी, प्रजा के जीवन में और कोई फर्क नहीं पड़ता था.
भारत में यह समस्या तब आई, जब उन विदेशी हमलावरों ने भारत पर आक्रमण किया जिनकी संस्क्रती यहाँ से उलट थी. उनकी संस्क्रती में स्त्री कोई मनुष्य नहीं थी बल्कि वो केवल भोगने की वस्तु थी. जो युद्ध में पुरुष को मारने के बाद, उसके परिवार की स्त्रियों को अपनी जीत का इनाम मानते थे. इसके बाद ही भारतीय समाज में विकृति आई है.
इतिहास गवाह है कि - फिर भी भारत की ज्यादातर स्वाभिमानी स्त्रियों ने जालिम हत्यारों की दासता स्वीकारने के बजाय अपनी जान देना बेहतर समझा था. इसके अलावा भारतीय राजाओं ने तब भी शत्रु स्त्रियों को कभी बेईज्ज़त नहीं किया. "शिवाजी और गौहरबानो" का किस्सा भारतीय इतिहास में अमर है. वो हमारी सभ्य संस्क्रति का सबसे बड़ा उदाहरण है.
विदेशी अप-संस्कृति के जाल में फंसकर अपनी भारतीय संस्कृति को भुला देने से ही भारत में छेड़छाड़ और बलात्कार जैसी विकृतियाँ आई हैं. यह कहना कि - ऐसा कपड़ों के कारण होता है तो यह केवल असल समस्या से मुह फेरने जैसा है. इस समस्या का स्थाई समाधान केवल उस प्राचीन भारतीय संस्कृति के प्रचार और प्रसार से ही किया जा सकता है.
इस तरह के अपराधों को रोकने के लिए, स्कूलों में शिक्षा के माध्यम से बच्चों को भारतीय संस्कृति का पाठ पढ़ाना चाहिए. इसके अलावा झूठी नैतिकता को दिखावा बंद करके वेश्यालयों को कानूनी मान्यता देनी चाहिए. जिससे समाज का वो बिशेष तबका वहां जाकर अपनी हवस मिटा ले और जन सामान्य को कोई तकलीफ न दे पाए.
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