Wednesday, 5 June 2019

जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) कम होने तथा बेरोजगारी बढ़ने के हंगामे का सच

23 मई को भाजपा के पक्ष में परिणाम आते ही, अंधबिरोधियों ने हंगामा शुरू कर दिया है कि - वित्त वर्ष 2018-19 की चौथी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर घटकर 5.8% हो गई है. इसके अलावा देश में बेरोजगारी की दर पिछले 45 साल में सबसे ज्यादा हो गई है. सोशल मीडिया पर भी इसको लेकर हल्ला है. आइये आपको इन दोनों ही बातों का सच बताता हूँ.
पहला तथ्य बिलकुल सही है कि - वित्त बर्ष 2018-19 की चौथी तिमाही (1 जनवरी 2019 से 31 मार्च 2019) में जीडीपी में गिरावट आई है. इसका प्रमुख कारण है लोकसभा का आम चुनाव. इस चुनाव के कारण फरवरी 2019 में आचार संहिता लागू हो गई थी और आप जानते ही हैं कि -आचार संहिता के कारण सरकारी विकास योजनाओं पर रोक लग जाती है.
इसके अलावा चुनाव के समय, चुनावकर्मियों तथा सुरक्षा व्यवस्था पर बहुत ज्यादा खर्च बढ़ जाता है. इस प्रकार कह सकते हैं कि- सरकार की आमदनी कम और खर्चा ज्यादा. इसको ऐसे समझ सकते हैं जैसे किसी दुकानदार की बेटी की शादी होने वाली हो. बेटी की शादी के कारण खर्च खूब हो रहा हो और दुकान कम खुल पाने के कारण कम बिक्री होती हो.
लोकसभा चुनाव से सरकारी कामकाज तो प्रभावित होते ही है साथ ही निजी कम्पनिया भी अपना उत्पादन कम कर देती है और वो नई सरकार के आने की प्रतीक्षा करने लगती हैं. उन निजी कम्पनियों को भी भय होता है कि - पता नहीं नई सरकार कैसी होगी और वह व्यापार के लिए क्या नीति रखेगी. इसलिए वो अपना काम सीमित कर देते है.
ऐसी हालत में उत्पादन और विकास तो प्रभावित होना ही है. ऐसा कोई पहली बार नहीं है और न ही आख़िरी बार है, बल्कि यह तो आने वाले हर बड़े चानव के समय भी होता रहेगा. आइये अब बात करते है देश में बढ़ी हुई बेरोजगारी की दर की, यह तथ्य बिलकुल झूठ है क्योंकि लोग काम न मिलने से नहीं बल्कि वर्कर न मिलने से परेशान है.
45 वर्ष में सबसे ज्यादा बढ़ी हुई ,जिस बेरोजगारी का प्रचार किया जा रहा है वह रिपोर्ट 2017-18 वित्त वर्ष की है. उस समय नोटबंदी और जीएसटी के बाद लगभग 3.5 लाख फर्जी कंपनियां पकड़ में आई थीं, जो सिर्फ कागजों पर थी, उन सभी फर्जी कम्पनियों में झूठे कागजो में हर जगह 10 से लेकर 100 से ज्यादा लोग काम कर रहे थे.
इन सभी फर्जी कम्पनियों का पंजीकरण रद्द किया गया था. तो जाहिर सी बात है कि - इनमे काम कर रहे (कागजो में) लाखों वर्कर भी बेरोजगार हो गए थे. वर्ना देश के कारखानों और कृषि क्षेत्र का इतना बुरा हाल है कि उनको अपने यहाँ काम कराने के लिए वर्कर नहीं मिल रहे हैं. उन फर्जी वर्करो की फर्जी नौकरी छूटना ही बेरोजगारी बढ़ने का सच है.
GST की जो नई व्यवस्था लागू हुई थी, उसको लेकर फैलाए गए भ्रम के कारण कुछ समय के लिए व्यापार जरुर प्रभावित हुआ था लेकिन बहुत जल्द ही पटरी पर आ गया था. आज हर व्यापारी जानता है कि यह व्यवस्था उसके ही हित में है. केवल नंबर 2 का काम करने वाले अथवा स्टेट बार्डर पर दलाली करने वाले रो रहे हैं.
इसके अलावा जितने भी लोग जिला रोजगार कार्यालय में लोग अपना नाम रजिस्टर कराते हैं, वे लोग कोई नौकरी मिल जाने पर या अपना कोई स्व-व्यवसाय शुरू करने के बाद वहां अपना नाम कटवाने नहीं जाते है. इस कारण वहां बेरोजगारों की संख्या बढ़ती जाती है. अगर वास्तव में बेरोजगारी होती तो उद्योग लेबर की कमी को लेकर नहीं रो रहे होते.
केंद्र सरकार की मुद्रा योजना / स्टार्टअप योजना का लाभ उठाकर भी करोड़ों लोगों ने स्व-व्यवसाय स्थापित कर लिया है और ठीक ठाक कमा खा रहे हैं. आंकड़ों की बाजीगरी करने वालों की नजर में स्व-रोजगार करने वाले लोग भी बेरोजगार हैं. उनकी नजर में केवल सरकारी नौकरी करने वाली ही रोजगार करने वाला माना जाता है.
इसलिए अंध बिरोधियों की बाते सुनकर परेशान होने के बजाये, अपने आसपास नजर दौड़ाइए और देखिये कि- वहां कितने लोग बेरोजगार है. यदि आपके आसपास ऐसे लोग दिखाई दें तो उनको पंजाब, गुजरात, तमिलनाडु, जाने को प्रेरित करें या उनको केंद्र सरकार के कौशल विकास और मुद्रा योजना के बारे में बताएं.

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