Wednesday, 22 May 2019

मुघलसराय : मुघलों की अहेसानफरामोशी का सबूत है मुघलसराय

मुग़लसराय न मुघलो की कोई सराय थी और न ही यह कोई बड़ा शहर था जिसका कोई विशेष महत्त्व हो. यह तो वाराणसी जिले की चदौली तहसील का एक छोटा सा कस्बा था. मुग़लसराय का महत्त्व तो तब बना जब वहां अंग्रेजों ने रेलवे का बड़ा जंक्शन बनाया.
मुघलसराय का कोई ऐतिहासिक महत्त्व नहीं है यहाँ आपको ढूँढने पर भी वहां के मूल निवाशी नहीं मिलेंगे. जिनसे भी आप बात करेंगे उनके पिता, दादा या परदादा कहीं और से रेलवे की नौकरी के कारण वहां आये हुए मिलेंगे, जो रिटायरमेंट के बाद वहीँ बस गए थे.
वाराणसी से नजदीक होना तथा दिल्ली - कोलकाता मुख्य मार्ग पर बड़ा जंक्शन और एशिया का सबसे बड़ा "रेलवे मार्शलिंग यार्ड" होने के कारण इसका महत्त्व बढ़ता चला गया. आज भी वहां जो कुछ है रेलवे मार्शलिंग यार्ड और जंक्शन के कारण ही है.
मुग़ल सराय के नाम के पीछे की भी जो कहानी मुग़ल सराय वाले बताते हैं उससे भी मुगलों की किसी महानता का नहीं बल्कि उनकी अहेसान फरामोशी का पता चलता है. यह कहानी तब शुरू होती है जब शेरशाह ने हुमायु को चौसा की लड़ाई में पराजित किया था.
हुमायु , शेरशाह सुरी से अपनी जान बचाने के लिए, चौसा से कन्नौज की तरफ भाग रहा था. कर्मनाशा नदी ( उस क्षेत्र में बिहार - उत्तर प्रदेश की सीमा रेखा) को पार करने के बाद उसे कुछ राहत महसूस हुई. गंगा के खादर में बचते हुए कन्नौज की तरफ बढ़ने लगा.
भूख, प्यास और थकान से निढाल होकर वह एक छोटे से गाँव में पहुंचा. वहां एक ब्राह्मणी जिसका नाम ममता था, उसका द्वार खटखटाया. जब तक ममता वहां पहुँची तो वह लगभग बेहोस होकर गिर पड़ा. ममता उसे घर के भीतर ले गई. उसे पानी पिलाया और भोजन कराया.
रातभर हुमायूं ने वहां विश्राम किया. और सुबह होते ही वह वहां से चला गया. उसके बाद के कई साल हुमायूं ने, कन्नौज, राजस्थान, ईरान, आदि में बिताये. हुमायूं और बाद में उसके बेटे अकबर ने भारत के काफी बड़े भू-
भाग को जीत कर अपना कब्ज़ा कर लिया.
अकबर ने ममता के उस झोपड़े पर भी कब्ज़ा कर वहां एक इमारत बनवा दी. उस इमारत पर अकबर ने लिखवाया था कि - हिंदुस्तान के बादशाह हमायुं ने अपने जीवनकाल में एक रात इसी जगह पर बिताई थी. आज से इस जगह का नाम मुगलसराय है.
अहेसान फरामोश अकबर ने ममता की प्रशंसा में एक शब्द भी नहीं लिखा. वहां पर बाद में दो सराय और बन गई. जिस तरह गंगा के उस तरफ काशी एक भव्य और पवित्र नगर था उसी तरह गंगा के इस तरफ का यह स्थान मौज मस्ती का अड्डा बन गया था.
इन सरायों के पास इनके मनोरंजन के लिए वेश्याओं व हिजड़ों का जमावड़ा हुआ करता था. जिनमे सैनिक और व्यापारी अपने मनोरंजन के लिए जाते थे. मुघलसराय का महत्त्व तब बढ़ा जब अंग्रेजों ने उसस जगह को, 1862 में "रेलवे मार्शलिंग यार्ड" बनाने के लिए चुना.
अंग्रेज जब हावड़ा और दिल्ली को रेल मार्ग से जोड़ रहे थे. उस समय दिल्ली और कोलकाता के बीच में सबसे प्रमुख शहर वाराणसी ही था. वाराणसी घना शहर था, इसलिए बनारस के समीप गंगा के इस पार इस निर्जन स्थान यार्ड बनाने के लिए चुना.
रेलवे का बड़ा मार्शलिंग यार्ड होने के कारण यहाँ बहुत सारे कर्मचारी काम करते थे. रेलवे की नौकरी से रिटायर होने के बाद वे वहीँ आस पास बसते चले गए और लगभग सौ साल में वहां अच्छी खासी आवादी हो गई. और मुग़ल सराय एक बड़े शहर में बदल गया.
मुग़लसराय, वाराणसी जिले में ही आता था. 1997 में वाराणसी को विभाजित कर एक नया जिला "चंदौली" बनाया गया, तो मुग़ल सराय चंदौली जिले की एक तहसील बन गया. अब इसी मुग़ल सराय का नाम "पं. दीन दयाल उपाध्याय नगर" रखा गया है.

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