
उस समय राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री थे और वीर बहादुर सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर लगे ताले को खोलने के लिएं बजरंगदल और विश्व हिन्दू परिषद् ने लोकतांत्रिक आन्दोलन चलाया था. 1986 में कोर्ट के आदेश पर श्रीराम जन्मभूमि पर लगे ताले को खोल दिया गया और भीतर जाकर पूजा होने लगी.
इस बात से नाराज होकर कई मुस्लिम बहुल इलाकों में हिंसक प्रदर्शन हुए. जिनमे सबसे ज्यादा हिंसक प्रदर्शन मेरठ में हुए. मेरठ में कई माह तक हिंसक प्रदर्शन चलते रहे. देखते ही देखते मेरठ में यह हिंसक प्रदर्शन साम्प्रदायिक दंगे में बदल गए. दंगों को रोकने के लिए मेरठ में कई बार कर्फ्यू लगाया गया, लेकिन फिर भी शान्ति नहीं हुई.
इसी बीच "सैयद शहाबुद्दीन" ने 30 मार्च को दिल्ली में रैली बुलायी. रेली में साम्प्रदायिक भाषण दिए गए और वक्ताओं ने ताला खोलने के बिरोध में मुसलमानों से अपने घरों पर काले झंडे लगाने का आव्हान किया. कहा जाता है कि ऐसा इसलिए किया गया जिससे मुसलमानों के घरों को पहेचान कर उनको निशाना बन्ने से बचाया जाए.
इस रैली से लौटकर आये मुस्लिमस मेरठ के मुसलमानों ने बहुत स्वागत किया. और उनके कहने पर अपने घरों पर काले झंडे लगाए. इसे देखकर बिना किसी साजिश का अनुमान लगाए जोश में आकर हिन्दू संगठनों ने भी हिन्दुओं से अपने घर पर भगवा झंडे लगाने को कहा. हिन्दुओं द्वारा भगवा झंडे लगाना, हिन्दुओं के लिए और भी घातक रहा.
कई जगह मुस्लिम दंगाइयों ने हिन्दुओं पर भयानक् हमले किये. बताया जाता है कि - मेरठ के एक सिनेमाघर पर भी हमला किया गया, जिसमे गुप्त पहेचान को चेक करके हिन्दुओं की हत्या की गई. मेरठ-दौराला रोड पर एक बस रोककर उसमे भी इसी प्रकार सवारियों को धर्म के आधार पर अलग अलग कर हिन्दुओं की हत्या की गई.
सरकारी आंकड़ों के हिसाब से उस दंगे में कितने हिन्दू मारे गए यह तो सरकारी आंकड़ों से ही पता चलेगा लेकिन मेरठ के लोगों का कहना था कि - उस दंगे में 1000 से ज्यादा हिन्दू मारे गए थे. सिनेमाघर में ही 80 लोग जलाकर मार दिए गए थे. दौराला बस काण्ड में भी 40 हिन्दुओं को पेड़ से बाँधकर बुरी तरह से तडपाकर मारा गया था.
मेरठ के हाशिमपूरा, कबाड़ी बाजार, आदि जैसे क्षेत्रों में हिन्दुओं का सबसे ज्यादा बुरा हाल हुआ. अनेकों लोग मार दिये गए, उनकी संपत्ति लूट ली गई, महिलाओं की इज्जत लूटी गई. मेरठ शहर के अलाबा आसपास के मुश्लिम बहुल कस्बों और गाँवों में भी हिन्दुओं के साथ बहुत अत्याचार हुए. वे लोग 30मार्च के बाद ही दंगे की तैयारी किये हुए थे.
उसके बाद मेरठ के हालात और खराब हो गए. यह दंगा रुक रुक कर लगभग डेढ़ महीने तक चला जिसमे बहुत लोग मारे गए और करोड़ों की संपत्ति का नुकशान हुआ. तब दंगे को रोकने के लिए PAC के जवानो को मेरठ में लगाया गया. इंटेलीजेंस रिपोर्ट और प्रत्यक्षदर्शियों के बयान के आधार पर PAC ने संदिग्ध लोगों की सूची तैयार की.

अगले दिन सुबह लोगों को नहर में 38 शव नहर में दिखाई दिए. उस रात जो हुआ वो बहुत गलत हुआ लेकिन मेरठ के लोगों का यही कहना था कि - माना कि- PAC को कानून को अपने हाथ में लेने का हक़ नहीं था, लेकिन आखिर क्या कारण है कि - जो दंगा किसी भी तरह से नहीं रुक रहा था वह दंगा उस हाशिमपुरा काण्ड के बाद कैसे रुक गया ?
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