
1537 में बंगाल पर एक अचानक हमले में शेरशाह ने उसके बड़े क्षेत्र पर कब्जा कर लिया. हालांकि अपने आप को मुगल सम्राटों का प्रतिनिधि ही बताता था. हुमायूं भी जानता था कि शेरशाह गद्दार हो गया है और उसकी चाहत खुद की सल्तनत स्थापित करने की है. तब हुमायूं ने उसको रोकने के लिए 1539 में बक्सर में युद्ध किया जिसमे शेरशाह की जीत हुई.
उस समय मुघल शासकों का सोने का सिक्का चलता था. शेरशाह ने हुमायूं की सत्ता को चुनौती देते हुए मुघलो के सोने के सिक्के के मुकाबले अपना चादी का सिक्का चलाया. शेरशाह द्वारा अपना सिक्का चलाने को एक चुनौती मानते हुए हुमायूं ने 1540 में फिर हमला किया लेकिन चौसा की इस लड़ाई में भी हुमायूं की हार हुई.
शेरशाह के जिस जिस चांदी के सिक्के को "रुपया" कहा जाता है उसकी भी दो बजह बताई जाती हैं. कुछ इतिहासकारों का कहना है कि - शेरशाह ने अपनी बेटी "रूपी" के नाम पर सिक्के का नाम "रूपी" रखा था और कुछ इतिहासकार मानते है कि - "रुपया" संस्कृत के शब्द "रुप् या" "रुप्याह्" मे निहित है, जिसका अर्थ कच्ची चांदी होता है.
बजह जो भी रही हो लेकिन यह सत्य है कि हजारो साल से भारत में स्वर्ण मुद्रा (सोने के सिक्के), रजत मुद्रा (चांदी के सिक्के) , कांस्य मुद्रा (कांसे के सिक्के) चले आ रहे हैं. इसी प्रकार शेरशाह ने न कोई सड़क और न ही कोई पुल बनबाया था. उस काल में न ही कोई पक्का रास्ता था. बस राजा लोग प्रचलित मार्ग पर कोस मीनार बनवा देते थे.
कोस मीनार यात्रियों के लिए रास्ते की पहेचान और रुकने का सुरक्षित ठिकाना हुआ करती थी. यह कोस मीनारे बहुत सारे राजाओं ने मार्गों में बनबाई थी. इन कोस मीनारों के आसपास स्थानीय राजा अपने सिपाही रखते थे. पीने के पानी और जलाने की लकड़ी की व्यवस्था करते थे. शेरशाह ने कोई पक्की सड़क नहीं बनबाई.
शेरशाह कोई अर्थशास्त्री नहीं था. शेरशाह ने तो केवल मुघल (हुमायूं) की सत्ता को चुनौती देते हुए अपना सिक्का चलाया था. शेरशाह की सत्ता भी मात्र 5 साल तक रही. भारत में अर्थव्यवस्था की बहुत ही सुद्रढ़ प्रणाली का इतिहास रहा है. कौटिल्य का अर्थशास्त्र शेरशाह के पैदा होने से 1700 साल से भी ज्यादा पुराना है.
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