मनुष्य ने प्रारम्भ से ही प्रकति को समझने का प्रयास कर दिया था. जहाँ अन्य जीव जंतुओं का उद्देश केवल भोजन और संतान ब्रद्धि था, वहीँ मनुष्य प्रक्रति के रहस्यों को समझने का प्रयास जारी रखा. जीवन की उत्पति कैसे होती है और म्रत्यु के बाद क्या होता है इस रहस्य को समझने के लिए अनेकों सिद्धांत प्रतिपादित किये.
भगवान् ने मनुष्य को बनाया है या मनुष्य ने भगवान् को बनाया है यह भी एक पुराना विवाद है. आस्तिक लोगों का मानना है कि - स्वर्ग अथवा सातवें आसमान पर बैठे, भगवान् / अल्ला ने स्रष्टि की रचना की और स्वयं अवतार लेकर अथवा अपने मैसेंजर भेजकर मनुष्य को जीवन जीने का ज्ञान दिया,
जबकि नास्तिक लोगों का मानना है कि - मनुष्य ने एक सुपरपावर भगवान की कल्पना की है और जो बात उसे समझ न आये वो उसे भगवान पर छोड़कर निश्चिन्त हो जाता है. जब तक जिस घटना का रहस्य समझ न आये उसे ईश्वर या देवता मान लेते हैं जब विज्ञान उसका रहस्य खोज लेता है तब उसे विज्ञान मान लेते हैं.
जब तक यह नहीं पता था कि - बारिस कैसे होती है तब तक के लिए बर्षा के लिए "इंद्र" की कल्पना कर ली गई, आज जब बर्षाचक्र समझ आ गया तो चर्चा इंद्र के बजाय मानसून की होती है. सुस्र्ज और चंद्रमा जब तक रहस्य थे तब उनको देवता मान लिया गया, जब उनकी गति समझ आ गई विज्ञान का हिस्सा बन गए.
आस्तिकों में भी भगवान् की तरह तरह की परिकल्पनाए हैं. किसी का मानना है कि - कोई साकार ब्रह्म है जो स्वर्ग में बैठकर धरती की गतिबिधियों का नियंत्रण करता है और स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाने पर, खुद धरती पर अवतार लेता है और मानवीय रूप में जन्म लेकर मर्यादाओं को पुनर्स्थापित करता है
तो किसी का मानना है कि ईशवर निराकार है और वो अपने किसी विशेष दूत के द्वारा धरती पर सन्देश भेजकर व्यवस्था को बनाता है. यहाँ तक कोई विवाद नहीं है सभी अपने अपने तरीके से जीवन के रहस्य को समझने का प्रयास कर रहे हैं. विवाद तब शुरू होता है जब लोग अपने बिचार दूसरों पर थोपना शुरू करते हैं.
सूरज, चाँद, धरती, पहाड़, नदी, बर्षा, भूकंप, आदि जैसी जिन चीजों का रहस्य विज्ञान खोज चुका है उस पर तो विवाद का कोई कारण रह ही नहीं जाता है, चाहे आपके प्राचीन ग्रंथों में उसपर कुछ भी क्यों न लिखा हो. जीवन और म्रत्यु का रहस्य जब तक न समझ आये तब तक उसे जैसे चाहे माने लेकिन नये ज्ञान का रास्ता बंद न करें.
जीवन और म्रत्यु को लेकर यूं तो बहुत सारी अवधारणाएं है लेकिन दो सिद्धांत सवाधिक प्रचलित हैं. एक सनातन धर्म की पुनर्जन्म की अवधारणा और दुसरी इस्लाम की कयामत वाली अवधारणा. चाहे पुनर्जन्म की अवधारणा हो या कयामत की अवधारणा दोनों का उद्देश्य मनुष्य को अच्छे कर्म के लिए प्रेरित करना है.
जहाँ पुनर्जन्म की अवधारणा में यह बताया जाता है कि इस जन्म में जैसी कर्म करोगे अगले जन्म में उसके वैसे ही फल मिलेंगे. वहीँ कयामत की अवधारणा यह कहती है जैसे कर्म करोगे उसका बैसा ही फल क़यामत वाले दिन मिलेगा. कुल मिलाकर दोनों ही अवधारणाओं का उद्देश्य मनुष्य को अच्छे काम करने की प्रेरणा देना है.
इसलिए जिस मान्यता को मानना है मानिए लेकिन दूसरों पर अपनी मान्यता जबरन थोपने की कोशिश न करें. अपनी अपनी मान्यता पर चलते हुए विज्ञान द्वारा इसका रहस्य खुलने का इन्तजार कीजिए. अगर पुनर्जन्म होता है तो न मानने के बाबजूद मुस्लमान का भी होगा और अगर नहीं होता है तो हिन्दू का भी नहीं होगा.
अगर क़यामत वाली अवधारणा सही है तो हिन्दू को भी उससे गुजरना होगा, चाहे वो इसे मानता हो या न मानता हो. हो सकता है विज्ञान इन सब प्रचलित मान्यताओं से अलग कोई नया और सर्वमान्य सिद्धांत ही खोज निकाले. इसलिए बिना विवाद किये विज्ञान के निष्कर्ष का इन्तजार कीजिए.
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