Monday, 18 September 2017

एक था "पर्शिया"

एक देश था पर्शिया. वहां के लोग बहुत ही शांतिप्रिय थे, वे लोग संत "जरथुस्त्र" के अनुयाई थे. जरथुस्त्र का समय 1500 ई.पू. का माना जाता है. यह लोग अग्नि की पूजा करते थे. यह लोग केवल व्यापार में लगे रहते थे, इनका लड़ाई झगडे से कोई वास्ता नहीं था. लगभग सारी दुनिया में इनका व्यापार फैला हुआ था.
हम लोग जिस "पारस" पत्थर की कहानिया पढ़ते सुनते आये हैं कि - पारस के छूने से मिट्टी भी सोना बन जाती है, वो दरअसल पारसियों की व्यापार नीति ही है. पारसी जिस चीज का भी व्यापार करते उसमे तरक्की करते हैं. समुद्री और जमीनी रास्तों से इन्होने अपने व्यापार को लगभग सारी दुनिया में पहुंचा दिया था.
दुनिया के सबसे संपन्न लोगों में इनकी गिनती होती थी. लगभग 2200 साल तक परसिया ने बहुत तरक्की की. इसी बीच एक 7वीं शताव्दी में अरब में एक नहीं बिचारधारा का जन्म हुआ, जिसका नाम था इस्लाम. इसके कुछ अनुयायी भी पर्शिया में भी आये. पारसी बहुत खुश थे कि - उनको बहुत सस्ते मजदूर मिल रहे हैं.
पारसियों ने उनका दिल खोलकर स्वागत किया. उनको अपने यहाँ अच्छे से रखा. धीरे धीरे उनकी संख्या बढ़ने लगी, पारसियों ने इसपर कोई ध्यान नहीं दिया. धीरे धीरे वहां लड़ाई झगडे शुरू हो गए. लेकिन अमीर पारसी सोंचते थे कि- जमीन और धन तो हमारा ही है ये लोग तो हमारे सस्ते नौकर हैं इनसे हमको क्या खतरा.
पारसियों के पास धन तो बहुत था लेकिन सेना नहीं थी, शान्तिप्रिय व्यापारी होने के कारण वो इसकी जरूरत ही महेसूस नहीं करते थे. कुछ बर्षों में वहां मुस्लिम्स की संख्या बहुत ज्यादा बढ़ गई. इसी बीच अरबों और तुर्कों ने पर्शिया पर बर्बर हमले करने शुरू कर दिये. पारसियों का बड़े पैमाने पर कत्लेआम हुआ और उनकी सम्पत्ति छीन ली गई.
ज्यादातर पारसियों ने अपनी जान बचाने के लिए धर्मपरिवर्तन कर लिया लेकिन कुछ पारसी अपनी जान बचाने के लिए भारत जाने में कामयाब रहे. भारत ने उनको शरण, सुरक्षा और व्यापार का मौक़ा दिया. उन पारसियों ने भी अपने व्यापार कौशल का भारत में भी इस्तेमाल किया और भारत की तरक्की में अपना भरपूर योगदान दिया.
पर्शिया अब पारसियों का देश नहीं रहा. वह एक इस्लामी देश "ईरान" बन चूका था. पारसी धर्म के प्रतीक वहां सदियों तक विधमान रहे. 1979 में "अयातुल्ला खोमैनी" ने इस्लामिक रेवलूशन के नाम पर, जोरोऐस्ट्रेनियन पूजास्थलों के प्रतीकों में आग लगा दी और मूर्तियों को तोड़कर उनकी जगह अयातुल्ला खोमैनी की तस्वीरें लगा दी.
अरब के मुसलमान आज भी अपने आपको सच्चा मुसलमान तथा पर्शिया के मुसलमानों को हुए शिया मुसलमान मानते हैं. इन्ही मतभेद के कारण सऊदी अरब (सुन्नी) और ईरान (शिया) के बीच टकराव हर काल में ही होता रहा है. अरब के लोग अन्य मुल्कों के गैर सुन्नी लोगों को मुसलमान तक नहीं मानते हैं.
वे शियाओं को तो इस्लाम से खारिज तक ही कर देते हैं. कुछ बर्ष पहले सऊदी किंग द्वारा स्थापित इस्लामिक ऑर्गेनाइजेशन के चीफ और सऊदी अरब के सबसे बड़े धर्मगुरु मुफ्ती अब्दुल अजीज अल-शेख ने घोषणा कर दी थी कि - ईरानी लोग मुस्लिम नहीं हैं. क्योंकि वे मेजाय (पारसी) के बच्चे हैं इसलिए इनकी सुन्नियों से पुरानी दुश्मनी है.

"शिया" शब्द भी संभवता "पर्शिया" से ही आया है. अरब के सुन्नी मुसलमान , ईरान के शिया मुसलमानों को दोयम दर्जे का मुसलमान मानते हैं. पापिस्तान, बंगालदेश, भारत, आदि  के मुसलमानो को तो अपनी बराबरी का समझते ही नहीं. ये लोग चाहे कितने भी संपन्न क्यों न हो जाएँ, अरब में सुन्नी अरबी की लड़की से शादी नहीं कर सकते. 
हमें भी दूसरों की गलती से सबक लेना चाहिए.

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