गंगा राम अग्रवाल का जन्म 22 अप्रेल 1851 में अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के ननकाना साहिब जिले के मंगताँवाला गांव में हुआ था. उनके पिता दौलत राम अग्रवाल मंगतांवाला में एक पुलिस स्टेशन में जूनियर सब इंस्पेक्टर थे. गंगा राम ने सरकारी हाईस्कूल से अपनी मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की और 1869 में लाहौर के सरकारी कॉलेज में शामिल हो गए.
1871 में, उन्होंने रुड़की के थॉमसन सिविल इंजीनियरिंग कॉलेज (अब आई आई टी रूड़की) से छात्रवृत्ति प्राप्त की. उन्होंने 1873 में स्वर्ण पदक के साथ अंतिम निचली अधीनस्थ परीक्षा उत्तीर्ण की. एक बार जब वह छुट्टियों में घर आय तो अपने पिता जी से पता चला कि अचानक एस पी साहब की पत्नी को लेबर पेन शुरू हो गया है और दाई ने हाथ खड़े कर दिए है.
एस पी साहब दौरे पर हैं. गंगा राम दौड़ते हुए पहुंच गया एस पी आवास, वहां से सरकारी जीप पर लेकर निकल पड़ा किसी डाक्टर की खोज में, लेकिन तब लाहौर में न डाक्टर था न अस्पताल. तब गंगाराम किसी तरह दूर से एक ज्यादा अनुभवी दाई को लेकर आये और उसकी कोशिश से किसी तरह जच्चा बच्चा दोनों की जान बच गई.
दूसरे दिन जब एस पी साहब लौटे तो उन्होंने गंगा राम का हाथ पकड़ कर कहा कि तुम्हारा एहसान कभी नहीं भुलूंगा, मैं तुम्हें कुछ देना चाहता हूं. गंगा राम ने कहा कि - सर जब आप जैसे अधिकारी को इतनी दिक्कत है तो समझिए कि आम जनता को कितना कष्ट होता है ? अगर मदद करना चाहते हैं तो यहां एक अस्पताल बना दीजिए.
एस पी साहब ने गंगाराम की इस मांग को ऊपर पहुंचाया और सरकार से इसकी मंजूरी मिल गए. उनको इस प्रोजेक्ट के लिए सरकारी सहायक अभियंता के रूप में नियुक्त कर दिया गया. हस्पताल को डिजाइन करने और निर्माण की देखरेख का काम भी गंगाराम को मिल गया. इस प्रकार लाहौर का पहला अस्पताल बन गया जो बाद में मेडिकल कॉलेज बना.
उसके बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा उन्हें लाहौर का सौन्दर्यकरण करने की जिम्मेदारी दी गई. गंगा राम ने लाहौर में अनेकों स्कूल, कौलेज, चौक, चौराहे, बाजार, म्यूजियम, आदि को बनवाया. कुछ ही बर्षों में लाहौर को पूर्व का वेनिस कहा जाने लगा. उनकी योग्यता को देखते हुए उन्हें शाही असेंबली के निर्माण में मदद के लिए दिल्ली बुलाया गया.
उन्होंने जनरल पोस्ट ऑफिस लाहौर, लाहौर संग्रहालय, एचिसन कॉलेज, मेयो स्कूल ऑफ आर्ट्स (अब नेशनल कॉलेज ऑफ आर्ट्स), गंगा राम अस्पताल लाहौर, 1921, लेडी मक्लेगन गर्ल्स हाई स्कूल, मेयो अस्पताल के अल्बर्ट विक्टर विंग, सरकारी कॉलेज विश्वविद्यालय के रसायन विभाग का डिजाइन और निर्माण किया.
उन्होंने लाहौर के सर्वश्रेष्ठ इलाकों, सर गंगा राम हाई स्कूल, हैली कॉलेज ऑफ कॉमर्स, विकलांग के लिए रवि रोड हाउस, गंगा राम ट्रस्ट बिल्डिंग "द मॉल" और लेडी मेनार्ड इंडस्ट्रियल स्कूल के अलावा रेनाला खुर्द में पावरहाउस के साथ-साथ पठानकोट और अमृतसर के बीच रेलवे ट्रैक के बाद मॉडल टाउन और गुलबर्ग शहर का निर्माण किया.
उनकी इन उपलब्धियों को देखते हुए अंग्रेजी सरकार ने गंगा राम को सर की उपाधि दी. सेवानिवृत्ति के बाद वे पटियाला के पुनर्निर्माण परियोजना के लिए अधीक्षक अभियंता बन गए. लाहौर को पहचान देने वाले रचनाकार की याद में उनकी आदमकद मूर्ति उसी मेडिकल कॉलेज के प्रांगण में लगाई गई जो उनका पहला निर्माण कार्य था. 10 जुलाई 1927 को उनका स्वर्गवास हो गया.
वर्ष 1947 में भारत का विभाजन हुआ और पाकिस्तान एक नया देश बन गया. 15 अगस्त 1947 को आजादी के दिन लाहौर की सड़कों पर भीड़ उमड़ पड़ी. भीड़ जब सर गंगाराम अस्पताल के पास पहुंची तो एक मौलवी ने कहा कि चूंकि अब हमारा मुल्क एक इस्लामिक मुल्क है इसलिए यह मूर्ति यहां नहीं रह सकती है और भीड़ ने मूर्ति को तोड़ना शुरू कर दिया.
प्रसिद्ध उर्दू लेखक सादत हसन मंटो (जो उनके प्रसिद्ध व्यंग्य " टोबा टेक सिंह " के लिए जाने जाते हैं) ने 1947 के धार्मिक दंगों पर एक सच्ची घटना के आधार पर अपनी कहानी "गारलैंड" लिखी थी. उन्होंने उन जेहादियों पर लिखा था कि पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के बाद वे लाहौर में किसी हिंदू की किसी भी स्मृति को खत्म करने की कोशिश कर रहे थे.
उस कहानी में उन्होंने लिखा था कि - लाहौर में एक आवासीय क्षेत्र पर हमला करके, वहां हिन्दुओं / सिक्खो का कत्लेआम करने के बाद, वह भीड़, लाहौर के महान हिंदू परोपकारी सर गंगा राम की मूर्ति पर हमला करने के लिए निकल पडी. उन्होंने पहले मूर्ति का मुँह कोयले से काला किया, फिर मूर्ति को जूते की माला पहनाई और फिर मूर्ति को गिरा दिया.
जैसे ही वह मूर्ति गिरी भीड़ ने चिल्लाया "चलो उसे सर गंगा राम अस्पताल भर्ती कराते है". लेकिन तब तक वहां पुलिस आ गई और उसने भीड़ को खदेड़ दिया और मूर्ति को कब्जे में कर लिया. जिन सर गंगाराम ने लाहौर को नहीं सूरत दी थी उन गंगाराम की मूर्ति को तोड़ने वालों में ऐसी भी बहुत लड़के थे जो उनके बनबाये उसी हस्पताल में पैदा हुए थे.
उसके बाद बहशियों की वह भीड़ गंगाराम के परिवार के सदस्यों को ढूंढने निकल पडी जिससे काफिरों का क़त्ल कर खुद को गाजी कहलवा सकें और जन्नत में सीट रिजर्व कर सके. तब पुलिस ने किसी तरह उनके परिवार को निकाल कर अमृतसर पहुंचाया. इस प्रकार विभाजन के बाद सर गंगा राम का परिवार भारत आ गया और पंजाब में बस गया.
उस समय के लाहौर के कलक्टर ने अपनी डायरी में लिखा था कि - कितनी नमकहराम कौम है ये जो अपनी जान बचाने वाले शख्स को भी नहीं बख्शती है. ऐसे लोगों का विनाश निश्चित है. भारत में भी सर गंगाराम का बहुत सम्मान था इसलिए जब 1951 में दिल्ली में एक बड़ा हस्पताल बनाया गया तो उसे सर गंगा राम के नाम पर समर्पित किया गया.
उनकी वह मूर्ति आज भी लाहौर में रही हुई है. दिल्ली में जब सर गंगाराम हस्पताल बनाया गया तो पाकिस्तान से आग्रह किया गया कि वह मूर्ति उन्हें देदे लेकिन पाकिस्तान ने मूर्ति देने से भी इंकार कर दिया. तब उनकी एक नई मूर्ति बनाकर दिल्ली के सर गंगाराम हस्पताल में स्थापित किया गया. कुछ लोग आज भी इस गलतफहमी में हैं कि इन लोगों को तृप्त किया जा सकता है
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