सन 1787 में पेड़ों को बचाने के लिए पूज्यनीय अमृता देवी बिश्नोई के नेतृत्व में 363 अन्य बिश्नोईयो ने अपना बलिदान दिया था. सन 1787 में राजस्थान के मारवाड़ (आज का जेसलमेर और जोधपुर) में राणा अभयसिंह का राज था. वो अपने महरान गढ़ किले में "फूल महल" नाम से एक अलग से महल बनवा रहे थे. इसके लिए उनको लकडियो की जरुरत पड़ी.
उन्होंने अपने मंत्री गिरधारी दास भंडारी को सेना और लकड़हारे देकर किले से 24 किलोमीटर दूर खेजड़ली गाँव भेजा. जब राजा के आदेश पर राजा के सैनिको के संरक्षण में लकड़हारे "खेजलड़ी" गांव के समीप जंगल को काटने पहुंचे . जब विश्नोई समाज की महिला "अमृता देवी बिश्नोई" ने यह देखा तो वह पेड़ को बचाने की खातिर पेड़ से चिपक कर खड़ी हो गई.
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि विश्नोई समाज प्रकृति की पूजा करता है. मगर राजा के आदेश पर सैनिक ने उनकी गर्दन धड़ से उड़ा दी. इसे देखकर आसपास के अन्य लोग भी पेड़ों से चिपक गए थे. लेकिन राजा के सैनिको ने 363 लोगों का भी क़त्ल कर दिया. पर्यावरण की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान देने वाला ऐसा उदाहरण दुनिया में इसके अलावा कोई नहीं.
यह घटना 12 सितम्बर 1787 की है. सभी पर्यावरण प्रेमियों को यह दिवस बहुत ही श्रद्धा के साथ मनाना चाहिए. इसी घटना से प्रेरित होकर पिछली सदी में "गौरा देवी", "चंडी प्रसाद भट्ट" और "सुंदरलाल बहुगुणा" उत्तराखंड में "चिपको आंदोलन" को उत्तराखंड में खड़ा किया था. हम सभी को इस दिन कम से कम एक पेड़ का पौधा अवश्य लगाना चाहिए.
और हाँ, केवल पौधा लगाना ही नहीं चाहिए बल्कि उनकी रक्षा भी करनी चाहिए. जो लोग स्वयं पौधा नहीं लगा सकते उनको अन्य लोगो को पौधे भेंट करने तथा लगाए गए पेड़ों की सुरक्षा के लिए ट्री गार्ड दान करने के लिए आगे आना चाहिए. पेड़ हम सभी के जीवन के लिए कितना महत्वपूर्ण है यह तो हम सब जानते ही है .