Wednesday, 10 August 2022

भाप का इंजन का आविष्कार करने वाले महान इंजीनियर जेम्स वाट

स्काटलैंड के एक गाँव में एक बच्चा अपनी दादी के साथ किचेन में बैठा था. अंगीठी पर एक केतली में पानी उबल रहा था. पानी उबलने पर ढक्कन हिलने लगा तो उसने ढक्कन के ऊपर एक कोयला रख दिया. कुछ देर शांत रहने के बाद ढक्कन फिर हिलने लगा. यह देखकर उस बच्चे के मन में बिचार आया कि - भाप में अवश्य ही कोई बड़ी ताकत है.

भाप में कैसी ताकत होती है उसे जान्ने के लिए वो अक्सर केतली में पानी उबालकर उसकी नली के सामने तरह तरह की चरखिया बनाकर, उनको घुमाने का प्रयास करने लगा. युवा होने पर अपना पूरा समय भाप की शक्ति के अध्ययन में लगाने लगा. वो अक्सर छोटे छोटे यंत्र बनाकर उनको केतली से निकलती भाप से चलाने का प्रयास करता रहता था.
वह स्वयं से कहता था – कि भाप बहुत शक्ति है, अगर हम इस शक्ति को काबू में करके इससे अपने काम करना सीख लें तो यह इंसान के बहुत काम आ सकती है. इससे हम भारी बजन उठा सकेंगे, चक्कियों को चला सकेंगे, नाव चला सकेंगे और बिना जानवर की गाड़ी भी चला सकेंगे, लेकिन भाप की शक्ति को वश में कैसे करें, यह सबसे बड़ा प्रश्न था.
उसने एक के बाद एक, अनेकों प्रयोग किये मगर असफल रहा. लोगों ने उसका मजाक उड़ाया – “कैसा मूर्ख आदमी है जो यह सोचता है कि- भाप से मशीनें चला सकता है” लेकिन जेम्स वाट ने हार नहीं मानी. अपने कठोर परिश्रम और लगन के फलस्वरूप आखिरकार उन्होंने अपना पहला स्टीम इंजन बनाने में सफलता प्राप्त कर ही ली.
वह बालक और कोई नहीं बल्कि भाप के इंजन का अविष्कारक, "जेम्स वाट" था. उनका जन्म 19 जनवरी 1736 में स्काटलैंड के ग्रिनाक नाम के कस्बे में हुआ था. जेम्स वाट के पिता जलपोतों की मरम्मत और भवन निर्माण का कार्य करते थे. उनकी वर्कशाप उसके प्रयोगों को आगे बढाने में बहुत ही सहायक साबित हुई.
जेम्स वाट का बनाया भाप का इंजन बहुत कामयाब रहा. इंजन के महत्त्व को पहेचानने के बाद "उक्त भाप इंजन" की मांग चारों और से आना शुरू हो गयी. आटा मिलों, कागज़ मिलों, लोहे की मिलों, रुई की मिलों, नहरों, जल संस्थानों आदि की और से जेम्स वाट के भाप इंजन का इस्तेमाल किया जाने लगा.
वर्ष 1790 तक जेम्स एक धनवान व्यक्ति बन गया थ. उस भाप के इंजन के द्वारा उन्होंने भांति-भांति के कठिन कार्य आसानी से करके दिखाए. उनमें सुधार होते होते एक दिन भाप के इंजनों से रेलगाडियां चलने लगीं. लगभग 200 सालों तक भाप के इंजन सवारियों को ढोते रहे और अभी भी कई देशों में भाप के लोकोमोटिव चल रहे हैं.
आज भले ही "स्टीम इंजन" का स्थान विजली की मोटरों और डीजल इंजनो ने ले लिया है, लेकिन जेम्स वाट के अविष्कृत भाप के इंजनो ने लगभग 200 साल तक दुनिया को शक्ति दी है. शक्ति को नापने की इकाई का नाम "वाट" जेम्स वाट को ही समर्पित है. आज उस महान अविष्कारक "जेम्स वाट" के जन्मदिवस पर हम उनको हम सादर प्रणाम करते है

Tuesday, 9 August 2022

राम मंदिर निर्माण के महानायक के.के. नायर

डीएम के.के. नायर का जन्म 11 सितंबर 1907 केरल के अलेप्पी में हुआ था. उनका पूरा नाम कंडांगलथिल करुणाकरण नायर था. उनकी शिक्षा मद्रास यूनिवर्सिटी से हुई थी. वे तमिल, मलयाली, हिन्दी, उर्दू, अंगरेजी सहित फ्रेंच, जर्मन, रसियन, स्पेनिस आदि भाषाओं के जानकर थे. अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद इंग्लैंड चले गए और केवल 21 वर्ष की आयु में ही उन्होंने भारतीय सिविल सेवा (ICS) की परीक्षा क्लीयर कर ली.

इसके बाद 1 जून सन् 1949 में उन्हें अयोध्या (फैजाबाद) के उपायुक्त सह जिला मजिस्ट्रेट के रूप में नियुक्त किया गया था. अयोध्या में नियुक्ति के तुरंत बाद के के नायर को यूपी सरकार की तरफ से एक पत्र मिला था. जिसमें उन्हें राम जन्मभूमि मुद्दे पर एक रिपोर्ट करने के लिए कहा गया था. उन्होंने इस रिपोर्ट के प्रस्तुत करने के लिए अपने सहायक को भेजा, जिनका नाम गुरु दत्त सिंह था.
गुरु दत्त सिंह ने लिखा, "हिंदू समुदाय ने इस आवेदन में एक छोटे के बजाय एक विशाल मंदिर के निर्माण का सपना देखा है. इसमें किसी तरह की परेशानी नहीं है. उन्हें अनुमति दी जा सकती है. हिंदू समुदाय उस स्थान पर एक अच्छा मंदिर बनाने के लिए उत्सुक है. जहां भगवान रामचंद्र जी का जन्म हुआ था. जिस भूमि पर मंदिर बनाया जाना है, वह सरकारी भूमि है.
गुरु दत्त सिंह ने 10 अक्टूबर 1949 को सौंपी अपनी रिपोर्ट के जरिए राम मंदिर निर्माण की सिफारिश कर दी. कांग्रेस सरकार ने इस रिपोर्ट को मानने से इंकार कर दिया. 23 दिसंबर 1949 की रात को अचानक 50 लोगों का एक समूह रात में रामजन्म भूमि परिसर में घुस गया. भीड़ ने गर्भगृह रामलला की मूर्ती की पुनर्स्थापना कर दी. डीएम साहब ने अपनी जिम्मेवारी स्वीकार कर ली.
लेकिन न उन्होंने पुलिस को बल प्रयोग की अनुमति दी और न ही वहां सेभगवान राम की मूर्ति नहीं हटाई. प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सियासी फेरबदल को देखते हुए उत्तर प्रदेश के तत्कालीन CM गोविंद वल्लभ पंत को निर्देश दिया और फिर सीएम पंत ने हिंदुओं को राम मंदिर से बेदखल करने की कोशिश की लेकिन के. के. नायर अड़े रहे और सीएम के फैसले को स्वीकार करने से साफ इनकार कर दिया.
उन्होंने इस मूर्तियों को वहां से हटाने से ये कहकर मना कर दिया कि हिंदू उस स्थल पर पूजा कर रहे हैं. नायर के इस रवैये को देखते हुए सीएम गोविंद वल्लभ पंत ने जिला मजिस्ट्रेट के पद से निलंबित कर दिया. निलंबन के खिलाफ वे अदालत चले गए. कोर्ट ने नायर के पक्ष में फैसला सुनाया. नायर को उनका पद वापस मिला, लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया.
उन्होने कहा केस मैंने केवल इसलिये लड़ा था जिससे कि अपने आपको निर्दोष साबित कर सकू लेकिन मैं ऐसी सरकार के साथ काम नहीं कर सकता. स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद वे कानून के डिग्री धारी होने के कारण इलाहाबाद हाइकोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे. इसके साथ ही उन्होंने इसी समय बनी नई राजनैतिक पार्टी "भारतीय जनसंघ" को ज्वाइन कर लिया.
हिन्दुओं की आस्था का सम्मान करने वाले के के नायर ने मंदिर निर्माण का संकल्प लिया और वो देखते ही देखते वो लाखों लोगों के प्रिय हो गए. उनके व्यवहार के चलते लोग उन्हें "नायर साहब" भी पुकारते थे. वर्ष 1952 में उनकी पत्नी शकुंतला नायर उत्तर प्रदेश विधान सभा की सदस्य के तौर पर चुनाव में विजय हासिल किया.
इसके बाद वर्ष 1962 में के के नायर बहराईच सीट से जनसंघ टिकट पर सांसद चुने गये. उनकी पत्नी ने भी लोकसभा का चुनाव जीता. सबसे खास बात तो ये है कि उनके ड्राइवर को भी उत्तर प्रदेश से विधान सभा का सदस्य चुना गया था. लेकिन आपातकाल के काले दिनों में इंदिरा गांधी ने आपातकाल में नायर साहब और उनकी पत्नी शकुंतला नायर को गिरफ्तार कर हर तरह से प्रताड़ित किया.
70 बर्षीय नायर साहब पर रेल की पटरी की फिस प्लॉटों को खोलने का झूठा आरोप लगाया गया था. इंदिरा सरकार की प्रताड़ना से वे काफी कमजोर हो गए थे. 7 सितंबर 1977 को के. के. नायर का स्वर्गवास हो गया. नायर साहब ने अपना पूरा जीवन राम मंदिर के लिए समर्पित कर दिया. नायर साहब ने जो कुछ भी किया उसके चलते ही आज ये राम मंदिर का सपना साकार हो रहा है.

Tuesday, 2 August 2022

भारत का राष्ट्रीय ध्वज एवं भारतीय ध्वज संहिता

प्राचीन काल से ही किसी भी समूह, राज्य या राष्ट्र के लिए उसका ध्वज उसके सम्मान का प्रतीक रहा है.  भारत के
राष्ट्रीय ध्वज का नाम "तिरंगा" है. 14 अगस्त की रात को 12 बजे लालकिले से ब्रिटिश झंडे "यूनियन जैक" को उतारकर तिरंगा ध्वज का आरोहण किया गया था. और इसके साथ ही भारत को स्वतंत्र देश घोषित कर दिया गया था. 

देश आजाद होने से कुछ दिन पहले 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा द्वारा "तिरंगा" को, आने वाले आजाद भारत का राष्ट्रीय ध्वज स्वीकार किया गया था. अनजाने में भी किसी से राष्ट्रीय ध्वज का अपमान न हो जाए इसके लिए कुछ नियम निर्धारित किये गए. उन नियमो को राष्ट्रीय ध्वज संहिता कहते है. इसका पालन करने सभी के लिए अनिवार्य है   

आम जनता की लापरवाही के कारण झंडे का जाने / अनजाने में अपमान न हो जाए इसलिए ऐसे नियम बनाये गए थे कि - राष्ट्र्रीय ध्वज को केवल सरकारी भवन पर ही फहराया जा सकता है. केवल राष्ट्रीय पर्व वाले दिन ही आम भारतीय इसे अपने घर, स्कूल, कार्यस्थल पर फहरा सकते थे. लेकिन इसे सूर्यास्त से पहले सम्मान के साथ उतारना अनिवार्य था. 

राष्ट्रीय ध्वज को फहराने के लिए ऐसे नियम बनाये गए हैं कि - किसी भी स्तिथि में उसका निरादर न होने पाए. इसलिए इसको बनाने के लिए कपड़ा चुनने, आकार निर्धारित करने, स्थान तथा इसे फहराने / उतारने और पुराना हो जाने पर नष्ट करने के लिए भी नियम निर्धारित किये गए हैं. इसके लिए एक भारतीय राष्ट्रीय ध्वज संहिता बनाई गई है जो तीन भाग में है     

ध्वज संहिता का प्रथम भाग

प्रथम भाग में राष्ट्रीय ध्वज के डिजाइन और आकार को लेकर निर्देश दिए गए हैं. इसके अनुसार हमारे राष्ट्रीय ध्वज का नाम "तिरंगा" है.  जो इसके तीन मुख्य रंग (केसरिया, सफ़ेद और हरा) के कारण है. हालांकि इसमें एक और रंग नीला भी शामिल है. तिरंगे झंडे की बीच वाली सफ़ेद पट्टी में नीले रंग से 24 तीलियों वाला अशोक चक्र भी बना होता है. 

भारतीय तिरंगा ध्वज तीन बराबर आयताकार पट्टियों से बना हुआ है, जिसमें शीर्ष पर केसरिया, बीच में सफेद और नीचे वाली पट्टी में हरा रंग होता है. ध्वज की बीच की सफ़ेद पट्टी में गहरे नीले रंग के अशोक चक्र बना होता है. जिसमे में 24 तीलियां होती हैं. झंडे की लंबाई और ऊँचाई का अनुपात 3:2 होता है. यह  ऊनी, सूती, सिल्क, खादी के कपड़े से बनाया जा सकता है.

इसकी लम्बाई और चौड़ाई (सही अनुपात के साथ भी) अपनी मर्जी से नहीं रख सकते. इसका आकार निर्धारित है और इस आकार के अलावा राष्ट्रीय ध्वज नहीं बनाता जा सकता है. इसका मानक आकार है. 6300×4200, 3600 × 2400, 2700 × 1800, 1800 × 1200, 1350 × 900, 900 × 600, 450 × 300,  225 × 150, 150 × 100 ( सभी मिलीमीटर में )

ध्वज संहिता का द्वितीय भाग

भारतीय ध्वज संहिता का अगला भाग ध्वज के प्रदर्शन से संबंधित है और इसके अलावा इसमें एक नागरिक के लिए ध्वज के निपटान के लिए भी स्पष्ट दिशा-निर्देश हैं. उसके अनुसार ये स्पष्ट दिशा निर्देश है 

1.  भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को हमेशा सम्मान की स्थिति में और जहाँ से ध्वज स्पष्ट रूप से दिखाई दे वहीं पर फहराना चाहिए. 

2.  राष्ट्रीय ध्वज को केवल सरकारी या सार्वजनिक भवनों पर सूर्योदय से सूर्यास्त तक ही फहराया जाना चाहिए. 

3.  झंडे को स्फूर्ति और उत्साह के साथ फहराया जाए और धीरे-धीरे व आदर के साथ उतारा जाना चाहिए

4.  झंडे की केसरिया पट्टी हमेशा सबसे ऊपर रहे ( झंडे को उल्टा फहराना कानूनन अपराध है)

5.  किसी फटे हुए या गंदे झंडे को प्रदर्शित करके फहराना भी एक अपराध है. 

6.  किसी भी प्रयोजन के लिए राष्ट्रीय ध्वज को झुकाया नहीं जा सकता.

7.  भारत के राष्ट्रीय ध्वज का उपयोग किसी उत्सव या सजावट के रूप में नहीं किया जाना चाहिए 

8.  यह चाहे हाथ में हो या ध्वजदण्ड में लेकिन इसे जमीन से छूने नहीं दिया जाना चाहिए.  

9.  यह परिधान, चादर या मेजपोश के रूप में प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए. 

10. इसे फाड़ना, जलाना या क्षतिग्रस्त करना कानूनन अपराध है 

11. फटे पुराने राष्ट्रीय ध्वज को सम्मान के साथ एकांत में जला देना चाहिए या इसे किसी अन्‍य तरीके से नष्‍ट कर देना चाहिए

12. झंडे को आकर्षक बनाने के लिए उस पर किसी भी तरह का अभिलेख या चित्र बनाना भी अपराध है.

राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने पर नेशनल ऑनर एक्ट 1971 (2003 में संशोधित) के अनुसार, 3 साल तक की जेल की सजा और आर्थिक जुर्माने का प्रावधान है. जानबूझकर बार बार अपराध करने वाले को और न्यायाधीश अपने विवेक से और भी कड़ी सजा दे सकते है.   

भारतीय ध्वज संहिता का तृतीय भाग

भारतीय ध्वज संहिता की तृतीय धारा, रक्षा प्रतिष्ठानों को छोड़कर ध्वज को सही स्थान पर फहराने, रखने और निपटान करने जैसे दिशा-निर्देशों के साथ संबंधित है, जो अपने स्वयं के झंडा प्रदर्शन संहिता द्वारा शासित होते हैं. इन दिशा-निर्देशों के अधिकांश खंड द्वितीय के प्रदर्शन के दिशा-निर्देशों के समान हैं.

केवल सशस्त्र बलों के कर्मियों, राज्य या केंद्रीय पैरा सैनिक बलों के सदस्य के अंतिम संस्कार की स्थिति में, ताबूत को कवर करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन इससे पहले कि व्यक्ति को दफनाया या दाह संस्कार किया जाए, झंडे को हटा दिया जाना चाहिए. 

परेड के दौरान जब झंडे को सलामी दी जाती है तो सभी लोगों को झंडे के सामने सावधान की स्थित में खड़े होना चाहिए, जबकि जो वर्दी वाले लोग हैं उन्हें सावधान की स्थित में झंडे को सल्यूट करते हुए खड़े होना चाहिए. 

अन्य देशों के झंडे के साथ प्रदर्शित होने पर, भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को पंक्ति के किनारे से दाईं ओर (दर्शकों के बाईं ओर) या सर्कल की शुरुआत में प्रदर्शित किया जाना चाहिए. 

राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, गवर्नर, लेफ्टिनेंट गवर्नर और उच्च न्यायालयों, सचिवालयों, आयुक्तों के कार्यालय, जिला बोर्डों के जिलाधीश के कार्यालय, जेल, नगरपालिका और जिला परिषदों और विभागीय/सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और आधिकारिक निवासों में झंडा फहराया जाना चाहिए. 

केवल राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपालों और प्रतनिधि गवर्नर, प्रधानमंत्री और कैबिनेट मंत्रियों, भारतीय मिशनों के प्रमुखों / विदेश में पोस्ट, भारत के मुख्य न्यायाधीश और कुछ अन्य लोगों को संहिता के अनुसार अपनी कारों में राष्ट्रीय ध्वज के उपयोग की अनुमति है. 

राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की मृत्यु अथवा किसी ऐसे व्यक्ति की मृत्यु / घटना जिसे राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया हो,  होने पर पर,  भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को पूरे देश में आधा नीचे कर लहराया जाता है. 

राज्यपाल, उपराज्यपाल, मुख्यमंत्री की मौत के मामले में, राष्ट्रीय ध्वज को उस राज्य या संघ राज्य क्षेत्रों में आधा झुकाकर लहराया जाता है.

विदेश में भारतीय दूतवासों के मामले में, भारतीय राष्ट्रीय ध्वज केवल राज्य के प्रमुख की मृत्यु या राज्य सरकार के प्रमुख की मृत्यु की स्थिति में आधा झुका लहराया जाता है. 

झंडे को आधा झुकाने से पहले भी इसे पहले पूरा ऊपर तक ऊठाया जाता है, उसके बाद धीरे धीरे नीचे लाया जाता है.  इस स्थित का अर्थ होता है कि राष्ट्र को गर्वांवित करना और  सम्मान के साथ विदाई देना

ध्वज संहिता में संशोधन 

सन 2002 से पहले तक, भारत के आम नागरिक, केवल गिने-चुने राष्ट्रीय त्योहारों को छोड़ सार्वजनिक रूप से राष्ट्रीय ध्वज फहरा नहीं सकते थे. एक उद्योगपति "नवीन जिंदल" ने, दिल्ली उच्च न्यायालय में, इस प्रतिबंध को हटाने के लिए जनहित में एक याचिका दायर की. जिंदल ने जान बूझ कर, झंडा संहिता का उल्लंघन करते हुए अपने कार्यालय की इमारत पर झंडा फहराया.  

ध्वज को जब्त कर लिया गया और उन पर मुकदमा चलाने की चेतावनी दी गई. जिंदल ने बहस की कि एक नागरिक के रूप में मर्यादा और सम्मान के साथ झंडा फहराना उनका अधिकार है और यह एक तरह से भारत के लिए अपने प्रेम को व्यक्त करने का एक माध्यम है. तदोपरांत केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने, भारतीय झंडा संहिता में 26 जनवरी 2002 को संशोधन किए.

संशोधन के बाद आम जनता को वर्ष के सभी दिनों झंडा फहराने की अनुमति दी गयी और परन्तु  ध्वज की गरिमा, सम्मान की रक्षा करने को कहा गया है.  साथ ही कहा गया कि यह ध्वज संहिता एक क़ानून नहीं है, लेकिन संहिता के प्रतिबंधों का पालन करना होगा और राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान को बनाए रखना होगा. इस का पालन संविधान के अनुच्छेद 51 a के अनुसार करना होगा।

सन 2005 तक इसे पोशाक के रूप में या वर्दी के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता था. लेकिन 5 जुलाई 2005, को भारत सरकार ने संहिता में संशोधन किया और ध्वज को एक पोशाक के रूप में या वर्दी के रूप में प्रयोग किये जाने की अनुमति दी. हालाँकि इसका प्रयोग कमर के नीचे वाले कपडे के रूप में या जांघिये के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता है.

18 फरवरी सन् 2016 को, मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने आदेश दिया कि राष्ट्रीय ध्वज भारत के सभी केन्द्र प्रायोजित विश्वविद्यालयों के परिसर में कम से कम 207 फुट ऊँची मस्तूल पर फहराये जाएंगे. इस पोस्ट के माध्यम से "ध्वज संहिता' को संक्षेप में समझाने का प्रयास किया गया है. अगर किसी को विस्तार से समझना है तो किसी कानून के जानकार से संपर्क करे.