भारत में शास्तार्थ (चर्चा)को बहुत महत्व दिया गया है. यहाँ हजारों साल से शास्तार्थ की परम्परा रही है. हमेशा विभिन्न बिषयों पर चर्चा होती रहती है और उस चर्चा से जो परिणाम प्राप्त होते हैं उनको आगे की चर्चा का आधार मानकर आगे फिर चर्चा होती है. इसी तरह चर्चा, प्रेक्षण, समीक्षा के द्वारा नए नए ज्ञान / विज्ञान की की खोज होती चली आई है.
भारतीय संस्कृति में हर तरह के बिचार को महत्त्व दिया जाता है. हर कोई अपने अलग बिचार रखने के लिए स्वतंत्र है, कोई भी यह नहीं कह सकता है कि जो वह करता है वही सबको करना पड़ेगा. किसी को भी कोई भी नियम जबरन मानने को बाध्य नहीं किया जाता. किसी भी तरह की जीवन शैली जीते हुए वह सनातन धर्म का हिस्सा रह सकता है.
अपने अपने बिचारों के समर्थन में तर्क और तथ्य अवश्य दे सकते हैं लेकिन दूसरों को उन्हें मानने के लिए बाध्य नहीं कर सकते. आस्तिक हो या नास्तिक, एकेश्वरवादी हो या बहुईश्वरवादी, मूर्तिपूजक हो या निराकार को मानने वाला, मांसाहारी हो या शाकाहारी, ग्रहस्त हो या ब्रह्मचारी, एक नारीव्रत हो या बहुविवाह समर्थक, इत्यादि किसी भी बिचारधारा पर चल सकता है.
भारत के किसी भी ज्ञानी, ऋषि, मुनि, महापुरुष, आदि ने कभी यह नहीं कहा कि जो मैं कह रहा हूँ वही अंतिम सत्य है और इसके आगे कुछ भी खोजा नहीं जा सकता. नई खोज के बाद जो बिचार अप्रासंगिक हो जाते हैं उनको लेकर भी किसी को अपमानित नहीं किया जाता है बल्कि यह कहा जाता है कि ऐसा उस काल में माना जाता था.
इसी प्रकार हजारो साल में लाखों विद्वानों ने समय समय पर अपनी खोजों और बिचारों से दुनिया को ज्ञान दिया. समस्या केवल तब पैदा हुई जब दुनिया में ऐसे कुछ विद्वान् आये जिन्होंने अपने फॉलोअर से कहा कि - मैं जो तुमको बता रहा हूँ, केवल वही अंतिम सत्य है और इस बिचार के अलावा अगर कोई कुछ कहता है तो वह हमारा दुश्मन है.
इस सोंच ने दुनिया को बहुत ज्यादा नुकशान पहुंचाया है. अलग अलग लोगों के अलग अलग बिचार होंगे ही और समय समय पर जब नई खोजें होंगी तो पुरानी सोंच को बदलना ही पड़ेगा. इसमें न किसी का कोई अपमान है और न ही किसी को किसी पर क्रोधित हों चाहिए. इन्ही चर्चाओं और समीक्षाओं से तो आगे और नया ज्ञान / विज्ञान खोजा जा सकता है.
शास्तार्थ में पराजित होना भी कोई अपमान जनक बात नहीं है क्योंकि इसी से नया ज्ञान मिलता है. यहाँ तो चर्चा और शास्तार्थ के समय क्रोधित हो जाने वाले व्यक्ति को, शास्तार्थ में पराजित माना जाता था. क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति जानबूझकर की झूठ को सच साबित करने के लिए बहस करता है, उसको ही अपने झूठ की पोल खुलने पर क्रोध आता है.
इसलिए शास्तार्थ चलने रहने चाहिए और जो पुरानी बातें, नई खोजों के आने के बाद अप्रासंगिक हो जाए उन को मानने या मनवाने की जिद नहीं करनी चाहिए. आज हम जो जानते हैं कल उससे भी ज्यादा जानने को मिलेगा और हमारे आज के कई बिचार भी कल अप्रासंगिक हो जाएंगे इसलिए सभी को अपने बिचार रखने चाहिए लेकिन उनपर अड़ना नहीं चाहिए