संत कबीर दास जी की मृत्यु कैसे हुई, इसको लेकर दो तरह की बातें कही जाती है. पहली यह कि- वे अपनी मृत्यु से पहले मगहर चले गए थे. अपने अंतिम समय में एक दिन वे चादर ओढ़ कर सो रहे थे. जब भक्तों ने चादर हटाई तो देखा वहां कबीर नहीं थे बल्कि कुछ फूल पड़े थे. उनके शिष्यों ने वो फूल आपस में बाँट लिए और उनका अंतिम संस्कार कर दिया.
हिन्दुओं के उन फूलों का अग्नि संस्कार कर दिया तथा मुसलमानों ने उन फूलों को दफनाकर वहां उनकी मजार बना दी. जबकि दुसरी कथा यह है कि - सिकंदर लोधी ने उनके सर को हाथी से कुचलवाकर उनकी हत्या की थी. कबीर दास जी के फूल बन जाने की कथा को इतिहास में मान्यता प्राप्त है जबकि ऐसी बातों को तो, खुद कबीर भी नहीं मानते थे.
कबीर दास जी ने जीवन भर आडम्बरों का बिरोध किया. वे चमत्कारों में कतई विश्वास नहीं करते थे. मगर उनकी मृत्यु के बाद खुद कबीर के अनुयायियों ने संत कबीर को एक चमत्कारी पुरुष से लेकर भगवान् तक घोषित कर दिया. यदि कबीर दास जी जीवित होते और उनके सामने किसी और की कोई ऐसी कहानी बताई जाती, तो वे उस पर कभी विशवास नहीं करते.
संत कबीर दास जी 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे. वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे. इनकी काव्य रचनाओं ने हिन्दी भाषी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को काफी गहराई तक प्रभावित किया. था. स्वामी रामानंद को उन्होंने अपना गुरु धारण किया हुआ था.
कबीर पढ़े लिखे नहीं थे लेकिन संतों की संगत और लोगों के जीवन का बारीकी अध्यन करने के कारण उनको असीम ज्ञान प्राप्त हो गया था. उनकी रचनांओ में निराकार ब्रह्म और गुरु की महिमा का बहुत वर्णन है. इसके अलावा उनके दोहे, सामान्य जीवन में सच बोलने, गुरु पर विशवास करने और अच्छे काम करने की शिक्षा देते है.
इसके अलावा उन्होंने धार्मिक आडम्बरों के खिलाफ भी बहुत बोला तथा लोगो को इससे बचने की सलाह दी. अनेकों हिन्दू और मुसलमान उनके शिष्य बन गए लेकिन इन बातों से हिन्दुओं और मुसलमानों के अनेकों तथकथित धर्मगुरु उनसे नाराज भी रहने लगे थे. हालांकि हिन्दू जनता ने उन तथाकथित हिन्दू धर्मगुरुओं की बातों पर ध्यान नहीं दिया.
एक बार दिल्ली के सुलतान सिकंदर लोधी का काशी आगमन हुआ. मुल्ला मौलवियों ने राजा के पास कबीर की शिकायत करते हुए कहा कि - वो काफिर जुलाहा लोगों को भड़काता है. अगर वह यूं ही ये सब करता रहा तो नए लोग तो इस्लाम कबूलना बंद करेंगे ही, हो सकता है पहले से इस्लाम कबूल चुके लोग भी इस्लाम को छोड़कर काफिर बन जाएँ.
तब सिकंदर लोधी ने कबीर को दरबार में हाजिर होने का आदेश दिया, परन्तु कबीर दरबार में नहीं गए. इस पर नाराज होकर सिकंदर लोधी ने कबीर की माता नीमा को पकड़कर लाने का आदेश जारी कर दिया. तब अगले दिन कबीरदास जी तुलसी माला पहनकर, चंदन लगाकर और पगड़ी बांधकर, सुलतान के दरबार में जाने के लिए निकल पड़े.
सिकंदर ने कबीर से कहा कि - मेरे आदेश पर तुम दरबार में क्यों नहीं आये, तो कबीर ने कहा - ''हमारा बादशाह राम (निराकार ब्रह्म) है". इसपर सिकंदर लोधी आगबबूला हो गया. उसने कबीर से इस्लाम कबूलने और कुरआन की शिक्षाओं को अपने दोहों के रूप में लिखने को कहा. लेकिन कबीर ने इससे इनकार कर दिया.
तब सिकंदर लोधी ने कबीर को दर्दनाक मौत देकर मारने की सजा सुनाई. कबीर के सर को हाथी के पैर के नीचे कुचलकर मारने का आदेश दिया गया. कुछ लोगों ने राजा को सलाह दी कि - काशी में कबीर के बहुत शिष्य हैं अगर यहाँ ऐसे सजा दी तो प्रजा बगावत भी कर सकती है. तब यह तय हुआ कि - कबीर को मगहर लेजाकर सजा दी जायेगी.
कबीर की पत्नी "लोई" और पुत्र "कमाल' रोने लगे और राजा से विनती की कि- आप जो कहोगे हम वो करेंगे लेकिन "कबीर" को माफ़ कर दें. लेकिन कबीर ने राजा से कहा-
माली आवत देखिकर, कलियन करी पुकार।
फूले फूले चुन लिए, काल्हि हमारी बार।
(अर्थात - 'मुझे तो मरना ही था; आज नहीं मरता तो कल मरता, लेकिन सुलतान कब तक इस गफलत में भरमाए पड़े रहोगे कि - वह कभी नहीं मरेंगे?)
कबीर को जंजीर से बांधकर मैदान में डाल दिया गया. वहां मौजूद काजी ने कबीर से कहा कि - कुछ ही क्षणों में तुम्हारी मौत हो जायेगी लेकिन अगर तुम इस्लाम कबूल कर लो, तो तुम्हारी सजा माफ़ हो जायेगी साथ ही तुमको जिन्दा पीर घोषित कर दिया जाएगा. कबीर के इनकार करने पर, काजी ने महावत को आगे बढ़ने का आदेश दे दिया.
लेकिन हाथी जब कबीर के पास पहुंचा तो कबीर के सामने आदरभाव से बैठ गया. तब हाथी को क्रोधित करने के लिए महावत ने उसके सिर पर चोट मारी, लेकिन हाथी आगे बढ़ने के बजाय, चिंघाड़कर विपरीत दिशा में भागने लगा.इस पर नाराज होकर काजी ने महावत से कहा कि- मैं तुझे छड़ी से पीटूंगा और तेरे इस हाथी को कटवा डालूंगा.
तब महावत ने किसी तरह हाथी को काबू कर, सजा को पूरा कराया. सरकारी इतिहास में यह लिखा गया है कि- कबीर दास जी चादर ओढ़कर लेटे जब उनकी चादर हटाई गई तो देखा वहां कुछ फूल पड़े हुए थे. उनके शिष्यों ने फूल आपस में बाँट लिए. हिन्दुओं ने फूलों का अग्नि संस्कार कर दिया और मुसलमानों ने उन्हें दफना दिया.
जो कबीर दास जिन्दगी भर चमत्कार और आडम्बरों का बिरोध करते रहे, उन कबीर दास जी की म्रत्यु को ही एक चमत्कार बना दिया गया और उनके कुछ तथाकथित अनुयायियों ने उन्हें भगवान् कहकर पूजना शुरू कर दिया. जो कबीर मजार पूजा के खिलाफ थे उन्ही कबीर की मजार बनाकर वहां मजार पूजन किया जाने लगा.
कबीर को जिस समय हाथी के पैरों तले कुचलवाया जा रहा था, उस समय कबीर का एक शिष्य भी वहां मौजूद था, उसने उस घटना का वर्णन इस प्रकार से किया है.
अहो मेरे गोविन्द तुम्हारा जोर, काजी बकिवा हस्ती तोर।
बांधि भुजा भलैं करि डार्यो, हस्ति कोपि मूंड में मार्यो।
भाग्यो हस्ती चीसां मारी, वा मूरत की मैं बलिहारी।
महावत तोकूं मारौं सांटी, इसहि मराऊं घालौं काटी।
हस्ती न तोरे धरे धियान, वाकै हिरदै बसे भगवान।
कहा अपराध सन्त हौ कीन्हा, बांधि पोट कुंजर कूं दीन्हा।
कुंजर पोट बहु बन्दन करै, अजहु न सूझे काजी अंधरै।
तीन बेर पतियारा लीन्हा, मन कठोर अजहूं न पतीना।
कहै कबीर हमारे गोब्यन्द,
चौथे पद में जन का ज्यन्द
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