Wednesday, 20 April 2022

एकलव्य ने जो किया था वह अगर कोई आज करे तो उसका क्या हाल होगा ?

महाभारत काल में हस्तिनापुर और मगध दो शक्तिशाली दुश्मन राज्य थे. उस समय अनेकों छोटे राज्य थे जिनमे से कोई हस्तिनापुर से मित्रता रखता था और तो कोई मगध से.
हस्तिनापुर के राजा थे धृतराष्ट्र जो पितामह भीष्म के निर्देशन में राज करते थे और मगध का राजा था जरासंध.

जरासंध इतना शक्तिशाली राजा था कि उसके कारण भगवान् श्रीकृष्ण को भी मथुरा छोड़कर जाना पड़ गया था. उस जरासंध सेना का प्रधान सेनापति था "हिरण्यधनु". उस हिरण्यधनु का पुत्र था "एकलव्य"

द्रोणाचार्य का गुरुकुल हस्तिनापुर का प्राइवेट गुरुकुल था. यह कोई साधारण गुरुकुल नहीं था बल्कि सैन्य शिक्षा देने वाला स्कूल था जिसमे साधारण हथियारों से लेकर दिव्यास्त्रों तक को चलाने का प्रशिक्षण दिया जाता था.
जहाँ हस्तिनापुर के राजकोष से चलने वाले द्रोणाचार्य के इस गुरुकुल में हस्तिनापुर राज घराने के बच्चों के अलावा केवल द्रोणाचार्य का बेटा अश्वत्थामा ही पढता था. इस सौनिक स्कूल में छुपकर एकलव्य उनकी कार्यवाहियों को देखता था.
उसके बाद वह वहां से कहीं दूर जंगल में जाकर अभ्यास करता था. वहां उसने द्रोणाचार्य की एक मूर्ति बनाकर रखी थी जिससे उसे यह अहसास रहे कि वह अपने गुरु के सामने है. इस तरह से अभ्यास करके उसने बहुत कुछ सीख लिया.
अगर आपको आज यह पता चले कि पाकिस्तान या चीन का कोई सैनिक भेष बदलकर भारत के सैनिक स्कूल में जाता है या वो भारत के दिव्यास्त्रों (मिसाइल, एटम बम, एयरक्राफ्ट, आदि) की जानकारी हाशिल कर रहा है, तो क्या होगा ?
इसी प्रकार जब एकलव्य की सच्चाई गुरु द्रोणाचार्य के सामने आई तो उन्होंने उसका अंगूठा कटवा दिया. यह उन्होंने जबरन न करवा कर उसको बातों में उलझाकर खुद उसके ही हाथों कटवा दिया. यह कोई जातीय भेदभाव का मामला था ही नहीं.
यह तो द्रोणाचार्य की हस्तिनापुर के प्रति बफादारी थी. उन्होंने मगध के प्रधान सेनापति के बेटे को सरकार को सौंपने के बजाय खुद ही फैसला कर दिया और उसे जाने दिया. एक तरह से उन्होंने हस्तिनापुर के दुश्मन को प्यार से सजा दे दी थी.
जब वह वापस मगध पहुंचा तो उसका मगध में स्वागत हुआ. मगध के राजा जरासंध ने एकलव्य को अपने साम्राज्य के अधीन एक छोटे राज्य श्रृंगबेर का राजा बना दिया. जब मगध की मथुरा से लड़ाई हुई तो एकलव्य ने मगध की ओर से युद्ध में हिस्सा लिया
एकलव्य ने अपनी चार उँगलियों से वाण चलाकर अकेले ही सैकड़ों यादव योद्धाओं का वध कर दिया था. उसके बारे में जानकार खुद श्रीकृष्ण उससे युद्ध करने पहुंचे, उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ था, तब कृष्ण ने खुद एकलव्य का वध किया था.
जब महाभारत का युद्ध हुआ था तब दुर्योधन ने एकलव्य के बेटे केतुमान को श्रीकृष्ण के खिलाफ भड़काकर अपने साथ मिला लिया था. उस समय केतुमान ने भी द्रोणाचार्य के नेतृत्व में पांडवों से युद्ध किया था. अर्थात उसे भी द्रोणाचार्य से कोई शिकायत नहीं थी.
अब जरा यह सोंचिये कि एकलव्य ने जो किया था वह अगर कोई आज करे तो उसका क्या क्या काटा जा सकता है ? मैकाले और वामपंथियों की बातों में मत आओ अपनी अकल लगाओ.

जिस एकलव्य को वामपंथी इतिहास कार दलित, कमजोर और निःसहाय आदिवासी बताते है वह एकलव्य वास्तव में हस्तिनापुर के सबसे बड़े शत्रु मगध के प्रधानसेनापति (Chief of Armed forces ) हिरण्यधनु का पुत्र था, जो किसी भी तरह से हस्तिनापुर की शक्ति का पता लगाना चाहता था

चोरी से दूसरे देश का सैन्य विज्ञान सीखना आज भी एक बड़ा अपराध माना जाता है. ऐसे अपराध के लिए गर्दन तक काटी जा सकती है जबकि आचार्य ने तो दया दिखाते हुए केवल विद्या का दुरुपयोग रोकने भर की सजा दी. बाक़ी अगर केवल मूर्ति के सामने अभ्यास करने से विद्या आ सकती थी तो वह मगध के जंगल में जाकर मूर्ति बना लेता, आचार्य द्रोण के आश्रम के पास के जंगल क्यों छिप कर रहता था ?

No comments:

Post a Comment