Monday, 17 January 2022

अहमदशाह अब्दाली के 7 आक्रमण

अहमद शाह अब्दाली का जन्म 1722 में अफगानिस्तान के हेरात में हुआ था. वह जालिम बादशाह नादिर शाह का एक सैन्य अधिकारी था. 1748 में नादिर की मौत हो जाने के बाद वह उसका उत्तराधिकारी बन बैठा और आंतरिक संघर्ष में विजयी होकर अफगान का शाह बन गया. अब्दाली ने 1748 से लेकर 1767 तक भारत पर सात बार आक्रमण किये.

अब्दाली ने पहला आक्रमण 1748 मे, दूसरा आक्रमण 1749 में और तीसरा आक्रमण 1753 में किया था. उसने ये तीनो आक्रमण भारत की तत्कालीन मुग़ल सत्ता पर अपना प्रभुत्व बनाने के लिए, मुगल सत्ता के खिलाफ किये गए थे. 1748 वाला पहला आक्रमण असफल हो गया था. 1749 वाले दूसरे आक्रमण में पंजाब का गवर्नर 'मुईन उल मुल्क' परास्त हुआ.
इसके बाद 'इमाद उल मुल्क' ने अब्दाली को नियमित पैसा (कर) देना स्वीकार कर लिया. शुरू में तो वह अब्दाली को नियमित रूप से कर देता रहा लेकिन फिर वह कर देने में गड़बड़ करने लगा. तब अब्दाली ने 'इमाद उल मुल्क' को सबक सिखाने के लिए 1753 में तीसरा आक्रमण किया. और अपने लोगों को महत्वपूर्ण स्थानों पर बिठाया.
अब्दाली ने चौथा आक्रमण 1757 में किया. इस आक्रमण में उसने सबसे ज्यादा तवाही मचाई थी. अफगानिस्तान से लेकर दिल्ली तक उसे किसी ने नहीं रोका. दिल्ली के बाद बल्लभगढ़ से लेकर आगरा तक केवल जाटों और नागा साधुओं ने ही अब्दाली का सामना किया था. इस हमले उसमे मंदिरों का विध्वंस किया, लूटमार की और औरतों को गुलाम बनाया.
इन आक्रमणों के समय उसे काबुल से दिल्ली तक किसी ख़ास प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ा. जबकि इन हमलो के बारे में जानकार महाराष्ट्र के हिन्दू (मराठे) बेचैन हो गए. अब्दाली के वापस जाने के बाद 1958 में "राघो बा" के नेतृत्व में मराठे उत्तरभारत में आये और स्थानीय राजाओं और सरदारों का साथ लेकर मुस्लिम राजाओ और नबाबो को परास्त किया.
मराठों की बढ़ती ताकत से परेशान होकर उत्तर भारत के मुस्लिम नबाबो और राजाओं ने फिर अब्दाली को बुलाया और कहा कि- औरंगजेब के बाद अब आप ही हैं जो काफिरों से हमारी हिफाजत कर सकते हैं और हिन्दुस्थान में इस्लाम के परचम को बुलंद रख सकते हैं. उनके बुलाने पर 1760 के आखिर में अब्दाली फिर भारत पर पांचवा हमला करने निकल पड़ा.
जब मराठों को इसकी खबर लगी तो वो भी उसे रोकने के लिए निकल पड़े. लेकिन जहाँ उत्तर भारत के ज्यादातर सभी मुस्लिम राजा, नबाब और जागीरदार अब्दाली का साथ देने को तैयार हो गए, वहीँ उत्तर भारत के हिन्दुओं और सिक्खों ने मराठों का साथ नहीं दिया. साथ देना तो दूर उनको खाना, कपडा और सुरक्षित रहने के लिए कोई किला तक उपलब्ध नहीं कराया.
1761 में जब आया था तो मराठों ने पानीपत में अब्दाली को कड़ी टक्कर दी थी. मराठे तो महाराष्ट्र से चलकर पानीपत तक आ गए थे लेकिन स्थानीय लोग इस लड़ाई से दूर रहे. उन्होंने अब्दाली से लड़ना तो दूर मराठों की कोई मदद तक नहीं की. पानीपत के इस युद्ध में मराठों की हार हुई और अब्दाली ने एक बार फिर तबाही मचाई और लूटमार की और वापस चला गया.
1762 में अब्दाली ने छठा हमला किया. इस बार उसे मुसलमानो ने नहीं बल्कि जंडियाला के सिक्ख महंत आकिल दास ने बुलाया था. इसका कारण यह था कि - जंडियाला का महंत आकिल दास कहने को तो सिक्ख था लेकिन था वह अब्दाली का आदमी. उसको सबक सिखाने के लिए सरदार जस्सासिंह आहलूवालिया ने जंडियाला में घेरा डाल दिया था.
तब महंत आकिल दास ने अपनी मदद करने के लिए अब्दाली को बुलाया. अब्दाली के आने की खबर सुनते ही सरदार जस्सासिंह आहलूवालिया ने जंडियाला से घेरा उठा लिया गया और सतलुज पार चले गए. लेकिन अब्दाली ने उनका पीछा किया. मलेरकोटला के नबाब भीखम खान और सरहन्द के नबाब जैनखान ने अब्दाली का साथ दिया.
5 फरवरी 1762 को मलेरकोटला के पास "कुप्प" में अब्दाली, भीखम खान और जैनखान की सेनाओ ने सिक्खों को तीन तरफ से घेर लिया.सिक्ख बहुत बहुत बहादुरी से लड़े लेकिन तीन विशाल सेनाओ से भला कब तक लड़ते ? इस लड़ाई में संयुक्त मुस्लिम सेनाओ ने 35 हजार सिक्खों की हत्या की. इस लड़ाई को बड़ा घल्लूघारा कहा जाता है.
अब्दाली का सातवां आक्रमण 1767 में हुआ. इस आक्रमण को सिक्खो द्वारा विफल किया लेकिन उसका ज्यादा विवरण उपलब्ध नहीं है कि- उस आक्रमण में अब्दाली कहाँ तक आया था तथा उसका कहाँ और किस से युद्ध हुआ था ? यदि किसी के पास जानकारी हो तो कृपया बताने की कृपा करें. जिससे अब्दाली के सातों आक्रमणों पर विस्तार से श्रंखला लिख सकूँ.
कुछ लोग ये भी लिखते हैं कि - अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर दस आक्रमण किये थे, लेकिन वो अन्य तीन आक्रमण कब किये और कहाँ तक पहुंचा तथा उस समय किस किस ने उसका मुकाबला किया इसका कोई विवरण फ़िलहाल मुझे अभी तक नहीं मिल सका है. यदि किसी के पास उनकी जानकारी तो तो बताने की कृपा करें.
और हाँ किसी को ये पता हो कि - अब्दाली से किसकी, कब और किसने रक्षा की थी, तो कृपया वह भी बताना

No comments:

Post a Comment