Wednesday, 10 November 2021

मौलाना आजाद

कांग्रेस के बहुत बड़े मुस्लिम नेता और आजाद भारत के पहले शिक्षामंत्री "मौलाना आजाद" का वास्तविक नाम "अब्दुल कलाम गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी" था. मौलाना आज़ाद अफग़ान उलेमाओं के ख़ानदान से ताल्लुक रखते थे जो बाबर के समय हेरात से भारत आए थे. उनके पिता मोहम्मद खैरुद्दीन एक फारसी थे तथा माँ अरबी मूल की थीं.


1857 के पहले स्वधीनता आंदोलन के समय "मौलाना आजाद" के दादा अपने परिवार को लेकर कलकत्ता छोड़ कर मक्का चले गए. उनके पिता मोहम्मद खैरूद्दीन ने दीनी तालीम हाशिल की और वहीँ पर निकाह किया. मक्का में 11 नवंबर, 1888 मोहम्मद खैरूद्दीन के यहाँ बेटे का जन्म हुआ और उसका नाम रखा गया- "गुलाम मोहियुद्दीन अहमद".
मौहम्मद खैरूद्दीन 1890 में कलकत्ता (भारत) लौट गए. मक्का से दीनी तालीम हाशिल करने के कारण उनको मुस्लिम समुदाय में "मुस्लिम विद्वान" के रूप में ख्याति मिली. जब आज़ाद मात्र 11 साल के थे तब उनकी माता का देहांत हो गया. उनकी आरंभिक शिक्षा इस्लामी तौर तरीकों से घर पर या मस्ज़िद में हो हुई. हालांकि बाद में उन्होंने अंग्रेजी भी सीखी.
आज़ाद ने उर्दू, फ़ारसी, हिन्दी, अरबी तथा अंग्रेजी़ भाषाओं में महारथ हासिल की. तेरह साल की आयु में उनका विवाह ज़ुलैखा बेग़म से हो गया. वे सलाफी (देवबन्दी) विचारधारा के करीब थे और उन्होंने क़ुरान के अन्य भावरूपों पर लेख भी लिखे. आज़ाद ने अंग्रेज़ी समर्पित स्वाध्याय (सेल्फ स्टडी) से सीखी और पाश्चात्य दर्शन को भी बहुत पढ़ा.
उनके पिता उन्हें किराने की दूकान कराना चाहते थे मगर उनका झुकाव पत्रकारिता की तरफ था. उन्होने 1912 में उन्होंने एक उर्दू पत्रिका "अल हिलाल" का सूत्रपात किया. 1915 तक कांग्रेस केवल अभिजात्य वर्ग का संगठन थी लेकिन 1915 में गांधीजी के आने के बाद कांग्रेस के स्वरूप में परिवर्तन आया और इससे आम लोग भी जुड़ने लगे.
मौलाना आजाद भी कांग्रेस के साथ जुड़ गए. इसी बीच 1919 में अंग्रेजों ने तुर्की के खलीफा को गद्दी से उतार दिया. सारी दुनिया की तरह भारत के मुस्लमान भी खलीफा के समर्थन और अंग्रेजों के खिलाफ सड़कों पर उतर आये. ऐसे में मौलाना आजाद ने कांग्रेस से कहा कि- अगर हमारे आंदोलन में आप हमारा साथ देते हैं तो मुस्लमान भी आपका साथ देंगे.
मौके को लाभकारी मानते हुए गांधीजी ने "असहयोग आंदोलन" की तैयारी कर ली. मुसलमानो के इस धार्मिक आंदोलन "खिलाफत" के समान्तर में गांधी जी ने "असहयोग आंदोलन" शुरू कर दिया. दोनों ही आंदोलनो का उद्देश्य अलग था लेकिन कांग्रेस द्वारा हिंदुओ को यही समझाया गया कि - एक ही आंदोलन है, असहयोग को उर्दू में खिलाफत कहते हैं.
खिलाफत आंदोलन के सिलसिले में उन्हें 1920 में राँची में जेल की सजा भुगतनी पड़ी थी. उन दिनों मुस्लिम लीग पार्टी मुसलमनाओ में बहुत ही लोकप्रिय होती जा रही थी. असहयोग आंदोलन और खिलाफत आंदोलन की असफलता और मालाबार, मुलतान, कोहाट, आदि के दंगों के बाद, देश के हिन्दू भी "हिन्दू महासभा' की तरफ ध्रुवीकृत होते जा रहे थे.
कांग्रेस को लगा कि- अगर इन्हे साथ ले लिया जाए तो मुसलमानो को भी अपनी तरफ किया जा सकता है और हिन्दुओं का भी "हिन्दू महासभा" की तरफ ध्रुवीकरन होने से रोका जा सकता है. देखते ही देखते एक कट्टर मुस्लिम धार्मिक नेता "अब्दुल कलाम गुलाम मोहियुद्दीन अहमद" को कांग्रेस द्वारा हिन्दू-मुस्लिम एकता का पोस्टर बॉय बना दिया गया.
वे जब "अल हिलाल" में इस्लामिक तक़रीर देते थे तो वे अपना नाम "मौलाना अब्दुल कलाम गुलाम मोहियुद्दीन अहमद" लिखते थे और जब कोई सेर लिखते थे तो उसे "आजाद" नाम से लिखा करते थे. कांग्रेस ने जब उन्हें जब हिन्दू मुस्लिम एकता का पोस्टर बॉय बनाकर प्रचारित किया तो गांधी जी ने उनको नया नाम दिया "मौलाना आजाद".
गांधी जी का कहना था कि- मौलाना और आजाद उनकी पुरानी पहचान है ही और इसे हिन्दुओ द्वारा बोलना और समझना भी आसान होगा. इसके अलावा उन दिनों क्रांतिकारी नेता चंद्रशेखर आजाद भी देश में बहुत लोकप्रिय थे. देखते ही देखते वे कट्टर खिलाफ़ती नेता "मौलाना कलाम गुलाम मोहियुद्दीन" से सेकुलर कांग्रेस नेता "मौलाना आजाद" हो गए.
कांग्रेस उनको सेकुलर बताती थी लेकिन उन्होंने अपनी इस्लाम के प्रति निष्ठा को नहीं छुपाया. वे हमेशा ही मुसलमानो के अधिकारों के प्रति सजग रहे. जहाँ जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग भारत के मुस्लिम बहुल इलाके को पापिस्तान बनाना चाहता था, वहीँ मौलाना आजाद मुसलमानो की कम संख्या वाले इलाकों में मुस्लिम के अधिकार के लिए ये लड़ रहे थे.
जिन्ना का उद्देश्य था कि - भारत के मुस्लिम बहुल इलाके को इस्लामिक देश बना दिया जाए और मौलाना का उद्देश्य था कि - मुस्लिम अल्पसंख्यक इलाके के मुसलमानो को पापिस्तान न भेजा जाए बल्कि उनको भारत में ही बहुसंख्यकों से ज्यादा हक़ दिलाया जाए. इस तरह मुसलमानो को एक अलग देश भी मिल गया और भारत में हिन्दुओं से ज्यादा अधिकार भी.
देश आजाद होने के बाद जब भारत से कुछ मुसलमान पापिस्तान चले गए तो मौलाना आजाद मांग करने लगे कि - मुसलमानो द्वारा खाली किये गए मकान और जमीन केवल भारतीय मुसलमानो को ही मिलनी चाहिए. लेकिन सरदार पटेल ने कस्टोडियन विभाग बनाकर पापिस्तान से आये हिन्दू / सिक्ख शरणार्थियों को वह घर अलाट करना शुरू करा दिया.
जब उनको लगा कि सरदार पटेल नहीं मानेंगे तब उन्होंने पापिस्तान चले गए मुसलमानो की जमीन "मुस्लिम बक्फ बोर्डों" को देने की मांग शुरू कर दी. इस तरह पापिस्तान से आये कुछ लोगों को तो घर मिल गया लेकिन बाद में बंद हो गया और इस जमीन पर हिन्दुओं / सिक्खों को आबंटित करने से रोकने के बाद उन्होंने इसे "बक्फ" की संपत्ति घोषित करवा दिया.
केंद्र सरकार से कहकर उन्होंने "वक्फ एक्ट 1954" बनबाया. जिसका काम देश भर में मौजूद "बक्फ बोर्डो" और बक्फ कार्यों की निगरानी करना था. बाद में सन 1964 में वक्फ बोर्ड एक कानूनी निकाय बन गया. पापिस्तान चले गए मुसलमानो की ज्यादातर जमीन पर आज भी बक्फ बोर्ड के माध्यम से केवल मुस्लिम संस्थाओं का ही अधिकार है.
पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में बक्फ बोर्ड के पास बहुत जमीन है. 1947 में बंटबारे के समय पापिस्तान में हिन्दुओं / सिक्खों का बहुत कत्लेआम हुआ था. दिल्ली में भी इसकी थोड़ी बहुत प्रतिक्रिया हुई. उस समय दिल्ली के पुलिस कमिश्नर एक सिक्ख थे, मौलाना आजाद उनको हटाने और उन्हें सजा दिलबाने की मांग करने लगे लेकिन पटेल नहीं माने.
इस प्रकार आप समझ ही चुके होंगे कि मौलाना आजाद कितने बड़े सेकुलर थे. उनको नेहरूजी द्वारा आजाद भारत का पहला शिक्षामंत्री बनाया गया जबकि मौलाना आजाद के पास केवल मदरसे वाली शिक्षा ही थी. जबकि नेहरूजी के पास उस समय "राधा कृष्णन", "कन्हैया लाल माणिक लाल मुंशी" और डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे विद्वान् मौजूद थे.
यही बजह है कि - हमारी पाठ्य पुस्तकों में बाबर, अकबर, आदि महान बना दिए गए और कुतुबुद्दीन, शाहजहां, आदि को भवन निर्माता बना दिया गया. अलाउद्दीन खिलजी और चित्तौड़ के वास्तविक बताते होते हुए भी पद्मावती को काल्पनिक घोषित कर दिया गया. कांग्रेस नेताओं पर पुस्तके लगाईं गईं और क्रांतिकारियों की कहानिया एक दो पैराग्राफ में निपटा दी गईं.

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