महाराजा रणजीत सिंह के समय की बात है. लाहौर में एक गाय के सींग एक दीवार में बने छेद में फंस गये. बहुत कोशिश के बाद भी वह उसे निकाल नही पा रही थी. लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई, लोग गाय को निकालने के लिए तरह तरह के सुझाव देने लगे.
परन्तु सभी का ध्यान एक बात पर ही था कि - गाय को कोई कष्ट ना हो. तभी वहां दुलीचंद नाम का एक व्यक्ति आया और आते ही बोला - गाय के सींग काट दो. लोगों ने एक बार उसे नफरत से देखा फिर उसे नजरअंदाज कर अन्य उपाय करने लगे.
आखिर में लोगों ने सावधानीपूर्वक दीवार को तोड़कर गाय को सकुशल वहां से निकाल लिया गया. इस घटना की चर्चा किसी दरबारी ने महाराजा रणजीत सिंह के दरबार में भी छेड़ दी. गाय को सकुशल निकालने की बात महाराजा भी बहुत खुश हुए.
फिर वे अचानक बोले कि- उस व्यक्ति को दरबार में बुलाया जाए, जिसने सींग काटने की सलाह दी थी. जब वह दरबार में पहुंचा तो महाराज ने उससे कहा- अपने और अपने परिवार के बारे में बताओ. उसने बताया कि - मेरा नाम दुलीचन्द है.
मेरे पिता का नाम सोमचंद था, जो फ़ौज में एक सिपाही था और लड़ाई में मारा जा चुका है. महाराज को उसके जबाब से सन्तुष्टि नहीं हुई. उन्होंने उसकी अधेड़ माँ को बुलवाकर पूछा तो उसकी माँ ने भी यही सब दोहराया, किन्तु महाराजा अभी भी असंतुष्ट थे.
उन्होंने जब उस महिला से सख्ती से पूछताछ करवाई तो पता चला कि- उसका पति जब लड़ाई पर जाता था तब उसके अवैध संबंध, उसके एक पड़ोसी समसुद्दीन से हो गए थे और ये लड़का दुलीचंद, सोमचन्द के बजाय "समसुद्दीन" की औलाद है.
महाराजा का संदेह सही साबित हुआ. उन्होंने अपने दरबारियों से कहा कि- कोई भी शुध्द सनातनी हिन्दू रक्त अपनी संस्कृति, अपनी मातृभूमि, पवित्र गंगा, तुलसी और गौ-माता के अरिष्ट, अपमान और उसके पराभाव को सहन नही कर सकता.
जैसे ही मैंने सुना कि दुलीचंद ने गाय के सींग काटने की बात की थी, तभी मुझे यह अहसास हो गया था कि- हो ना हो इसके रक्त में अशुद्धता आ गई है. सोमचन्द की औलाद ऐसा नही सोच सकती. तभी तो वह समसुद्दीन की औलाद निकला.
इसलिए अगर कोई हिन्दुओं जैसे नाम वाला व्यक्ति, भगवान् श्रीराम के मंदिर निर्माण में बाधा डालने की कोशिश कर रहा है तो उसके नाम से धोखा मत खाइये. वह निश्चित रूप से "सन ऑफ सोमचन्द" की आड़ में "सन ऑफ समसुद्दीन" ही होगा.
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