
बंगलादेश की मुक्ति वाहिनी की आर्थिक मदद के नाम पर सरकार बिना हिसाब के पैसा निकालती रही थी इसलिए बैंक अधिकारियों ने 60 लाख रुपय फोन पर बताये गए प्रतिनिधि को दे दिए.बंगलादेश वाले युद्ध के समाप्त हो जाने के बाद 1972 में बैंक के अधिकारी ने यह बात किसी को बता दी और यह खबर अखबार में छप गई.
इसके बाद आनन फानन में सेना के पूर्व कैप्टन "रुस्तम सोहराब नागरवाला" को गिरफ्तार किया गया. उस पर आरोप लगाया गया कि - उसने ही इंदिरा गांधी और पी.एन. हक्सर की आवाज निकालकर बैंक से पैसे निकाले थे. नागरवाला नामक जिस व्यक्ति ने वह बड़ी रकम निकाली उसको लेकर आज तक स्थिति स्पष्ट नहीं हो सकी.
इस कांड के अभियुक्त रुस्तम सोहराब नागरवाला की पहली पेशी पर ही केवल 20 मिनट की अदालती कारवाई ( यानी चार्जशीट, अभियोजन दलीलें, गवाही, बचाव की दलीलें और बहस आदि ) में सब कुछ निपटाकर सजा भी सुना दी गयी थी. जेल भेजने के दो दिन बाद ही जेल में उसकी "हार्ट अटैक से हुई मृत्यु" भी हो गई.
शुरू में उसे एक शातिर अपराधी माना गया परन्तु धीरे-धीरे संदेह की सुई श्रीमती गांधी और उनसे जुड़े कुछ निकटस्थों की तरफ भी घूमने लगी. उस दौरान नागरवाला, बैंक प्रबंधक तथा कुछ अन्य गवाहों की मौत एक के बाद एक होती गई. कोई ट्रक से कुचल गया तो कोई घर में संदिग्ध हालत में मृत पाया गया. और मामला बंद हो गया.
उस मामले का सच कभी सामने नहीं आ सका. अब उस कांड को पांच दशक हो गये परन्तु आज तक कोई नहीं जान सका कि - उस काण्ड वास्तविकता थी क्या ? लेकिन आज भी बहुत से लोग यह मानते हैं कि - 1971 में बंगलादेश की मुक्तिवाहिनी की मदद के नाम पर कुछ भारतीय नेताओं ने बहुत पैसा बनाया था.
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