
ऐसी बातों के सामने आने पर हम अक्सर निरुत्तर हो जाते है. मेरा सभी भारतीयों से कहना है कि - हमें इन सवालों से घबराना नहीं चाहिए. हमें लगातार स्वदेशी का प्रचार करते रहना है. हमारी चाहत हमेशा स्वदेशी रहनी चाहिए और जिस चीज का स्वदेशी विकल्प न हो उसमे हमें विदेशी सामान से भी कोई परहेज नहीं करना चाहिए. हमारी कोशिश रहनी चाहिए कि - जिस चीज का स्वदेशी विकल्प हो, वहां स्वदेशी इस्तमाल करे.
कोई भी सामान खरीदते समय हमें अपनी प्राथमिकताएं बनानी चाहिए. सबसे पहले हमारी कोशिश होनी चाहिए कि- हम अपने आसपास के किसी छोटे निर्माता का सामान इस्तेमाल करें, उसके बाद भारतीय कम्पनी के सामान को प्राथमिकता दें. उसके बाद ऐसी विदेशी कम्पनी का सामान ले जो उसे भारत में बना रही हो. उसके बाद ऐसी भारतीय कम्पनी का उत्पाद खरीदे जो बाहर से आउटसोर्स कर रही हो.
यदि इसके बाबजूद, इनसे हमारी अगर हमारी आवश्यकता की पूर्ति नहीं हो पा रही है, केवल तब ही हम विदेशी माल खरीदें. विदेशी माल खरीदते समय भी हमारी सोंच होनी चाहिए कि- हम भारत के मित्र देश का सामान ले और बिलकुल मजबूरी में ही शत्रु देश की बनी चीज खरीदे. वरना तो कोशिश यही होनी चाहिए कि- हम शत्रु देश का बनाया सामान लेने के बजाय , उस सामान के बिना ही अपना काम चलाने का प्रयास करें.

हम यह कहकर पल्ला नहीं झाड सकते कि - सरकार विदेशी सामान के भारत में आने पर रोक क्यों नहीं लगाती ? अन्तराष्ट्रीय कानूनों के प्रावधानों के तहत सरकार ऐसा नहीं कर सकती. लेकिन कोई भी प्रावधान किसी नागरिक को जबरन सामान खरीदने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है. इसका उदाहरण जापान और जर्मनी के रूप में हमारे सामने है. विश्वयुद्ध के बाद से कोई जापानी अमेरिकी सामान तथा कोई जर्मन ब्रिटिश सामान कभी नहीं लेता है.
हमें भी अपनी ऐसी सोंच बनानी होगी. भारत माता की जय
हमें भी अपनी ऐसी सोंच बनानी होगी. भारत माता की जय
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