कुछ मुसलमानो की वाल पर, ओवेसी की फोटो के साथ फोटो कमेन्ट दिखाई दे रहा है. फोटो पोस्ट के हिसाब से तो लगता है कि- यह ओवेसी का अथवा ओवेसी के किसी भक्त का कथन है. उस पोस्ट में बताया गया है कि- इण्डिया गेट पर 95 हजार स्वाधीनता सेनानियों के नाम लिखे है जिनमे अधिकाँश मुस्लमान है और संघी एक भी नहीं है.
इनको शायद यह पता नहीं है कि- इण्डियागेट किसी स्वाधीनता संग्राम सेनानी की याद में नहीं बना है और न वहां किसी स्वाधीनता संग्राम सेनानी का नाम लिखा है. वहां तो केवल उन अंग्रेज और भारतीय मूल के ब्रिटिश सेना के सैनिको के नाम लिखे हैं, जो प्रथम बिश्वयुद्ध में अंग्रेजों के लिए लड़ते हुए युद्ध के मैदान में मारे गए थे.
दरअसल इण्डिया गेट, अंग्रेजों के द्वारा बनबाया हुआ स्मारक है, इसको अंग्रेजों ने प्रथम विश्वयुद्ध के बाद "इंग्लैण्ड" के लिए लड़ने वाले 80,000 सैनिको की याद में बनबाया था. यह स्मारक 1931 में बनकर तैयार हुआ था. वहां अंग्रेजों के 13,300 सैनिको के नाम लिखे हैं जिनमे लगभग 4,300 अंग्रेज अफसरों और सैनिको के नाम हैं.
इनमें से जो सैनिक भारतीय मूल के भी हैं, वो भी कोई भारत की स्वाधीनता की लड़ाई नहीं लड़ रहे थे, बल्कि वो तो अपने मालिको के लिए, अपने मालिकों के दुश्मनों से लड़ रहे थे. ये वो भारतीय मूल के अंग्रेज सैनिक थे, जिन्हें अपने अंग्रेज मालिको के इशारे पर, अपने भारतीय भाइयों पर भी गोली चलाने में हिचक नहीं होती थी.
इसके सामने जो छतरी लगी है उसमें तत्कालीन अंग्रेज राजा जार्ज पंचम की मूर्ति लगी हुई थी. इसके सामने का रास्ता "किंग्स वे - अर्थात राजा का पथ" कहलाता था. जिनका नाम बाद में बदलकर "राजपथ" कर दिया गया. आजादी के दिल्ली की जनता ने मांग की कि - वहां से जार्ज पंचम की मूर्ति को हटाया जाए, मगर नेहरु इसके लिए तैयार नहीं थे.
नेहरु का मानना था कि ऐसा करने से अंग्रेज नाराज हो सकते हैं, क्योंकि 15 अगस्त 1947 में आजादी मिलने के बाबजूद, 15 जनवरी 1949 तक, सेना का नियंत्रण अंग्रेजों के पास ही था. तब दिल्ली के राष्ट्रवादी लोगों ने इसको हटाने के लिए जबरदस्त अभियान चलाया, फिर जाकर नेहरु को मजबूर होकर मूर्ति को "कोरोनेशन पार्क" में स्थानांतरित करना पड़ा.
इसलिए इण्डिया गेट पर अमर जवान ज्योति के अलाबा किसी के आगे सर झुकाने की जरुरत नही है, क्योंकि इंडिया गेट पर जो "अमर जवान ज्योति" जलती है वो 1971 में भारत पाक युद्ध में वीरगति पाने वाले सैनिको के सम्मान में स्थापित की गईं थी. इसलिए मैं जब भी कभी इंडिया गेट पर जाता हूँ केवल उसको ही प्रणाम करता हूँ.
अब जरा फिर से बताना कि- आपके मजहब या जाति वालों के कितने कितने नाम लिखे हैं?





