Sunday, 19 April 2020

इण्डिया गेट पर मुस्लिम स्वाधीनता सेनानियों के नाम लिखे होने का झूठ.

Image may contain: Imran Malkan, possible text that says 'दिल्ली के इंडिया गेट पर कुल 95 95,300 स्वतंत्रता सेनानियों के नाम है... मुसलमान 61395 सिख 8050 पिछड़े 14480 दलित 10777 सवर्ण 598 संघी 00 और कुछ बेशर्म लोग मुसलमानों को गद्दार कहते हैं, जबकि खुद उनका इतिहास अंग्रेजों की मुखबिरी करते गुजरी है|'कुछ मुसलमानो की वाल पर, ओवेसी की फोटो के साथ फोटो कमेन्ट दिखाई दे रहा है. फोटो पोस्ट के हिसाब से तो लगता है कि- यह ओवेसी का अथवा ओवेसी के किसी भक्त का कथन है. उस पोस्ट में बताया गया है कि- इण्डिया गेट पर 95 हजार स्वाधीनता सेनानियों के नाम लिखे है जिनमे अधिकाँश मुस्लमान है और संघी एक भी नहीं है.
इनको शायद यह पता नहीं है कि- इण्डियागेट किसी स्वाधीनता संग्राम सेनानी की याद में नहीं बना है और न वहां किसी स्वाधीनता संग्राम सेनानी का नाम लिखा है. वहां तो केवल उन अंग्रेज और भारतीय मूल के ब्रिटिश सेना के सैनिको के नाम लिखे हैं, जो प्रथम बिश्वयुद्ध में अंग्रेजों के लिए लड़ते हुए युद्ध के मैदान में मारे गए थे.
दरअसल इण्डिया गेट, अंग्रेजों के द्वारा बनबाया हुआ स्मारक है, इसको अंग्रेजों ने प्रथम विश्वयुद्ध के बाद "इंग्लैण्ड" के लिए लड़ने वाले 80,000 सैनिको की याद में बनबाया था. यह स्मारक 1931 में बनकर तैयार हुआ था. वहां अंग्रेजों के 13,300 सैनिको के नाम लिखे हैं जिनमे लगभग 4,300 अंग्रेज अफसरों और सैनिको के नाम हैं.
इनमें से जो सैनिक भारतीय मूल के भी हैं, वो भी कोई भारत की स्वाधीनता की लड़ाई नहीं लड़ रहे थे, बल्कि वो तो अपने मालिको के लिए, अपने मालिकों के दुश्मनों से लड़ रहे थे. ये वो भारतीय मूल के अंग्रेज सैनिक थे, जिन्हें अपने अंग्रेज मालिको के इशारे पर, अपने भारतीय भाइयों पर भी गोली चलाने में हिचक नहीं होती थी.
इसके सामने जो छतरी लगी है उसमें तत्कालीन अंग्रेज राजा जार्ज पंचम की मूर्ति लगी हुई थी. इसके सामने का रास्ता "किंग्स वे - अर्थात राजा का पथ" कहलाता था. जिनका नाम बाद में बदलकर "राजपथ" कर दिया गया. आजादी के दिल्ली की जनता ने मांग की कि - वहां से जार्ज पंचम की मूर्ति को हटाया जाए, मगर नेहरु इसके लिए तैयार नहीं थे.
नेहरु का मानना था कि ऐसा करने से अंग्रेज नाराज हो सकते हैं, क्योंकि 15 अगस्त 1947 में आजादी मिलने के बाबजूद, 15 जनवरी 1949 तक, सेना का नियंत्रण अंग्रेजों के पास ही था. तब दिल्ली के राष्ट्रवादी लोगों ने इसको हटाने के लिए जबरदस्त अभियान चलाया, फिर जाकर नेहरु को मजबूर होकर मूर्ति को "कोरोनेशन पार्क" में स्थानांतरित करना पड़ा.
Image may contain: sky and outdoorइसलिए इण्डिया गेट पर अमर जवान ज्योति के अलाबा किसी के आगे सर झुकाने की जरुरत नही है, क्योंकि इंडिया गेट पर जो "अमर जवान ज्योति" जलती है वो 1971 में भारत पाक युद्ध में वीरगति पाने वाले सैनिको के सम्मान में स्थापित की गईं थी. इसलिए मैं जब भी कभी इंडिया गेट पर जाता हूँ केवल उसको ही प्रणाम करता हूँ.
अब जरा फिर से बताना कि- आपके मजहब या जाति वालों के कितने कितने नाम लिखे हैं?

Thursday, 16 April 2020

युगानुकूल स्वदेशी व स्वदेशानुकूल विदेशी : चाहत देशी, मजबूरी विदेशी

Image may contain: 6 people, including Ruchi Verma, people smiling, people standing, people walking, crowd, sky and outdoorजब भी देश में स्वदेशी के प्रचार की बात कही जाती है तो, विदेशियों के दलाल भ्रम पैदा करने की कोशिश करने लगते हैं कि - बिना विदेशी सामान के तो काम ही नहीं चल सकता. इसके अलाबा ताना मारने लगते हैं कि - आप जिस मोबाइल को इस्तेमाल कर रहे हो वो विदेशी है, जिस भारतीय कम्पनी का माल ले रहे हो वो भी चायना से आउट सोर्स करती है, आप जिस फेसबुक को चला रहे हो वो भी विदेशी है, आदि आदि.
ऐसी बातों के सामने आने पर हम अक्सर निरुत्तर हो जाते है. मेरा सभी भारतीयों से कहना है कि - हमें इन सवालों से घबराना नहीं चाहिए. हमें लगातार स्वदेशी का प्रचार करते रहना है. हमारी चाहत हमेशा स्वदेशी रहनी चाहिए और जिस चीज का स्वदेशी विकल्प न हो उसमे हमें विदेशी सामान से भी कोई परहेज नहीं करना चाहिए. हमारी कोशिश रहनी चाहिए कि - जिस चीज का स्वदेशी विकल्प हो, वहां स्वदेशी इस्तमाल करे.
कोई भी सामान खरीदते समय हमें अपनी प्राथमिकताएं बनानी चाहिए. सबसे पहले हमारी कोशिश होनी चाहिए कि- हम अपने आसपास के किसी छोटे निर्माता का सामान इस्तेमाल करें, उसके बाद भारतीय कम्पनी के सामान को प्राथमिकता दें. उसके बाद ऐसी विदेशी कम्पनी का सामान ले जो उसे भारत में बना रही हो. उसके बाद ऐसी भारतीय कम्पनी का उत्पाद खरीदे जो बाहर से आउटसोर्स कर रही हो.
यदि इसके बाबजूद, इनसे हमारी अगर हमारी आवश्यकता की पूर्ति नहीं हो पा रही है, केवल तब ही हम विदेशी माल खरीदें. विदेशी माल खरीदते समय भी हमारी सोंच होनी चाहिए कि- हम भारत के मित्र देश का सामान ले और बिलकुल मजबूरी में ही शत्रु देश की बनी चीज खरीदे. वरना तो कोशिश यही होनी चाहिए कि- हम शत्रु देश का बनाया सामान लेने के बजाय , उस सामान के बिना ही अपना काम चलाने का प्रयास करें.
Image may contain: 10 people, people smiling, people standing and outdoorमैं कभी नहीं कहता कि - विदेशी सामान का बहिष्कार करें. मैं केवल इतना कहता हूँ कि - हम केवल अपनी ऐसी सोंच बनाए कि - हमें स्वदेशी सामान को बढ़ावा देना है. अगर हम अपनी सोच ऐसी बना लेंगे तो हम खुद महेसूस करेंगे धीरे धीरे हम विदेशी सामान का उपयोग खुद ही कम करने लग जायेंगे. हमें भारत को बचाना है तो भारत के धन को विदेश में जाने से रोकना ही होगा, इसके लिए देशी उद्योगों को बचाना ही होगा.
हम यह कहकर पल्ला नहीं झाड सकते कि - सरकार विदेशी सामान के भारत में आने पर रोक क्यों नहीं लगाती ? अन्तराष्ट्रीय कानूनों के प्रावधानों के तहत सरकार ऐसा नहीं कर सकती. लेकिन कोई भी प्रावधान किसी नागरिक को जबरन सामान खरीदने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है. इसका उदाहरण जापान और जर्मनी के रूप में हमारे सामने है. विश्वयुद्ध के बाद से कोई जापानी अमेरिकी सामान तथा कोई जर्मन ब्रिटिश सामान कभी नहीं लेता है.
हमें भी अपनी ऐसी सोंच बनानी होगी. भारत माता की जय

Wednesday, 8 April 2020

नागरवाला घोटाला काण्ड

Image may contain: Atul K Mehta, text24 मई 1971 को भारतीय स्टेट बैंक की संसद मार्ग, दिल्ली की शाखा में फोन आया, बंगलादेश में गुप्त मिशन के लिए 60 लाख रु. नगद चाहिए, इसके लिए कोई चेक नहीं दिया जाएगा लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय से रशीद मिल जायेगी. फोन करने वाले ने अपना नाम पी.एन. हक्सर बताया और उसने कथित इंदिरा गांधी से भी बात कराई.
बंगलादेश की मुक्ति वाहिनी की आर्थिक मदद के नाम पर सरकार बिना हिसाब के पैसा निकालती रही थी इसलिए बैंक अधिकारियों ने 60 लाख रुपय फोन पर बताये गए प्रतिनिधि को दे दिए.बंगलादेश वाले युद्ध के समाप्त हो जाने के बाद 1972 में बैंक के अधिकारी ने यह बात किसी को बता दी और यह खबर अखबार में छप गई.
इसके बाद आनन फानन में सेना के पूर्व कैप्टन "रुस्तम सोहराब नागरवाला" को गिरफ्तार किया गया. उस पर आरोप लगाया गया कि - उसने ही इंदिरा गांधी और पी.एन. हक्सर की आवाज निकालकर बैंक से पैसे निकाले थे. नागरवाला नामक जिस व्यक्ति ने वह बड़ी रकम निकाली उसको लेकर आज तक स्थिति स्पष्ट नहीं हो सकी.
इस कांड के अभियुक्त रुस्तम सोहराब नागरवाला की पहली पेशी पर ही केवल 20 मिनट की अदालती कारवाई ( यानी चार्जशीट, अभियोजन दलीलें, गवाही, बचाव की दलीलें और बहस आदि ) में सब कुछ निपटाकर सजा भी सुना दी गयी थी. जेल भेजने के दो दिन बाद ही जेल में उसकी "हार्ट अटैक से हुई मृत्यु" भी हो गई.
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शुरू में उसे एक शातिर अपराधी माना गया परन्तु धीरे-धीरे संदेह की सुई श्रीमती गांधी और उनसे जुड़े कुछ निकटस्थों की तरफ भी घूमने लगी. उस दौरान नागरवाला, बैंक प्रबंधक तथा कुछ अन्य गवाहों की मौत एक के बाद एक होती गई. कोई ट्रक से कुचल गया तो कोई घर में संदिग्ध हालत में मृत पाया गया. और मामला बंद हो गया.
उस मामले का सच कभी सामने नहीं आ सका. अब उस कांड को पांच दशक हो गये परन्तु आज तक कोई नहीं जान सका कि - उस काण्ड वास्तविकता थी क्या ? लेकिन आज भी बहुत से लोग यह मानते हैं कि - 1971 में बंगलादेश की मुक्तिवाहिनी की मदद के नाम पर कुछ भारतीय नेताओं ने बहुत पैसा बनाया था.

Monday, 6 April 2020

मारवाड़ (राजस्थान) का घुड़ला पर्व

Image may contain: 2 people, people sittingराजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में होली के बाद एक पर्व मनाया जाता है जिसे "घुड़ला पर्व" कहते है. इसमें कुँवारी लडकियाँ अपने सर पर एक छेददार मटका उठाकर, उसके अंदर दीपक जलाकर गांव और मौहल्ले में घूमती है और साथ में "घर घर घुड़लो, घुमेला जी घुमेला" गीत गाती है. इस पर्व को मनाने वाले लोगों तक को नहीं पता है कि इसे क्यों मनाते है.
आगरा में जालिम और अय्यास राजा अकबर के शासन काल में, अकबर और उसके सरदारों ने भारत की आम जनता पर बहुत जुल्म किये थे. हिन्दुओं की बहु-बेटियों को जबरन उठा ले जाना उनका धर्म परिवर्तन कराकर अपने हरम में ले जाना, इनका शौक था. आज जो इनकी तारीफ़ करते हैं उनको पता भी नहीं है कि उनकी माँओं पर कितने जुल्म हुए है
उस जालिम और अय्यास अकबर के राज में मारबाड़ के इलाके में अकबर का एक सरदार था घुड़ला खान. वह भी अपने राजा की तरह जालिम और अय्यास था. एक बार नागोर जिले के, पीपाड़ कसबे के एक गाँव "कोसाणा" में लगभग 200 कुंवारी कन्यायें गणगोर पर्व की पूजा कर रही थी. इन व्रती कन्याओं को मारवाड़ी भाषा में तीजणियां कहते है.
No photo description available.ये तीजणियां गाँव के बाहर मौजूद तालाब पर पूजन कर रहीं थी, तभी उधर से वो मुसलमान सरदार घुडला खान अपनी फ़ौज के साथ निकला. उसकी गंदी नज़र उन बच्चियों पर पड़ी तो उसकी वंशानुगत पैशाचिकता जाग उठी. उसने सभी बच्चियों का वहां से अपहरण कर लिया. जब गाँव वाले ने विरोध किया तो उसने उनको मौत के घाट उतार दिया
गाँव के कुछ घुड़सवारों ने जोधपुर के राव सातल सिंह राठौड़ जी को इसकी सुचना दी. पता चलते ही राव सातल सिंह जी और उनके घुड़सवार सैनिक घुड़ला खान को रोकने निकल पड़े. कुछ ही समय मे उन्होंने घुडला खान को रोक लिया. राव सातल सिंह राठौड़ को देखकर घुडला खान का चेहरा पीला पड़ गया उसने उनकी वीरता के बारे मे सुन रखा था.
फिर भी उसने अपने आपको संयत करते हुये कहा, राव साहब तुम मुझे नही दिल्ली के बादशाह अकबर को रोक रहे हो इसका ख़ामियाज़ा तुम्हें और जोधपुर को भुगतना पड़ सकता है. इस पर राव सातल सिंह बोले - दुष्ट पापी, हमारा क्या होगा ये तो बाद में देखा जाएगा लेकिन फिलहाल अभी तो में तुझे तेरे इस गंदे काम का ख़ामियाज़ा भुगता देता हूँ.
फिर क्या था राजपुतों की तलवारों ने दुष्ट मुग़लों के ख़ून से प्यास बुझाना शुरू कर दिया था. संख्या मे अधिक होने के बाबजूद मुग़ल सेना के पांव उखड़ गये. राजपूत वीरों ने भागती हुई मुग़ल सेना का पीछा कर उनका ख़ात्मा कर दिया. राव सातल सिंह ने तलवार के वार से घुडला खान का सिर धड़ से अलग कर दिया और सभी बच्चियों को मुक्त करवा दिया.
इस युद्ध में वीर सातल सिंह भी बुरी तरह से घायल हो गए थे लेकिन फिर भी उसी अवस्था में वे उन बच्चियों को उनके गाँव में पहुंचाने गए. उन्होंने घुड़ला खान का सर भी उन गाँव वालों को सौंप दिया. बच्चियों को उनके गाँव में पहुंचाने के बाद वे भी स्वर्ग सिधार गए. गाँव वालों ने पूरे सम्मान के साथ, तालाब के किनारे वीर सातल सिंह का अंतिम संस्कार किया.
घुड़ल्या: ऐतिहासिक युद्ध की याद का ...गांव वालों ने दुष्ट घुडला खान का सिर बच्चियों को सौंप दिया. बच्चियों ने एक घड़े मे बहुत सारे छेद करके उस घड़े में घुडला खान के सर को रखा और उस घड़े के ऊपर एक दीपक रखा और फिर पुरे गाँव मे घुमाया. उस दिन हर घर मे भी दिए जलाकर रोशनी की गयी. तब से राजस्थान (खासकर मारवाड़) में यह घुड़ला पर्व मनाया जाता है.
हमारे पूर्वजों द्वारा इस घुड़ला पर्व को शुरू करने का यही उद्देश्य था कि- लोग हिन्दु शेर राव सातल सिंह राठौर जी को सदियों तक सम्मान के साथ याद रखे तथा घुड़ला खान को धिक्कारते रहें. लेकिन हमारे देश के वामपंथी गद्दार आज भी इस कोशिश में लगे हैं कि - कही तरह से उस अत्याचारी घुड़ला खान को घुड़ला बाबा या घुड़ला देवता बना दिया जाए.
वीर राव सातल सिंह जी राठौर की जय , नीच घुड़ला खान मुर्दाबाद