जब भी कहीं कोई बलात्कार की खबर आती है कुछ तथाकथित समझदार लोग डाकू फूलन का महिमा मण्डन करते हुए लिखने लगते हैं कि- फूलन ने बलात्कारी को मारकर न्याय किया। दुसरी तरफ ये बुद्धिजीवी खुद को गांधीवादी भी बताते है.
डाकू फूलन के अपराध पर पर्दा डालने के लिए झूठी कहानी गढ़ी गई है कि- उसने अपने साथ बलात्कार करने वालों को मारा था जबकि हकीकत यह है कि उसने बलात्कारी को नहीं बल्कि बलात्कारी की जाति वाले 20 निर्दोष लोगों की हत्या की थी.
खुद को कांग्रेस समर्थक बताने वाले ये लोग यह भी भूल जाते हैं कि- फूलन के आतंक के दौर में UP, MP और केंद्र, तीनो जगह कांग्रेस की सरकार थी और कांग्रेस सरकार ने ही फूलन के ऊपर 22 हत्या, 30 डकैती और 18 अपहरण के केस दर्ज किये थे.
आइये अब जरा यह भी जान लेते हैं कि- फूलन के साथ अत्याचार किस किस ने किया. सबसे पहले उसके सगे चाचा ने उसके पिता की जमीन हडप ली और उसने अपने चचेरे भाई का सर फोड़ दिया. जाहिर सी बात है कि- वो उसके अपने परिवार के लोग थे.
उसके पिता ने 10 साल की फूलन की शादी अपनी ही जाति के 40 साल के अधेड़ से कर दी. पति ने उसके साथ बलात्कार किया. कुछ समय बाद उसके पति ने उसे घर से निकाल दिया और दूसरी शादी कर ली अर्थात यहाँ भी अत्याचारी उसके अपने.लोग.
कुछ दिन मायके में रहने के बाद, उसके भाई ने भी उसे घर से निकाल दिया. यहाँ भी उस पर अत्याचार करने वाला उसका सगा भाई. फूलन ने घर छोड़ दिया और ऐसे लोगों के साथ उठने बैठने लगी, जिनके सम्बन्ध डाकूओं के गिरोह से थे.
वह डाकुओं के गिरोह के साथ रहने लगी. हालांकि आजतक यह स्पस्ट नहीं हुआ कि- डाकू उसे जबरन उठा ले गए थे या वह अपनी मर्जी से उनके साथ गई थी. डाकुओं का सरदार "बाबू गुज्जर" उस पर आशक्त हो गया जबकि वह "विक्रम मल्लाह" को चाहती थी.
इस बात को लेकर विक्रम मल्लाह ने "बाबू गुज्जर" की हत्या कर दी और खुद सरदार बन बैठा. अब "फूलन", "विक्रम मल्लाह" के साथ रहने लगी. एक दिन फूलन अपने गैंग के साथ अपने पति के गांव गई. वहां उसे और उसकी बीवी दोनों को बहुत पीटा.
"बाबू गुज्जर" की हत्या से नाराज उसके डाकू दोस्त "श्रीराम ठाकुर" और "लाला ठाकुर" के गिरोह ने विक्रम मल्लाह और फूलन के गिरोह पर हमला कर दिया. दोनों गुटों में लड़ाई हुई. विक्रम मल्लाह को मार दिया गया. और वो फूलन को उठा ले गए.
श्रीराम ठाकुर और लाला ठाकुर के गैंग ने फूलन का सामूहिक बलात्कार किया. यह भी कोई जातीय हिंसा की घटना नहीं थी बल्कि "श्रीराम ठाकुर" और "लाला ठाकुर" के गिरोह ने अपने साथी "बाबू गुज्जर" की हत्या का बदला लिया था.
अर्थात वह घटना जातीय हिंसा की नहीं बल्कि गैंगबार की थी. इसके बाद फूलन फिर से वापस बीहड़ में आ गई और विक्रम मल्लाह के गिरोह की सरदार बन गई. अब उसका गिरोह फूलन के नेत्रत्व में इलाके में लूटमार / हत्याए करने लगा.
1981 में फूलन बेहमई गांव पहुंची. उसे पता चला था कि- उसके साथ सामूहिक गैंग करने वालों में से 2 बलात्कारी उसी गाँव के थे. उसके गिरोह ने बेहमई गाँव पर हमला कर गाँव के ठाकुर जाति के 20 पुरुषों को लाइन में खडा करके गोलियों से भुन दिया.
अपने अपराध को छुपाने और जनता की सहानुभूति हाशिल करने के लिए फूलन ने यह प्रचारित किया कि- उसके साथ ठाकुरों ने बलात्कार किया था इसलिए उसने ठाकुरों को मारा. जबकि फूलन के साथ कोई जातीय अत्याचार नहीं हुआ था.
फूलन के साथ बचपन में जो कुछ भी गलत हुआ, उसके लिए जाति व्यवस्था नहीं बल्कि उसके चाचा, पिता, पति और भाई जिम्मेदार थे. जब डाकूओं के गिरोह में थी तो उसके दो प्रेमी आपस में लड़ें थे. जिनमे से एक प्रेमी डाकू ने दुसरे प्रेमी डाकू की हत्या कर दी.
जो प्रेमी मारा गया था उसके दोस्तों ने, अपने दोस्त का बदला लेने के लिए उसके दूसरे प्रेमी को मारा और उसके साथ गैंगरेप किया. वो बलात्कारी जाति के ठाकुर थे इसलिए फूलन ने ठाकुर जाति के 20 निर्दोष निर्दोष ठाकुरों की गोली मार कर हत्या कर दी.
फूलन की इस पूरी कहानी में फूलन जातीय हिन्सा की शिकार आखिर कब हुई ? जातीय हिंसा फूलन के साथ नहीं हुई बल्कि - जातीय हिंसा तो फूलन ने ठाकुरों के खिलाफ की थी. ऐसे में डाकू फूलन को महिमामंडित करना आखिर कहाँ से उचित है ?
फूलन ने खुद माना था कि - 20 निर्दोष थे बाद में अपने वकीलों की सलाह पर वह इस हत्याकांड से ही मुकर गई थी. 25 जुलाई 2001 को शेर सिंह राणा फूलन को गोली मार दी और कहा कि मैंने बेहमई हत्याकांड का बदला लिया है.
अक्सर कहा जाता है कि- फूलन ने अपने बलात्कारियों को सजा दी जबकि वास्तविकता यह है कि - फूलन ने अपने बलात्कारी श्रीराम ठाकुर और लाला ठाकुर को नहीं मारा था बल्कि 20 निर्दोष लोगों को मारा था. उनका दोष सिर्फ इतना था कि- वो ठाकुर जाति के थे और फूलन के बलात्कारी श्रीराम ठाकुर और लाला ठाकुर भी ठाकुर थे.
और हाँ फूलन ने जिन 20 लोगो की हत्या की थी उनमे दो दलित और एक मुस्लमान भी था.
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