
पेशवा बाजीराव प्रथम ने मराठा साम्राज्य को उत्तर पश्चिम तक पहुंचा दिया था. 1740 में बाजीराव प्रथम की म्रत्यु के बाद उनके ज्येष्ठ पुत्र बालाजी बाजीराव उर्फ नाना साहेब (प्रथम) पेशवा नियुक्त हुऐ. नाना साहेब की बुद्धिमत्ता और उनके चचेरे भाई सदाशिवराव भाऊ की बहादुरी ने हिन्दुस्थान की किस्मत बदलना शुरू कर दिया था.
इन दोनों ने मिलकर वर्तमान महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और मध्यप्रदेश के बड़े हिस्से पर भगवा फहरा दिया था. उसके बाद उन्होंने बंगाल पर कई हमले किये और मुघल साम्राज्य की नींव को ही हिलाकर रख दिया. अब नाना साहब ने अपना मुख्य उद्देश्य, दिल्ली से मुघलों को उखाड़कर, दिल्ली में हिन्दू राज्य स्थापित करना बना लिया था.
उन्होंने पेशावर में सुरक्षा चौकी बनाकर दत्ता जी सिंधिया को उसका संरक्षक नियुक्त कर दिया. इस तरह आक्रमणकारियों के भारत में आने का रास्ता ही बंद कर दिया था. इसी बीच 1747 में नादिर शाह की मौत के बाद अहेमद शाह अब्दाली अफगानिस्तान का शासक बना. वह अत्यंत जालिम और खूंखार इंसान इंसान था.
उसने भारत पर कई बार चढ़ाई की लेकिन उसे ख़ास ज्यादा सफलता नहीं मिली. 1756 में भारत के कुछ मुस्लिम नबाबो ने अहेमद शाह अब्दाली को भारत में आक्रमण करने के लिए आमंतरित किया तथा उसे विश्वास दिलाया कि सभी मुसलमान इसमें उसका साथ देंगे, जिससे अब्दाली की सहायता से हिन्दू राजाओं को आगे बढ़ने से रोका जाए.
नवम्बर, 1756 ई. में वह बड़े लश्कर के साथ हिन्दुस्तान आया. उसने सबसे पहले पेशावर में दत्ता जी सिंधिया को परास्त किया और दिल्ली की ओर बढ़ चला. 23 जनवरी, 1757 को वह दिल्ली पहुँचा. वह लगभग एक माह तक दिल्ली में रहा और उसने नादिरशाह द्वारा दिल्ली में किये गये किये गये कत्लेआम और लूटमार को एक बार फिर से दुहराया.
दिल्ली को लूटने और कत्लेआम करने के बाद वह धर्म नगरी मथुरा वृन्दावन का विध्वंस करने निकल पड़ा. अब्दाली ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि- "मथुरा हिन्दुओं का पवित्र स्थान है. उसे पूरी तरह नेस्तनाबूद कर दो. जहाँ-कहीं पहुँचो, क़त्ले आम करो और लूटो. लूट में जिसको जो मिलेगा, वह उसी का होगा.
इसके अलावा काफिरों का सिर काट कर लाने पर सिपाही को प्रत्येक सिर के लिए पाँच रुपया इनाम सरकारी खजाने से भी दिया जायगा. अब्दाली के आदेश पर उसकी सेना मथुरा की तरफ चल दी. अब्दाली की सेना की पहली कड़ी मुठभेड़ जाटों के साथ बल्लभगढ़ में हुई. अब्दाली को इस अभियान में सबसे बड़ा प्रतिरोध यहीं झेलना पड़ा.

जाटों ने बहुत बहादुरी से युद्ध किया लेकिन दुश्मनों की संख्या अधिक होने के कारण उनकी हार हुई. मथुरा और वृन्दावन में अब्दाली की सेना ने भीषण नरसंहार किया. तीन दिन मथुरा में मार-काट और लूट-पाट करते रहे. मंदिरों को नष्ट किया और स्त्रियों की इज्जत लूटी. हजारों स्त्रियों ने इज्जत बचने के लिए कुओं और यमुना में कूदकर जान दे दी.
उसने यमुना नदी पार कर महावन को लूटा और फिर वह गोकुल की ओर गया परन्तु वहाँ पर सशस्त्र नागा साधुओं के एक बड़े दल ने यवन सेना का जम कर सामना किया. नागों के प्रतिरोध और सैनिको को हैजा हो जाने के कारण वह गोकुल को नहीं लूट सका. मथुरा के बाद उसने आगरा का भी यही हाल किया और दिल्ली वापस लौट आया.
उसने आलमगीर द्वितीय को दिल्ली का सम्राट, इमादुलमुल्क को 'वज़ीर', रुहेला सरदार नजीबुद्दौला को सम्राज्य का 'मीर बख़्शी' और अपना मुख्य एजेन्ट नियुक्त किया. इसके आलावा कश्मीर, लाहौर, सरहिन्द तथा मुल्तान को अपने अधिकार में ले लिया. अपने बेटे 'तिमिरशाह' को वहां का शासक नियुक्त कर स्वयं वापस अफगानिस्तान चला गया.
जब मराठों को इस कत्लेआम की खबर मिली तो मराठों ने अपनी ताकत को इकठ्ठा कर पेशवा रघुनाथराव के नेतृत्व में, मार्च 1758 में दिल्ली पर हमला किया. मराठों ने नजीबुद्दौला को दिल्ली से निकाल दिया तथा 'अदीना बेग' को पंजाब का गर्वनर नियुक्त कर दिया. नजीबुद्दौला के द्वारा बुलाये जाने पर 1760 में अब्दाली फिर भारत आया.
क्रमशः