Thursday, 4 April 2019

पीपल का पेड़ और आक्सीजन : कुछ भ्रम कुछ सच्चाई

आमतौर पर हम लोग यह मानते हैं कि- इंसान और जानवर सांस लेते समय हवा से आक्सीजन लेते हैं और कार्बन डाई आक्साइड छोड़ते हैं तथा पेड़ पौधे इसके उलट अर्थात सांस लेते समय कार्बन डाई आक्साइड लेते हैं और आक्सीजन छोड़ते हैं. यह सच्चाई है या भ्रम यह ज्यादातर आम लोगों को पता नहीं है.
इससे समबन्धित तथ्य को Dr.Alok Khare जी ने (जो बरेली कालेज बरेली में वाटनी के प्रोफ़ेसर हैं) बहुत ही अच्छे ढंग से समझाने का प्रयास किया है. उन्ही तथ्यों को मैं अपने शब्दों में प्रस्तुत कर रहा हूँ. अगर मेरे द्वारा समझने और लिखने में कुछ गलती होती तो मुझे उम्मीद है कि आप मुझे क्षमा करते हुए तथ्य ठीक कर देंगे.
पेड़-पौधे भी इंसानों और जानवरों की ही तरह चौबीस घण्टे साँस लेते हैं. इस क्रिया में वे भी वायुमण्डल से ऑक्सीजन लेते हैं और कार्बन डाय ऑक्साइड ही वायुमण्डल छोड़ते हैं. पेड़ पौधों की यह क्रिया भी सभी जीवित प्राणियों की "श्वसन प्रणाली" की तरह ही होती है. इसके अलावा पेड़ पौधे एक और महत्त्वपूर्ण क्रिया भी करते हैं जिसे "प्रकाश-संश्लेषण" कहा जाता है.
पेड़-पौधे प्रकाश-संश्लेषण की यह क्रिया सूर्य के प्रकाश में करते हैं. इस क्रिया में वे वायुमण्डल से कार्बन डाय ऑक्साइड और जलवाष्प को लेकर, अपना ग्लूकोज़ स्वयं बनाते हैं. इस काम में उनका हरा रंजक "क्लोरोफ़िल" महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और सूर्य का प्रकाश भी. इसी प्रकाश-संश्लेषण के दौरान ग्लूकोज़ के साथ साथ ऑक्सीजन भी बनती है,
इस आक्सीजन को पेड़-पौधे वायुमण्डल में वापस छोड़देते है. अर्थात अगर पेड़ पर हरे पत्ते न हों और पर्याप्त प्रकाश न हो तो, प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया नहीं होगी और वे पानी को तोड़कर, वातावरण को आक्सीजन नहीं दे पायेंगे. अर्थात रात में जब प्रकाश न के बराबर रहता है, तो यह काम प्रचुरता से नहीं हो पायेगा.
"पीपल का पेड़" शुष्क वातावरण में पनपता है और इसके लिए उसकी देह में कुदरती तौर पर पर्याप्त तैयारियाँ होती हैं हैं. पेड़-पौधों की सतह पर स्टोमेटा नामक नन्हें छिद्र होते हैं जिनसे गैसों और जलवाष्प का आवागमन होता है. सूखे गर्म माहौल में पेड़ का पानी न निचुड़ जाए , इसलिए पीपल दिन में अपेक्षाकृत अपने स्टोमेटा बन्द करके रखता है.
पीपल व उसके जैसे कई अन्य पेड़-पौधे भी रात को अपने स्टोमेटा खोलते हैं और हवा से कार्बन-डायऑक्साइड बटोरते हैं. उससे "मैलेट" नामक एक रसायन बनाकर रख लेते हैं, ताकि फिर आगे दिन में जब सूरज चमके और प्रकाश मिले , तो प्रकाश-संश्लेषण में सीधे वायुमण्डलीय की कार्बन डाय ऑक्साइड की जगह इस मैलेट का प्रयोग कर सकें.
अर्थात - पीपल का पेड़ रात को भी वातावरण से कार्बन डाय ऑक्साइड शोषित करता रहता है. केवल "पीपल" ही नहीं बल्कि कई अन्य पेड़-पौधे ( जैसे - अरीका पाम , स्नेक प्लांट , ऑर्किड , तुलसी आदि) भी कुछ इसी तरह से काम करते हैं. यह भी रात को वातावरण से कार्बन डाय ऑक्साइड लेकर उसे मैलेट बनाकर प्रकाश-संश्लेषण के लिए इस्तेमाल करते हैं
यह प्रक्रिया CAM मार्ग ( क्रासुलेसियन पाथवे ) के नाम से पादप-विज्ञान में जानी जाती है. कहने का तात्पर्य यह कि - पीपल रात को ऑक्सीजन नहीं छोड़ता. लेकिन अतिवृहद canopy और अपेक्षाकृत विस्तृत leaf area होने के कारण पीपल में प्रकाश संश्लेषण एवं ऑक्सीजन उत्पादन की दर अन्य वृक्षों की तुलना में अधिक काफी अधिक होती है
वह रात में भी वायुमण्डल से कार्बन डाय ऑक्साइड बटोरता है ताकि दिन में जल-हानि से बच सके. लंबी आयु, शीतलता एवं अन्य अनेक जीवों का आश्रय स्थल होने के कारण इसे Keystone प्रजाति की श्रेणी में रखा गया गया है. ये वो प्रजातियां होती हैं, जिनमे पर्यावरण की दशाओं में परिवर्तन की क्षमता होती है. यही गुण इस वृक्ष को पुज्यनीय बनाते हैं.
डा.आलोक खरे जी का यह भी कहना है कि- अगर पेड़ पौधों को रात में भी कृतिम प्रकाश मिलता है और वह प्रकाश सही वेवलेंथ और सही फ्रीक्वेंसी का हो, तो ये पेड़ रात में भी आक्सीजन का उत्सर्जन कर सकते हैं. मुझे लगता है हमारे पूर्वजों ने पीपल के नीचे दिया जलाने का प्रावधान शायद इसी सोंच के तहत रखा होगा.

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