एक बार "श्रीकृष्ण". "बलराम" एवं "सात्यकि" किसी लम्बी यात्रा पर जा रहे थे. रास्ते में एक घना जंगल पड़ा. रात्रि का समय हो जाने पर उन्होंने विश्राम करने का निर्णय लिया. उन्होंने घोड़ों को पेड़ से बाँध दिया और तय किया कि दो लोग विश्राम करेंगे और बारी बारी से उनमे से एक पहरा देगा. सबसे पहले पहरा देने की बारी सात्यिकी की थी और बाकी दोनो सो गये.
रात्री में एक पिशाच पेड़ से उतरा और सात्यिकी को ललकारने लगा. पिशाच की ललकार सुन कर सात्यिकी अत्यंत क्रोधित हो गये और उससे मल्लयुद्ध करने लगे. परन्तु सात्यकि पिशाच पर जितना अधिक क्रोध करते उतना ही पिशाच का आकार बढ़ता जाता और उतना ही ज्यादा शक्तिशाली होता जाता था. मल्ल-युद्ध ने सात्यिकी को बुरी तरह से थका दिया.
एक प्रहर बीत गया. सात्यिकी के बाद "बलराम" की बारी थी पहरा देने की. सात्यिकी चुपचाप जाकर सो गये, उन्होंने बलराम को पिशाच के बारे में कुछ नहीं बताया. रात्री में फिर पिशाच पेड़ से उतरा और बलराम को ललकारने लगा. बलराम भी क्रोध-पूर्वक पिशाच से भिड़ गये. उनको भी लड़ते हुए एक प्रहर बीत गया. उनका भी सात्यकि जैसा हाल हुआ.
अब श्री कृष्ण के जागने की बारी थी. बलराम ने भी उन्हें कुछ न बताया एवं सो गये. श्री कृष्ण के सामने भी पिशाच की चुनौती आई. परन्तु पिशाच के ललकारने पर श्रीक्रष्ण क्रोधित नहीं हुए बल्कि मुस्कराने लगे. पिशाच जितना अधिक क्रोध से ललकारता श्रीकृष्ण उतने ही शांत-भाव से मुस्करा देते; ऐसा करने से पिशाच का आकार घटने लगा.
धीरे पिशाच का आकार बहुत छोटा हो गया तो श्री कृष्ण ने अपने पटके के एक छोर में बांध लिया. प्रात:काल सात्यिकी और बलराम ने पिशाच से लड़ाई और अपनी दुर्गति की कहानी श्री कृष्ण को सुनाई. तब श्री कृष्ण ने मुस्करा कर अपने पटके में बंधे हुए मामूली कीड़े के आकार वाले पिशाच को दिखाते हुए कहा - क्या यही है वह पिशाच ?
उसको देखकर सात्यिकी और बलराम को बड़ा आश्चर्य हुआ. तब श्रीक्रष्ण ने समझाया, तुम्हारा क्रोध ही वहा पिशाच है जो तुम्हे नुकशान पहुंचाता है. तुम जितना अधिक क्रोध करते थे इसका आकार उतना ही बढ़ता जाता था. जब मैंने इसके क्रोध का प्रतिकार क्रोध से न देकर तो शांत-भाव से दिया तो यह हतोत्साहित हो कर दुर्बल और छोटा हो गया.
यह सत्य घटना है या मात्र लोगों को शिक्षा देने के लिए गढ़ी हुई कहानी, लेकिन जो शिक्षा दी गई वह वास्तव में सत्य है. सामने वाला क्रोध में गालिया बकता है और आप भी उत्तेजित होकर और ज्यादा क्रोधित हो जाते हैं तो सामने वाला शत्रु और ज्यादा ताकतवर हो जाता है. लेकिन आप अगर संयम से काम लेते हैं तो शत्रु अपने की क्रोध से नष्ट हो जाता है.
केवल संयम ही एक हथियार है जिससे क्रोध रूपी पिशाच को मारा जा सकता है. अगर फेसबुक पर चर्चा की बात करें तो कई बार कुछ लोग क्रोध में अभद्र बातें भी बोलने लगते है, लेकिन उन पर भी क्रोधित होने के बजाय संयम से ही जबाब देना चाहिए. आपका संयम ही वह हथियार है तो उस प्रतिद्वंदी को आसानी से पराजित कर सकता है.
बहुत सुंदर दृष्टांत प्रभु ☺
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