Monday, 15 April 2019

1965 में भारत पर पापिस्तान के आक्रमण की बरसी

1965 के युद्ध ( 1 सितम्बर 1965 से 23 सितम्बर 1965 ) के बारे में ज्यादातर लोग यह मानते है कि यह युद्ध भी भारत पपिस्तान के अन्य युद्ध की तरह कश्मीर के कारण हुआ था लेकिन यह तथ्य बिलकुल गलत है. उस युद्ध की मुख्य बजह थी "कच्छ की रण" पर पापिस्तानियों का हमला और वह घुसपैठ जो 9 अप्रेल 1965 को हुई थी.
यह एक ऐसी तारीख है जिसकी कसक आज भी हर हिन्दुस्तानी के दिल में होनी चाहिए. लेकिन ज्यादातर हिन्दुस्थानियों को यह बात पता भी नहीं है. 09 अप्रैल 1965, को पापिस्तान ने अचानक आक्रमण करके भारतीय कच्छ के एक बड़े भाग पर कब्जा कर लिया था. पापिस्तान के उस हमले का भारतीय सेना ने करारा जबाब दिया था. .
हमारी सेना के पास बहुत कम हथियार थे. लेकिन इसके बाबजूद हमारी सेना ने अपने साधारण हथियारों से ही पापिस्तानियों को युद्ध में हरा दिया था . अपनी साधारण गनमाउंटेड जीपों, हथगोलों और साधारण थ्री नाट थ्री (303) रायफलों के द्वारा ही अमेरिकी टैंको को नष्ट कर दिया था और लाहौर तथा कराची को भी घेर लिया था.
भले ही 1965 की लड़ाई को लेकर हम लाल बहादुर शास्त्री जी का कितना ही गुणगान करते हों, लेकिन वास्तविकता यह है कि - उस युद्ध में भी सेना की जीत को शास्त्री जी समझौते की मेज पर हार गए थे. सेना द्वारा 1965 का युद्ध जीतने के बाद भी POK को हाशिल करना तो दूर की बात है, कच्छ की रण का एक हिस्सा पपिस्तान के पास चला गया था.
इसीलिए 1965 की लड़ाई को पापिस्तान अपनी जीत बताता है. क्योंकि हम जीतकर भी हार गए थे और पापिस्तान हार कर भी जीत गया था. भारतीय सेना ने पापिस्तान से 1947-48 वाली लड़ाई भी जीती, 1965 वाली लड़ाई भी जीती और 1971 की लड़ाई भी जीती, परन्तु हर बार कूटनीतिक स्तर पर हमारे नेता हार गए.
हमारी सेना ने 1947-48 वाली लड़ाई जीती लेकिन कूटनीति की मेज पर जवाह्र्र लाल नेहरु "POK" और "COK" गँवा आये थे. इसी प्रकार 1965 वाली लड़ाई भी भारतीय सेना ने जीती लेकिन कूटनीति की मेज पर लाल बहादुर शास्त्री "कच्छ की रण" का बड़ा हिस्सा गँवा आये थे. समझौते के बाद उनकी हत्या भी कर दी गई थी .
1971 की लड़ाई में तो भारतीय सेना ने बहुत ही बड़ी जीत हाशिल की थी. भारतीय सेना ने जल -थल - वायु हर जगह पापिस्तान को करारी मात दी और पापिस्तान की सेना को आत्मसमर्पण करने को मजबूर कर दिया था लेकिन इंदिरा गांधी द्वारा किये गए शिमला समझौते ने भारतीय सेना की उस महान जीत के द्वारा भी हम कुछ हाशिल नहीं कर पाए.

Tuesday, 9 April 2019

धर्म और जीवन

मनुष्य ने प्रारम्भ से ही प्रकति को समझने का प्रयास कर दिया था. जहाँ अन्य जीव जंतुओं का उद्देश केवल भोजन और संतान ब्रद्धि था, वहीँ मनुष्य प्रक्रति के रहस्यों को समझने का प्रयास जारी रखा. जीवन की उत्पति कैसे होती है और म्रत्यु के बाद क्या होता है इस रहस्य को समझने के लिए अनेकों सिद्धांत प्रतिपादित किये.
भगवान् ने मनुष्य को बनाया है या मनुष्य ने भगवान् को बनाया है यह भी एक पुराना विवाद है. आस्तिक लोगों का मानना है कि - स्वर्ग अथवा सातवें आसमान पर बैठे, भगवान् / अल्ला ने स्रष्टि की रचना की और स्वयं अवतार लेकर अथवा अपने मैसेंजर भेजकर मनुष्य को जीवन जीने का ज्ञान दिया,
जबकि नास्तिक लोगों का मानना है कि - मनुष्य ने एक सुपरपावर भगवान की कल्पना की है और जो बात उसे समझ न आये वो उसे भगवान पर छोड़कर निश्चिन्त हो जाता है. जब तक जिस घटना का रहस्य समझ न आये उसे ईश्वर या देवता मान लेते हैं जब विज्ञान उसका रहस्य खोज लेता है तब उसे विज्ञान मान लेते हैं.
जब तक यह नहीं पता था कि - बारिस कैसे होती है तब तक के लिए बर्षा के लिए "इंद्र" की कल्पना कर ली गई, आज जब बर्षाचक्र समझ आ गया तो चर्चा इंद्र के बजाय मानसून की होती है. सुस्र्ज और चंद्रमा जब तक रहस्य थे तब उनको देवता मान लिया गया, जब उनकी गति समझ आ गई विज्ञान का हिस्सा बन गए.
आस्तिकों में भी भगवान् की तरह तरह की परिकल्पनाए हैं. किसी का मानना है कि - कोई साकार ब्रह्म है जो स्वर्ग में बैठकर धरती की गतिबिधियों का नियंत्रण करता है और स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाने पर, खुद धरती पर अवतार लेता है और मानवीय रूप में जन्म लेकर मर्यादाओं को पुनर्स्थापित करता है
तो किसी का मानना है कि ईशवर निराकार है और वो अपने किसी विशेष दूत के द्वारा धरती पर सन्देश भेजकर व्यवस्था को बनाता है. यहाँ तक कोई विवाद नहीं है सभी अपने अपने तरीके से जीवन के रहस्य को समझने का प्रयास कर रहे हैं. विवाद तब शुरू होता है जब लोग अपने बिचार दूसरों पर थोपना शुरू करते हैं.
सूरज, चाँद, धरती, पहाड़, नदी, बर्षा, भूकंप, आदि जैसी जिन चीजों का रहस्य विज्ञान खोज चुका है उस पर तो विवाद का कोई कारण रह ही नहीं जाता है, चाहे आपके प्राचीन ग्रंथों में उसपर कुछ भी क्यों न लिखा हो. जीवन और म्रत्यु का रहस्य जब तक न समझ आये तब तक उसे जैसे चाहे माने लेकिन नये ज्ञान का रास्ता बंद न करें.
जीवन और म्रत्यु को लेकर यूं तो बहुत सारी अवधारणाएं है लेकिन दो सिद्धांत सवाधिक प्रचलित हैं. एक सनातन धर्म की पुनर्जन्म की अवधारणा और दुसरी इस्लाम की कयामत वाली अवधारणा. चाहे पुनर्जन्म की अवधारणा हो या कयामत की अवधारणा दोनों का उद्देश्य मनुष्य को अच्छे कर्म के लिए प्रेरित करना है.
जहाँ पुनर्जन्म की अवधारणा में यह बताया जाता है कि इस जन्म में जैसी कर्म करोगे अगले जन्म में उसके वैसे ही फल मिलेंगे. वहीँ कयामत की अवधारणा यह कहती है जैसे कर्म करोगे उसका बैसा ही फल क़यामत वाले दिन मिलेगा. कुल मिलाकर दोनों ही अवधारणाओं का उद्देश्य मनुष्य को अच्छे काम करने की प्रेरणा देना है.
इसलिए जिस मान्यता को मानना है मानिए लेकिन दूसरों पर अपनी मान्यता जबरन थोपने की कोशिश न करें. अपनी अपनी मान्यता पर चलते हुए विज्ञान द्वारा इसका रहस्य खुलने का इन्तजार कीजिए. अगर पुनर्जन्म होता है तो न मानने के बाबजूद मुस्लमान का भी होगा और अगर नहीं होता है तो हिन्दू का भी नहीं होगा.
अगर क़यामत वाली अवधारणा सही है तो हिन्दू को भी उससे गुजरना होगा, चाहे वो इसे मानता हो या न मानता हो. हो सकता है विज्ञान इन सब प्रचलित मान्यताओं से अलग कोई नया और सर्वमान्य सिद्धांत ही खोज निकाले. इसलिए बिना विवाद किये विज्ञान के निष्कर्ष का इन्तजार कीजिए.

Thursday, 4 April 2019

पीपल का पेड़ और आक्सीजन : कुछ भ्रम कुछ सच्चाई

आमतौर पर हम लोग यह मानते हैं कि- इंसान और जानवर सांस लेते समय हवा से आक्सीजन लेते हैं और कार्बन डाई आक्साइड छोड़ते हैं तथा पेड़ पौधे इसके उलट अर्थात सांस लेते समय कार्बन डाई आक्साइड लेते हैं और आक्सीजन छोड़ते हैं. यह सच्चाई है या भ्रम यह ज्यादातर आम लोगों को पता नहीं है.
इससे समबन्धित तथ्य को Dr.Alok Khare जी ने (जो बरेली कालेज बरेली में वाटनी के प्रोफ़ेसर हैं) बहुत ही अच्छे ढंग से समझाने का प्रयास किया है. उन्ही तथ्यों को मैं अपने शब्दों में प्रस्तुत कर रहा हूँ. अगर मेरे द्वारा समझने और लिखने में कुछ गलती होती तो मुझे उम्मीद है कि आप मुझे क्षमा करते हुए तथ्य ठीक कर देंगे.
पेड़-पौधे भी इंसानों और जानवरों की ही तरह चौबीस घण्टे साँस लेते हैं. इस क्रिया में वे भी वायुमण्डल से ऑक्सीजन लेते हैं और कार्बन डाय ऑक्साइड ही वायुमण्डल छोड़ते हैं. पेड़ पौधों की यह क्रिया भी सभी जीवित प्राणियों की "श्वसन प्रणाली" की तरह ही होती है. इसके अलावा पेड़ पौधे एक और महत्त्वपूर्ण क्रिया भी करते हैं जिसे "प्रकाश-संश्लेषण" कहा जाता है.
पेड़-पौधे प्रकाश-संश्लेषण की यह क्रिया सूर्य के प्रकाश में करते हैं. इस क्रिया में वे वायुमण्डल से कार्बन डाय ऑक्साइड और जलवाष्प को लेकर, अपना ग्लूकोज़ स्वयं बनाते हैं. इस काम में उनका हरा रंजक "क्लोरोफ़िल" महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और सूर्य का प्रकाश भी. इसी प्रकाश-संश्लेषण के दौरान ग्लूकोज़ के साथ साथ ऑक्सीजन भी बनती है,
इस आक्सीजन को पेड़-पौधे वायुमण्डल में वापस छोड़देते है. अर्थात अगर पेड़ पर हरे पत्ते न हों और पर्याप्त प्रकाश न हो तो, प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया नहीं होगी और वे पानी को तोड़कर, वातावरण को आक्सीजन नहीं दे पायेंगे. अर्थात रात में जब प्रकाश न के बराबर रहता है, तो यह काम प्रचुरता से नहीं हो पायेगा.
"पीपल का पेड़" शुष्क वातावरण में पनपता है और इसके लिए उसकी देह में कुदरती तौर पर पर्याप्त तैयारियाँ होती हैं हैं. पेड़-पौधों की सतह पर स्टोमेटा नामक नन्हें छिद्र होते हैं जिनसे गैसों और जलवाष्प का आवागमन होता है. सूखे गर्म माहौल में पेड़ का पानी न निचुड़ जाए , इसलिए पीपल दिन में अपेक्षाकृत अपने स्टोमेटा बन्द करके रखता है.
पीपल व उसके जैसे कई अन्य पेड़-पौधे भी रात को अपने स्टोमेटा खोलते हैं और हवा से कार्बन-डायऑक्साइड बटोरते हैं. उससे "मैलेट" नामक एक रसायन बनाकर रख लेते हैं, ताकि फिर आगे दिन में जब सूरज चमके और प्रकाश मिले , तो प्रकाश-संश्लेषण में सीधे वायुमण्डलीय की कार्बन डाय ऑक्साइड की जगह इस मैलेट का प्रयोग कर सकें.
अर्थात - पीपल का पेड़ रात को भी वातावरण से कार्बन डाय ऑक्साइड शोषित करता रहता है. केवल "पीपल" ही नहीं बल्कि कई अन्य पेड़-पौधे ( जैसे - अरीका पाम , स्नेक प्लांट , ऑर्किड , तुलसी आदि) भी कुछ इसी तरह से काम करते हैं. यह भी रात को वातावरण से कार्बन डाय ऑक्साइड लेकर उसे मैलेट बनाकर प्रकाश-संश्लेषण के लिए इस्तेमाल करते हैं
यह प्रक्रिया CAM मार्ग ( क्रासुलेसियन पाथवे ) के नाम से पादप-विज्ञान में जानी जाती है. कहने का तात्पर्य यह कि - पीपल रात को ऑक्सीजन नहीं छोड़ता. लेकिन अतिवृहद canopy और अपेक्षाकृत विस्तृत leaf area होने के कारण पीपल में प्रकाश संश्लेषण एवं ऑक्सीजन उत्पादन की दर अन्य वृक्षों की तुलना में अधिक काफी अधिक होती है
वह रात में भी वायुमण्डल से कार्बन डाय ऑक्साइड बटोरता है ताकि दिन में जल-हानि से बच सके. लंबी आयु, शीतलता एवं अन्य अनेक जीवों का आश्रय स्थल होने के कारण इसे Keystone प्रजाति की श्रेणी में रखा गया गया है. ये वो प्रजातियां होती हैं, जिनमे पर्यावरण की दशाओं में परिवर्तन की क्षमता होती है. यही गुण इस वृक्ष को पुज्यनीय बनाते हैं.
डा.आलोक खरे जी का यह भी कहना है कि- अगर पेड़ पौधों को रात में भी कृतिम प्रकाश मिलता है और वह प्रकाश सही वेवलेंथ और सही फ्रीक्वेंसी का हो, तो ये पेड़ रात में भी आक्सीजन का उत्सर्जन कर सकते हैं. मुझे लगता है हमारे पूर्वजों ने पीपल के नीचे दिया जलाने का प्रावधान शायद इसी सोंच के तहत रखा होगा.

Tuesday, 2 April 2019

क्रोध और संयम

 एक बार "श्रीकृष्ण". "बलराम" एवं "सात्यकि" किसी लम्बी यात्रा पर जा रहे थे. रास्ते में एक घना जंगल पड़ा. रात्रि का समय हो जाने पर उन्होंने विश्राम करने का निर्णय लिया. उन्होंने घोड़ों को पेड़ से बाँध दिया और तय किया कि दो लोग विश्राम करेंगे और बारी बारी से उनमे से एक पहरा देगा. सबसे पहले पहरा देने की बारी सात्यिकी की थी और बाकी दोनो सो गये.
रात्री में एक पिशाच पेड़ से उतरा और सात्यिकी को ललकारने लगा. पिशाच की ललकार सुन कर सात्यिकी अत्यंत क्रोधित हो गये और उससे मल्लयुद्ध करने लगे. परन्तु सात्यकि पिशाच पर जितना अधिक क्रोध करते उतना ही पिशाच का आकार बढ़ता जाता और उतना ही ज्यादा शक्तिशाली होता जाता था. मल्ल-युद्ध ने सात्यिकी को बुरी तरह से थका दिया.
एक प्रहर बीत गया. सात्यिकी के बाद "बलराम" की बारी थी पहरा देने की. सात्यिकी चुपचाप जाकर सो गये, उन्होंने बलराम को पिशाच के बारे में कुछ नहीं बताया. रात्री में फिर पिशाच पेड़ से उतरा और बलराम को ललकारने लगा. बलराम भी क्रोध-पूर्वक पिशाच से भिड़ गये. उनको भी लड़ते हुए एक प्रहर बीत गया. उनका भी सात्यकि जैसा हाल हुआ.
अब श्री कृष्ण के जागने की बारी थी. बलराम ने भी उन्हें कुछ न बताया एवं सो गये. श्री कृष्ण के सामने भी पिशाच की चुनौती आई. परन्तु पिशाच के ललकारने पर श्रीक्रष्ण क्रोधित नहीं हुए बल्कि मुस्कराने लगे. पिशाच जितना अधिक क्रोध से ललकारता श्रीकृष्ण उतने ही शांत-भाव से मुस्करा देते; ऐसा करने से पिशाच का आकार घटने लगा.
धीरे पिशाच का आकार बहुत छोटा हो गया तो श्री कृष्ण ने अपने पटके के एक छोर में बांध लिया. प्रात:काल सात्यिकी और बलराम ने पिशाच से लड़ाई और अपनी दुर्गति की कहानी श्री कृष्ण को सुनाई. तब श्री कृष्ण ने मुस्करा कर अपने पटके में बंधे हुए मामूली कीड़े के आकार वाले पिशाच को दिखाते हुए कहा - क्या यही है वह पिशाच ?
उसको देखकर सात्यिकी और बलराम को बड़ा आश्चर्य हुआ. तब श्रीक्रष्ण ने समझाया, तुम्हारा क्रोध ही वहा पिशाच है जो तुम्हे नुकशान पहुंचाता है. तुम जितना अधिक क्रोध करते थे इसका आकार उतना ही बढ़ता जाता था. जब मैंने इसके क्रोध का प्रतिकार क्रोध से न देकर तो शांत-भाव से दिया तो यह हतोत्साहित हो कर दुर्बल और छोटा हो गया.
यह सत्य घटना है या मात्र लोगों को शिक्षा देने के लिए गढ़ी हुई कहानी, लेकिन जो शिक्षा दी गई वह वास्तव में सत्य है. सामने वाला क्रोध में गालिया बकता है और आप भी उत्तेजित होकर और ज्यादा क्रोधित हो जाते हैं तो सामने वाला शत्रु और ज्यादा ताकतवर हो जाता है. लेकिन आप अगर संयम से काम लेते हैं तो शत्रु अपने की क्रोध से नष्ट हो जाता है.
केवल संयम ही एक हथियार है जिससे क्रोध रूपी पिशाच को मारा जा सकता है. अगर फेसबुक पर चर्चा की बात करें तो कई बार कुछ लोग क्रोध में अभद्र बातें भी बोलने लगते है, लेकिन उन पर भी क्रोधित होने के बजाय संयम से ही जबाब देना चाहिए. आपका संयम ही वह हथियार है तो उस प्रतिद्वंदी को आसानी से पराजित कर सकता है.