हमारा जीवन इतनी मुश्किलों और व्यस्तताओं से भरा हुआ है कि - हम अपने लिए समय ही नहीं निकाल पाते हैं. जीवन की इन्ही व्यस्ताओं से थोड़ा ब्रेक लेने और आनंद के पल उपलब्ध कराने के लिए ही हमारे पूर्वजो ने त्योहारों और उत्सवों का प्रावधान बनाया है. इन त्योहारों के बहाने हम कुछ समय के लिए कार्य से ब्रेक लेकर परिवार, रिश्तेदारों और मित्रों से मिल लेते हैं.
त्योहारों का चयन करते समय भी हमारे पूर्वजों ने बहुत ही बुद्धिमानी से काम लिया है. उन्होंने ऋतुओं की प्रवृत्ति, उन दिनों में मिलने वाली फल / वनस्पति, उस मौसम के समय हमारी शारीरिक / मानशिक आवश्यकताओं आदि का ध्यान भी रखा है. आज हम होली की बात करते हैं. होली की अग्नि को सर्दी को भष्म करने के प्रतीक के रूप में देखा जाता है.
बसंत पंचमी के बाद से ही प्रक्रति में नए फूल खिलने लगते हैं और चारों तरफ रंग बिखर जाते है. इसीलिए इसको रंगों का त्यौहार बनाया है. भारतीय कैलेण्डर विक्रम संवत के अनुसार होली के बाद साल का अंतिम पखवाड़ा होता है. इसलिए इसको कुछ विशेष बनाया गया है. इस मौके पर एक दुसरे को रंग लगाकर गले लगाते हैं और साल भर के गिले शिकवे भुला देते हैं.
यूँ तो होली का त्यौहार वैदिक युग से चला आ रहा है. भागवत, रामायण और महाभारत में अवध और ब्रज की होली का बहुत उल्लेख मिलता है. लेकिन इसको भव्य स्तर पर आयोजित करने का श्रेय उज्जैन के राजा वीर विक्रमादित्य को जाता है. राजा वीर विक्रमादित्य के समय में ही, ऋषि वराहमिहिर ने विक्रम संवत बाले कैलेण्डर का आविष्कार किया था.
विक्रमादित्य ने आखिरी पखवाड़े को ( होली से बर्षप्रतिपदा ) को अवकास का समय घोषित किया था. इस पखवाड़े के पहले 7 दिन मस्ती के लिए तथा बाद वाले 7 दिन नए साल की तैयारी के लिए निर्धारित किये थे. उज्जैन के आस पास के कई क्षेत्रों में आज भी होली पुरे एक सप्ताह तक चलती है. (कृपया उज्जैन के आस पास के मित्र इसकी पुष्टि करने की कृपा करें)
होली से लेकर अगले 7 दिन केवल मस्ती के लिए थे. राजा वीर विक्रमादित्य ने तो जनता को यहाँ तक की छुट दी थी कि - अगर कोई व्यक्ति राजा, अधिकारी, किसी साम्मानित व्यक्ति अथवा राजा की किसी नीति, आदि से नाराज है, तो वो होली के मौके पर उसका मजाक उड़ाकर उसपर अपनी नाराजगी जता सकता है, इसको अपराध नहीं माना जाएगा.
अपनी भड़ास निकालकर "बुरा न मानो होली है" कहने की परम्परा का प्रारम्भ उसी समय शुरू हुआ था. राजा वीर विक्रमादित्य ने यह नियम इसलिए बनाया था कि छोटे लोग अपने बड़ों तक बिना डरे अपनी शकायत पहुंचा सके और बड़े लोग छोटे लोगों की समस्याओं और आकांक्षाओं को जानकार उसके अनुसार अपने व्यवहार तथा नीति में बदलाब कर सकें.
आज हम होली के बहाने परिवार के साथ इकट्ठे होते हैं. एक दुसरे को अपने घर बुलाकर उनको विशेष पकवांन खिलाते. घर, मोहल्ले को साफ़ करते हैं. पुरानी गंदगी, कटुता, रंजिश को ख़त्म कर , स्वच्छता और मित्रता का वातावरण तैयार करते हैं. भारतेंदु हरिश्चंद्र ने सत्य ही लिखा था, यह त्यौहार ही हमारी असली म्युनिसपिल्टी हैं.li
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