सन 1942 में 9-अगस्त के ही दिन महात्मा गांधी ने "अंग्रेजो भारत छोडो आन्दोलन" का ऐलान किया था. आन्दोलन के पहले दिन से ही गांधी जी एवं उनके कई निकटवर्ती सहयोगी जेल के नाम पर सरकारी सुरक्षा में, विबिन्न पैलेसों और डाक बंगलों में चले गए थे, और वे लोग आन्दोलन की समाप्ति के बाद ही बाहर आये थे.
यह आन्दोलन शुरू होते ही कांग्रेस के हाथ से निकल कर, देश की जनता का क्रांतिकारी आन्दोलन बन गया था, जिन पर गांधी या कांग्रेस का कोई नियंत्रण नहीं था, गांधीजी के द्वारा अहिंसक आन्दोलन का आव्हान किया गया था, लेकिन देश के जोशीले युवाओं ने खुलकर अंग्रेजों के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन किये.
क्रांतिकारियों ने देशभर में हजारों पुलिस स्टेशन, रेलवे स्टेशन, डाक घर, सरकारी कार्यालयों एवं अंग्रेजों इत्यादि पर खुलकर हमले किये और उनको बहुत नुकशान पहुंचाया. सरकारी आँकड़ों के अनुसार इस जनआन्दोलन में 940 लोग मारे गये, 1630 लोग घायल हुए,18,000 डी० आई० आर० में नजरबन्द हुए तथा 60,229 गिरफ्तार हुए थे.
दरअसल उन दिनों दूसरा विश्वयुद्ध (1939 से 1944 तक) चल रहा था जिसमे भारत के क्रांतिकारी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फ़ौज में शामिल होकर अंग्रेजों पर हमले कर रहे थे. जो भारतीय आजाद हिन्द फ़ौज में शामिल में शामिल नहीं थे वे भी उसका समर्थन कर रहे थे और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को अपना आदर्श मानतेे थे.
1939 से 1944 तक चले दूसरे विश्वयुद्ध में अंग्रेजो को बहुत क्षति उठानी पडी थी, दूसरी तरफ सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फ़ौज ने भी अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था. आजाद हिन्द फ़ौज ने जर्मनी और जापान के सहयोग से अंग्रेजों पर हमले तेज कर दिए थे और अंडमान -निकोवार को आजाद भी करा लिया था.
उस समय "सुभाष चन्द्र बोस" भारत के युवाओं के महानायक बने हुए थे. देश की जनता मानने लगी थी कि - गांधीजी की अहिंसा से कुछ नहीं होगा. "बोस" के रास्ते पर चलकर ही आजादी मिल सकती है. सुभाष चन्द्र बोस के नारे "तुम मुझे खून दो, मै तुम्हे आजादी दूँगा" तथा "दिल्ली चलो" ने देश की जनता में जोश भर दिया था.
ऐसे में मौके की नजाकत को भाँपते हुए 8 अगस्त 1942 की रात में गांधी जी ने, बम्बई से "अँग्रेजों भारत छोड़ो" का नारा दिया और गिरफ्तारी के नाम पर सरकारी सुरक्षा में "आगा खान पैलेस" में चले गये. 9 अगस्त का दिन चुनने की एक ख़ास बजह थी. 1925 में 9 अगस्त को काकोरी ट्रेन काण्ड हुआ था.
भारत छोडो आन्दोलन का श्रेय भले ही गांधी जी को दिया जाता है लेकिन इसमें भाग लेने वाले अधिकांश क्रांतिकारियों ने सुभाष चन्द्र बोस की उग्र बिचारधारा से साथ जबरदस्त क्रान्ति की थी. उन लोगों का सिद्धांत अंहिसा के साथ सविनय निवेदन करना नहीं बल्कि अंग्रेजों से युद्ध कर उनको मार भगाना था.
गांधी जी जेल (आगा खान पैलेस) से अक्सर अहिसा का आव्हान करते थे मगर युवा उसे अनसुना कर देते थे. भारत छोड़ो आंदोलन सही मायने में एक जन आंदोलन था. इसको गांधीजी और कांग्रेस ने शुरू अवश्य किया था. लेकिन इसमें भाग लेने वाले आन्दोलनकारी सुभाष चन्द्र बोस के आदर्श पर चलते थे.
आजाद हिन्द फ़ौज बाहर से सैन्य हमने कर रही थी और देश के अन्दर क्रांतिकारी अंग्रेजों को भारी नुकशान पहुंचा रहे थे. किन्तु दुर्भाग्यवश युद्ध का पासा पलट गया. जर्मनी ने हार मान ली और जापान को भी घुटने टेकने पड़े. सुभाषचन्द्र बोस की मौत की खबर (?) के साथ ही आजाद हिन्द फ़ौज का अभियान और भारत छोडो आन्दोलन समाप्त हो गया.
दुसरे विश्वयुद्ध, आजाद हिन्द फ़ौज और भारत छोडो आन्दोलन ने अंग्रेजों को इतना कमजोर कर दिया था कि उनको यहाँ से भागना पडा. भारत और हां, इस आन्दोलन के दौरान मुस्लिम लीग और अधिकाँश मुश्लिम नेता, क्रान्ति / आन्दोलन से दूर रहकर, अलग पापिस्तान की मांग में लगे रहे.
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