एकात्म मानववाद के प्रणेता, भारतीय जन संघ के संस्थापक सदस्य एवं अध्यक्ष "पं. दीनदयाल उपाध्याय"
*****************************************************************************************************
प. दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितम्बर1916 को मथुरा जिले के छोटे से गाँव नगला चन्द्रभान में हुआ था. इनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय तथा माता रामप्यारी थीं. उनकी तीन बर्ष की आयु में उनके पिता का तथा 7 बर्ष की आयु में माता का निधन हो गया. उसके बाद उनका पालन पोषण उनकी ननिहाल में हुआ.
प. दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितम्बर1916 को मथुरा जिले के छोटे से गाँव नगला चन्द्रभान में हुआ था. इनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय तथा माता रामप्यारी थीं. उनकी तीन बर्ष की आयु में उनके पिता का तथा 7 बर्ष की आयु में माता का निधन हो गया. उसके बाद उनका पालन पोषण उनकी ननिहाल में हुआ.
![]() |
प.दीनदयाल उपाध्याय |
उनकी राजनैतिक सुझबूझ से संघ के सरसंघ चालक "श्री गुरुजी" भी बहुत प्रभावित थे. उन्होंने संघ की बिचारधारा का प्रसार करने के लिए, राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य और स्वदेश जैसी पत्र-पत्रिकाएँ प्रारम्भ की. उन्होंने सभी तरह की बिचार धाराओं का अध्ययन करने के बाद, भारतीय परिवेश के अनुकूल "एकात्म मानववाद" का सिद्धांत दिया.
दीनदयाल उपाध्याय की अवधारणा थी कि - "देश की आजादी के बाद भारत के विकास का आधार, अपनी भारतीय संस्कृति हो, न कि अंग्रेजों द्वारा छोड़ी गयी पाश्चात्य विचारधारा. उनका कहना था कि -“वसुधैव कुटुम्बकम” हमारी सभ्यता और परम्परा है. उनका मानना था कि - केवल "सांस्कृतिक राष्ट्रवाद" ही समस्त भारत को एक रख सकता है.
प. दीनदयाल उपाध्याय के अनुसार - "भारत में रहनेवाला और इसके प्रति ममत्व की भावना रखने वाला मानव समूह "एक जन" हैं. उनकी जीवन प्रणाली ,कला , साहित्य, दर्शन सब भारतीय संस्कृति है. इसलिए भारतीय राष्ट्रवाद का आधार यह संस्कृति है . इस संस्कृतिमें निष्ठा रहे, तभी भारत एकात्म रहेगा और मानवमात्र में भेदभाव ख़त्म होगा.
प. दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद के सिद्धांत के बिरोध में वामपंथी और पूजीवादी दोनों तरह की विदेशी बिचार धाराओं के लोग थे क्योंकि उन विदेशियों को भय था कि - भारतीय सनातन पद्धति से निर्मित, "सांस्क्रतिक राष्ट्रवाद" के सामने साम्यवाद और पूंजीवाद दोनों धराशाई हो जायेंगे और उनकी राजनीति ख़त्म हो जायेगी.
उनकी क्षमताओं को देखते हुए डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में भारतीय जन संघ की स्थापना करते समय उनको पार्टी का महासचिव नियुक्त किया. कश्मीर के भारत में पूर्ण विलय के लिए किये गए आन्दोलन में डा. मुखर्जी की जेल में संदेहास्पद परिस्थितियों में म्रत्यु के बाद उन्होंने संगठन को आगे बढाने की जिम्मेदारी को उन्होंने बखूबी निभाया.
उन्होंने 15 वर्षों तक महासचिव के रूप में जनसंघ की सेवा की. भारतीय जनसंघ के 14वें वार्षिक अधिवेशन में प. दीनदयाल उपाध्याय को दिसंबर 1967 में कालीकट में जनसंघ का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया. 19 दिसंबर 1967 को दीनदयाल उपाध्याय को भारतीय जनसंघ का अध्यक्ष चुना गया,लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था.

प. दीनदयाल उपाध्याय द्वारा डा. श्यामाप्रसाद जी के साथ मिलकर, "भारतीय जनसंघ" के रूप में लगाया गया पौधा, आज "भारतीय जनता पार्टी" जैसा विशाल ब्रक्ष बन चुका है, जिसको दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतक दल कहलाने का सौभाग्य मिला हुआ है. "भारतीय जनता पार्टी" की सोंच में उनका "एकात्म मानववाद" और "सांस्क्रतिक राष्ट्रवाद" ही है.
No comments:
Post a Comment