जब भी कहीं कोई दुर्घटना होती है तो लोग "लाल बहादुर शास्त्री" जी का उदाहरण देकर, उस विभाग के मंत्री का इस्तीफा मंगना शुरू कर देते हैं. क्या लाल बहादुर शास्त्री जी ने जिम्मेदार लोगों पर कार्यवाही करने और पीड़ितों को न्याय दिलाने की अपनी जिम्मेदारी निभाने के बजाय, जिम्मेदारी से भागकर कोई महान काम क्या था ?
कितने लोग ऐसे हैं जिनको उस दुर्घटना के बारे में पता है ? क्या आप बता सकते हैं कि यह दुर्घटना कब और कहाँ हुई थी ? इस दुर्घटना में कितने लोग मारे गए थे और सरकारी आंकड़ों में यह संख्या कितनी है ? वास्तव में दुर्घटना के जिम्मेदार कितने लोगों को सजा मिली थी ? शास्त्री जी के इस्तीफे से पीड़ितों को क्या मिल गया था ?
एक बात मैं यह कहना चाहता हूँ कि - यहाँ मैं शास्त्री जी की क्षमता पर सवाल नहीं उठा रहा बल्कि नैतिकता के आधार पर इस्तीफे की बात कर रहा हूँ.क्या शास्त्री जी ने इस हादसे से दुखी होकर संन्यास ले लिया था और सत्ता छोड़ दी थी ? कहीं ऐसा तो नही कि शास्त्री जी के इस्तीफे की आड़ में सारे मामले को ही दबा दिया गया था ?
वो चर्चित रेल दुर्घटना 27 नवंबर 1956 को तमिलनाडु के अरियालुर में हुई थी. स्थानीय अखबारों और प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार उस हादसे में 500 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी, हालांकि सरकारी आंकड़ों में यह संख्या 142 बताई जाती है. इस बात की कहीं कोई जानकारी नहीं मिलती है कि किसी अधिकारी को इसमें सजा मिली हो.
पीड़ितों का कहाँ इलाज हुआ और उनको कितना मुआवजा मिला, इस मामले में कहीं भी कोई जानकारी नहीं मिलती है, जबकि शास्त्री जी के इस्तीफे की चर्चा सर्वत्र मिलती है. शास्त्री जी ने भी मात्र रेलमंत्री पद से इस्तीफा दिया था कोई राजनीति से संन्यास नहीं लिया था. रेलमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद भी बिना बिभाग के मंत्री के रूप में कबिनेट में बने रहे.
उस समय दूसरा आम चुनाव नजदीक था. विपक्ष ने "जीप घोटाला", "POK पर पापिस्तान का कब्जा", "तिब्बत पर चीन का कब्ज़ा", " संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की स्थाई सीट दावा न करने", पापिस्तान से भारत आये विस्थापितों का सही पुनर्वास न होने, आदि जैसे मुद्दों पर नेहरू सरकार को घेर रखा था. उसी समय यह दुर्घटना घट गई.
दुर्घटना की नैतिक जिम्मरदारी लेते हुए शास्त्री जी ने रेलमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया. आपदा को अवसर में बदलते हुए कांग्रेस ने बड़ी चालाकी से दुर्घटना के बजाय शास्त्री जी के इस्तीफे को महानता में बदल कर, उसे चुनावी मुद्दा बना दिया. लोग दुर्घटना पर सवाल उठाने के बजाय इस्तीफे की बात करने लगे और कांग्रेस पार्टी को 1957 के लोकसभा चुनाव में भारी विजय मिली.
नैतिकता के आधार पर रेलमंत्री पद से इस्तीफा देने वाले शास्त्री जी कुछ ही माह बाद परिवहन मंत्री बन गए. उसके साथ वे संचार मंत्री भी बने तथा बाद में वाणिज्य और उद्द्योग मंत्री बने. 1961 में गोविन्द वल्लभ पंत के देहांत के पश्चात वह गृह मंत्री बने तथा 1964 में प्रधानमंत्री नेहरूजी की म्रत्यु के बाद शास्त्री जी प्रधान मंत्री बन गए.