Sunday, 11 June 2017

उनाकोटि शिव मंदिर श्रंखला ( उनाकोटि, कैलाश शहर, त्रिपुरा )

भारत का नार्थ ईष्ट अनेको रहस्य समेटे हुए है. उनमे एक बहुत बड़ा रहस्य है "उनाकोटि". इस स्थान को ज्यादा प्रचार नहीं मिला है वरना इसको दुनिया के सात अजूबों में स्थान मिलना चाहिए था. वर्तमान केंद्र सरकार और त्रिपुरा सरकार ने नार्थईस्ट में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए, उनाकोटि के बारे में शेष भारत को जागरूक करना प्रारम्भ किया है.
इस बर्ष 26-जनवरी की निकाली गई त्रिपुरा की झांकी का थीम भी उनाकोटि को रखा गया था. उनाकोटि का अर्थ होता है करोड़ में एक कम. यहाँ पर भगवान शिव की गाथाओं के ऊपर, एक करोड़ में एक कम ( अर्थात - 99,99,999 ) मूर्तियाँ बनी हुई हैं. इनमे में कुछ को विशाल पहाडी चट्टानों पर उकेरा गया है तथा कुछ को पत्थर के बड़े टुकड़ों पर बनाया गया है.
ऐसा माना जाता है कि - माता सती के द्वारा अपने पिता के यग्य में भष्म होकर प्राण त्याग देने के बाद, भगवान् शिव उनके शव को अपने कंधे पर रखकर, तांडव करते हुए विश्व में विचरण करने लगे, जिससे दुनिया में प्रलय आने की संभावना हो गई, तब भगवान् विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शव के टुकड़े करना प्रारम्भ कर दिया .
माता सती के शव के अंग जहाँ जहाँ गिरे वे स्थान शक्ति पीठ कहलाते हैं. उनका आखिरी अंग गुवाहाटी के पास कामाख्या में गिरा था. उसके बाद भगवान् शिव का मोह समाप्त हो गया और उन्होंने तांडव को रोक दिया, परन्तु वे बिना कुछ कहे त्रिपुरा के घने जंगल में समाधि लेकर, तपस्या में लीन हो गए. उसके बाद ही शिव को "त्रिपुरारी" भी कहा जाने लगा.
उन दिनों एक राक्षस "तारकासुर" ने धरती पर आतंक मचाना शुरू कर दिया था. उसको कोई मार नहीं सकता था क्योंकि उसे वरदान प्राप्त था कि - केवल भगवान् शिव का पुत्र ही उसका वध कर सकता है और भगवान शिव का कोई पुत्र था नहीं. इसी बीच माता सती ने "देवी पार्वती" के रूप में दोबारा जन्म ले लिया, परन्तु भगवान् शिव अपनी समाधि में ही लींन रहे.
माता पार्वती शिव को पुनः पाने के लिए तप करने लगी. भगवान् शिव में कामना को जगाने के लिए और उनकी तपस्या भंग करने लिए, देवताओं ने "कामदेव" को भेजा. कामदेव और रति ने उनके तप को भंग तो कर दिया, लेकिन शिव के क्रोधित होकर अपना तीसरा नेत्र खोलने से, कामदेव वहीँ भस्म हो गया. क्रोध शांत होने पर देवताओं ने उनको सब समझाया. कामदेव के नाम पर ही नार्थईस्ट का यह क्षेत्र कामरूप कहलाता है.

तब त्रिपुरा के उसी क्षेत्र में माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह हुआ और कालांतर में उनके पुत्र कार्तिकेय के हाथों तारकासुर का बध हुआ. कहा जाता है कि - जब भगवान् शिव समाधि में लीन थे, तब कल्लू कुम्हार नामक एक मूर्तिकार ने ने उनकी बहुत सेवा की थी. माता पार्वती और शिव के विवाह में भी उसने बहुत योगदान दिया था.
जब भगवान् शिव वहां से अपने कैलाशधाम को जाने लगे, तो कल्लू कुम्हार ने भी उनके साथ चलते की जिद की. भगवान् शिव उसको सीधे मना भी नहीं कर सकते थे और साथ ले जाना भी संभव नहीं था. इसलिए उन्होंने कल्लू कुम्हार से कहा कि - अगर तुम एक रात में एक करोड़ मूर्तियाँ बना दो, तो हम तुमको भी अपने साथ कैलाश धाम ले जायेंगे.
भगवान् शिव के सानिध्य में रहने से कल्लू को भी दिव्य शक्तिया प्राप्त हो चुकी थीं. उसने उन शक्तियों का प्रयोग करके रातों रात एक करोड़ मूर्तियों का निर्माण कर दिया. लेकिन सुबह जब उनकी गिनती की गई तो, एक करोड़ में एक कम पाई गई. तब भगवान शिव ने कल्लू से कहा कि - तुम यही रहो, यहाँ आने वाला प्रत्येक व्यक्ति तुमको मेरे साथ साथ याद करेगा.
शिव पुराण में भी इस स्थान का जिक्र है. भगवान् शिव के कैलाशधाम जाने के बाद, कल्लू कुम्हार उस स्थान की देखभाल करने लगा. यह स्थान पौराणिक काल का प्रमुख तीर्थ स्थल बन गया था, परन्तु कालान्तर में पूर्वोत्तर में बौद्ध धर्म का प्रभाव बढ़ने के बाद, यह स्थान गुमनामी में खो गया. विधर्मियों के शासन और सुदूर क्षेत्र में होने से लोग इसे भूलने लगे.
त्रिपुरा सरकार और वर्तमान केंद्र सरकार ने इस स्थान को महत्वपूर्ण धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का सकल्प लिया है. इस स्थान पर अच्छी सुविधाए मिलने के बाद देशवासी निश्चित रूप से वहां जाना पसंद करेंगे. यदि ऐसा होता है तो पूर्वोत्तर को शेष भारत से सांस्क्रतिक रूप से जोड़ने में यह स्थान बहुत ही सहायक साबित होगा.

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