मगध पर मौर्य वंश का 10 वां राजा "वृहदरथ" राज करता था. वह बहुत ही कायरता वाली मानशिकता का व्यक्ति था. लेकिन अपनी कायरता को छुपाने के लिए अपने आपको अहिंसा का पुजारी बताता था. उसके शासन में सेना को कोई सम्मान नहीं था.
उसके सेनापति का नाम था पुश्यमित्र शुंग. सेनापति पुश्यमित्र शुंग बहुत ही वीर, साहसी और दूरदर्शी था. उन्ही दिनों यवनों ने भारत पर आक्रमण कर दिया. सेनापति पुश्यमित्र ने राजा "वृहदरथ" से युद्ध करने की अनुमति मागी लेकिन राजा ने मना कर दिया.
राजा "वृहदरथ" का कहना था कि - हम यवनों को महात्मा बुद्ध के उपदेश सुनाकर, अहिंसा के रास्ते पर ले आयेंगे. लेकिन इधर यवन मारकाट मचाते हुए लगातार भारत पर चढ़े आ रहे थे. तब सेनापति पुश्यमित्र शुंग ने बिना अनुमति यवनों का रास्ता रोक लिया.
भारत की सेना ने यवनों का संहार कर दिया. सेनापति पुश्यमित्र शुंग ने न तो किसी भी यवन को भागने दिया और न ही किसी यवन को बंदी बनाया. उसने पूरी यवन सेना का बध कर दिया. विजय का समाचार पाकर भी "वृहदरथ" अपने सेनापति पुश्यमित्र से नाराज रहा.
युद्ध की समाप्ति पर सेनापति पुश्यमित्र शुंग ने सैनिको के पथ संचलन (परेड) का कार्यक्रम रखा, जिसमे राजा "वृहदरथ" को सैनिको को बधाई और पुरुष्कार देने थे लेकिन राजा ऐसा करने के बजाय राजाज्ञा उलंघन के लिए सेनापति की आलोचना करने लगा.
वृहदरथ ने पूछा - अहिंसा का अनुसरण करने वाले राज्य में तुमने किसकी आज्ञा से यवनों पर आक्रमण किया. इस पर क्रोधित होकर सेनापति पुश्यमित्र शुंग ने कहा जब - जब राष्ट्र संकट से घिरा हो तो राष्ट्रभक्त किसी निमंत्रण पत्र की प्रतीक्षा नही करते.
और यह कहकर अपनी तलवार के एक ही वार से राजा वृहदरथ का सर काट दिया.एक पल को सन्नाटा छा गया. तब सेनापति ने आगे बढ़कर कहा - " न तो वृहदरथ महत्वपूर्ण था और न मैं महत्वपूर्ण हूँ, अगर महत्व है तो सिर्फ और सिर्फ मातृभूमि का है."
पुश्यमित्र शुंग के ऐसे बचन सुनकर सेना और आम जनता सेनापति की जय जयकार करने लगी और मंत्री परिषद् ने पुश्यमित्र शुंग को अपना नया राजा घोषित कर दिया. इस प्रकार मौर्यवंश का साम्राज्य ख़त्म हुआ और "शुंग वंश" का सूत्रपात हुआ.
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