Saturday, 25 February 2017

महान स्वतंत्रता सेनानी "चन्द्र शेखर आजाद"

स्वतंत्रता सेनानी "चन्द्र शेखर आजाद" के शहीदी दिवस (27-फरबरी) पर कोटि कोटि नमन
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महान स्वतंत्रता सेनानी "चन्द्र शेखर आजाद", भारत माँ के वो वीर सपूत थे जिनके नाम से भी अंग्रेज कांपने लगते थे. सरदार भगत सिंह, अशफाक उल्लाह खान, राम प्रसाद विस्मिल , आदि सभी महान क्रांतिकारियों ने उनके नेत्रत्व में देश की आजादी के लिए भीषण संघर्ष किया था. उनसे अंग्रेज तो घबराते ही थे, साथ साथ अंग्रेजों के चापलूस भारतीय भी घवराते थे.
"चन्द्र शेखर आजाद", "भगत सिंह" को आजाद कराना चाहते थे. गणेश शकर विद्ध्यार्थी ने उनको सलाह दी कि - वो जवाहर लाल नेहरू से मिलें, क्योंकि जवाहर लाल नेहरु और गांधी जी के अंग्रेजों के साथ बहुत अच्छे सम्बन्ध हैं. अगर ये लोग चाहें तो भगत सिंह की सजा माफ़ करवा सकते हैं, माफ़ नहीं तो कम से कम फिलहाल उम्र कैद में बदलवा ही सकते हैं.
इलाहावाद में चन्द्र शेखर आजाद, नेहरु से मिले और भगत सिह को बचाने के लिए मदद मांगी लेकिन नेहरु ने उनकी मदद करने से मना कर दिया और उनको आतंकी , डकैत और लुटेरा कहकर तिरस्कृत किया. बहा आजाद जी और नेहरुजी की बहस हो गई. गुस्से में आजादजी ने भी नेहरूजी को "साले" (जो वे आम बोलचाल में अक्सर बोलते थे ) बोल दिया,
नेहरु से निराश होने के बाद आजाद जी, अपने एक अन्य साथी सुखदेव के पास अल्फ्रेड पार्क में पहुंचे और आगे की रणनीति पर बिचार करने लगे. भगत सिंह को बचाने के लिए अब और क्या किया इस पर मंत्रणा करने लगे. लेकिन तभी अचानक अल्फ्रेड पार्क को पुलिस ने घेर लिया. एस०एस०पी० नॉट बाबर पुलिस दल का नेतृत्व कर रहा था.
चन्द्र शेखर आजाद ने अपने साथी (सुखदेव) को किसी तरह से वहां से निकाल दिया और खुद अकेले पुलिस का मुकाबला करने लगे. उन्होंने अकेले ही 7 पुलिस वालों को मार गिराया और दर्जन से ज्यादा को घायल कर दिया. जब उनकी पिस्तौल में केवल एक गोली बची तो वो उन्होंने अपनी कनपटी पर मारकर अपने नाम के साथ लगे "आजाद" को सार्थक कर दिया.
आजाद का अंग्रेजों में इतना खौफ था कि उनके मृत शरीर के पास जाने से पहले उन्होंने आजाद जी पर एक साथ कई सारी गोलीयां दागकर पहले तसल्ली की थी. अल्फ्रेड पार्क में भारत माँ का वो शेर सो गया लेकिन जाते जाते वीरता और देशभक्ति की मिशाल कायम कर गया. उनके बलिदान दिवस पर हम उनकी देशभक्ति और वीरता को प्रणाम करते हैं.
आजाद जी की पुलिस से मुठभेड़ कोई अचानक हुई घटना नहीं थी, बल्कि किसी गद्दार ने आजाद जी के अल्फ्रेड पार्क में होने की खबर पुलिस को दी थी. इस बात में कितनी सच्चाई है ये तो नहीं पता , मगर बहुत से लोगों का यह भी मानना है कि -आजादजी के अल्फ्रेड पार्क में होने की खबर नेहरु ने पुलिस को दी थी.

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