उन्होंने अपनी मात्र 7 दिन की आयु से लेकर 11 साल की आयु तक अनेको राक्षसों को मारा. इसी अवधि में उन्होंने अनेकों अलौकिक लीलाएं दिखाई. पूतना, शकटासुर, तृणावर्त, वत्सासुर, वकासुर,अघासुर, अरिष्टासुर, धेनुकासुर, केसी, आदि राक्षसों को मारा
गुरुकुल से आने के बाद वे जरासंध और महाभारत में व्यस्त रहे. उनका जीवन बचपन से ही संघर्ष भरा था. उनका सारा जीवन योद्धा और सक्षम कूटनीतिज्ञ के रूप में रहा. कुछ दुष्टों का उन्होंने खुद अंत किया और कुछ को उन्होंने कूटनीति से मरवाया.
लेकिन मुगल काल के कवियों ने उन्हें एक प्रेमी और लड़कियां छेड़ने वाला बना दिया. समझ नहीं आता है कि अधर्मियों के संहारक श्रीकृष्ण को मुग़लकाल में रासलीला करने वाला साबित करने का प्रयास क्यों किया गया. उस काल के कवियों ने ऐसा क्यों किया ?
क्या उन्होने गोपियों के साथ रासलीला 8 से 10 साल की आयु में की थी ? श्रीकृष्ण कथा में यह प्रसंग किसने डाला होगा कि वे नहाने गई स्त्रियों के कपडे लेकर पेंड पर चढ़ गए ? जिस घाट पर स्त्रियां नहाने जाती होंगी वहां पर तो हर आयु की स्त्रियां जाती होंगी.
जब श्रीकृष्ण जी 7 साल के थे तब 11 साल की राधा जी उनसे मिलीं थी. जब वे 11 के हुए उसके बाद मथुरा चले गए. उसके बाद वे वापस कभी गोकुल नहीं गए. उसके बाद वे बहुत साल बाद तब मिले थे, जब वे महाभारत के युद्ध के लिए कुरुक्षेत्र का मैदान देखने आये थे.
महाराज वज्रनाभ ने कंस के कारागार को तोड़कर वहां पर अपने परदादा (भगवान श्रीकृष्णचन्द्र) का भव्य मंदिर स्थापित किया. उन्होंने अपनी दादी से श्रीकृष्ण के रूप का वर्णन सुनकर उसके अनुसार श्री कृष्ण की मूर्ति का निर्माण कराया और उसे वहां स्थापित किया.
हूण और कुषाण के हमलों में इस मंदिर के ध्वस्त होने के बाद गुप्तकाल के सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने सन् 400 ई० में नए सिरे से एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था. उसके कुछ सौ साल बाद इस्लामी हमलावर महमूद गजनवी ने यहाँ विध्वंश किया.
इसके बाद में इसे महाराजा विजयपाल देव के शासन में सन् 1150 ई. में "जज्ज" नामक किसी धनवान व्यक्ति ने भगवान श्रीकृष्ण का मंदिर बनवाया. यह मंदिर पहले की अपेक्षा और भी विशाल था, जिसे 16वीं शताब्दी के आरंभ में सिकंदर लोदी ने नष्ट करवा डाला था.
लेकिन 11वीं सदी तक कहीं भी ऐसा कोई जिक्र नहीं मिलता है कि वहां कोई राधा कृष्ण का भी कोई मंदिर था. न ही इस काल तक के किसी ग्रन्थ में राधा कृष्ण के मंदिर का जिक्र मिलता है और न ही राधाजी को देवी के रूप में स्थापित करने का जिक्र मिलता है.
‘श्री गीतगोविन्द’ साहित्य जगत में एक अनुपम कृति है, इसकी रचना शैली, भावप्रवणता, सुमधुर राग-रागिणी, धार्मिक तात्पर्यता तथा सुमधुर कोमल-कान्त-पदावली साहित्यिक रस पिपासुओं को अपूर्व आनन्द प्रदान करती हैं. कवियों को श्री कृष्ण का यह रूप भा गया,
ऐसा समझा जाता है कि ‘श्री गीतगोविन्द’ के बाद अनेकों कवियों ने प्रेमगीत बनाने के लिए राधाकृष्ण का रूपक रखना प्रारम्भ कर दिया. रहीम, रसखान, अमीर खुसरो जैसे कवियों ने योद्धा और युगांधर भगवान् श्रीकृष्ण, प्रेमी श्री कृष्ण बना दिया.
अब हमें श्रीकृष्ण के उसी अत्याचारियों के संहारक के रूप में पूजना होगा, श्रीकृष्ण के विराट रूप को मंदिरों में स्थापित करना होगा, उनके द्वारा सिखाये गए गीता के ज्ञान को समझना होगा, आदि. तब ही आज के समाज में शक्ति का संचार हो सकता है
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