नाना जगन्नाथ शंकरशेठ का जन्म मुंबई 10 फरवरी 1803 को एक सम्पन्न स्वर्णकार परिवार में हुआ था. युवा होने पर उन्होंने अपने पारम्परिक व्यवसाय हटकर अनेकों चीजों में हाथ डाला और सभी जगह सफलता प्राप्त की. उन्होंने मुंबई में पारसी और अफगानी व्यापारियों के साथ व्यवसाय कर मुंबई में व्यवसाय को आगे बढ़ाया.
मुंबई के विकास और शिक्षा के क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान दिया उन्होंने मुंबई के अनेकों स्कूल / कालेज खोले. इसके लिए उन्होंने स्कूल सोसाइटी और नैटिव स्कूल ऑफ़ बम्बई की स्थापना की थी. उन्होंने लड़कियों के लिए भी विद्यालय खोले थे. हालांकि उनके बाद जन्मे लोग इस बात का क्रेडिट ले गए कि उन्होंने नारी शिक्षा पर काम किया.
सन 1856 में उनके द्वारा स्थापित विश्व विद्यालय एलिफिंस्टन एडुकेशनल इंस्टीटूशन का एलिफिंस्टन कॉलेज एक है जिसमें अपने-अपने समय में प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री, समाजसेवी और नेता बालशास्त्री जंभेकर, दादा भाई नौरोजी, महादेव गोविन्द रानाडे, रामकृष्ण गोपाल भांडारकर, गोपालकृष्ण गोखले और बाल गंगाधर तिलक जैसे महान व्यक्तियों शिक्षा पायी.
उन्होंने दक्षिण मुम्बई के गिरगांव में खोले गए स्टूडेंट लाइब्रेरी के लिए काफी धन दिए. उन्होंने लड़कियों के स्कूल की स्थापना की और उनको प्रोत्साहित करने के लिए निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की. उन्होंने अपने स्कूलों में अंग्रेजी के साथ ही संस्कृत पढ़ाने की भी व्यवस्था की थी. साथ ही गिरगांव में ही उन्होंने संस्कृत सेमिनरी और संस्कृत लाइब्रेरी की भी स्थापना की थी.
26 अगस्त 1852 को उन्होंने 'बॉम्बे एसोसएशन' के नाम से राजनीतिक दल की भी स्थापना की थी जिसमें तत्कालीन मुंबई की अनेक प्रसिद्ध व्यक्ति थे. इसके पहले अध्यक्ष सर जमशेदजी जेजीभाई बने थे। बाद में दादाभी नौरोजी और अन्य युवा भी इससे जुड़े. गिरगांव में नाना चौक के पास के भवानी-शंकर मंदिर और राम मंदिर भी जगन्नाथ सेठ की ही देन है.
पुराने मुंबई के अनेक क्षेत्रों में जगन्नाथ सेठ की कृतियां आज भी मुंबई के विकास में उनके महत्वपूर्ण योगदान की साक्षी हैं. तत्कालीन ब्रिटिश राज को उन्होंने मुंबई के अनेक विकास कार्यों के लिए आर्थिक सहायता प्रदान की थी. भारत मेंरेलगाड़ी लाने का श्रेय भी उनको ही जाता है. नाना जगन्नाथ शंकर सेठ वो पहले व्यक्ति है जिन्होंने इसके लिए पहल शुरू की थी.
इंग्लैंड में जब ट्रेन पहली बार चली तो इसकी खबर पढ़ने के बाद नाना शंकर शेठ समझ गए कि ट्रेन ही आने वाले समय में यातायात का भविष्य है. नाना जी का व्यवसाय बहुत बड़ा था और अंग्रेज अफसर भी उनके सानिध्य में रहते थे. 1843 में वे अपने पिता के दोस्त जमशेद जीजोभोय उर्फ जेजे के पास गए और इंडियन रेलवे का अपना आइडिया उन्हे बताया.
भारत में ट्रेन चलने के आइडिया से सुप्रीम कोर्ट के जज थॉमस और ब्रिटिश अधिकारी स्किन पैरी काफी खुश थे. सबको नाना का आइडिया शानदार लगा इसके बाद तीनो ने मिलकर इंडियन रेलवे एसोसिएशन को बनाया. जब नाना और जेजे जैसे प्रभावी व्यक्तियों ने ईस्ट इंडिया कंपनी को अपना सुझाव दिया, तो उन्होंने सरकार को इसमें काम करने के लिए कहा.
इन्होंने मुंबई के बड़े बड़े व्यापारियों को इस प्रोजेक्ट से जोड़ते हुए ग्रेट इंडियन रेलवेज नाम की कंपनी बनाई. उन्होंने मुंबई से थाणे के बीच रेलगाड़ी चलाने का निश्चय किया. उनका ये सपना 1853 में पूरा हुआ, जब मुंबई से थाणे की ट्रेन चली. इसमें नाना जी और जेजे भी यात्री के रूप में सवार रहे. उस ट्रेन की सफलता के बाद भारत में रेलवे का विकास प्रारम्भ हुआ.
भारत में रेलगाड़ी लाने वाले इस महापुरुष को आजादी के बाद लिखे गए इतिहास में कोई जगह नहीं दी गई. आजतक लोगों को सिर्फ इतना पता है कि अंग्रेजों ने मुंबई से थाने पहली ट्रेन चलाई थी. रेलवे के अधिआरियों तक को नाना जगन्नाथ शंकरशेठ के बारे में कोई जानकारी नहीं है. जबकि वे भारत में रेलवे को लाने वाले भागीरथ है
उनको सम्मान देते हुए महाराष्ट्र सरकार ने मार्च 2020 में 'मुम्बई सेन्ट्रल' का नाम बदलकर 'नाना शंकर सेठ टर्मिनस' करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी तब कहीं जाकर लोगों को उनके बारे में ये सब जानकारी मिली. 31 जुलाई 1865 को उनका निधन हो गया. वे एक परोपकारी एवं शिक्षाविद थे. उन्हें ‘मुंबई का आद्य शिल्पकार’ भी माना जाता है.
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